भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न प्रकार के जानवरों की प्रजातियां पायी जाती हैं। इन्हीं जानवरों में से एक मांसाहारी और स्तनधारी बाघ भी है जो भारत सहित एशिया के लगभग सभी भागों में पाया जाता है। मिश्रित लाल और पीले रंग के साथ इसकी विशेषता यह है कि इसके शरीर पर काले रंग की पट्टी पायी जाती है और भीतरी भाग व पांव का रंग सफेद होता है। भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में सुशोभित बाघ को वैज्ञानिक तौर पर पेंथेरा टायग्रिस (Panthera tigris) के नाम से भी जाना जाता है। भारत के साथ-साथ ये बांग्लादेश, मलेशिया और दक्षिण कोरिया का भी राष्ट्रीय पशु है। यह मुख्य रूप से वन, दलदली भूमि तथा घास के मैदानों के पास रहना पसंद करता है तथा आहार के रूप में चीतल, जंगली सूअर, भैंसे, जंगली हिरण, आदि को अपना शिकार बनाता है।
इसकी धारियां इसकी पहचान करने में सबसे सहायक होती हैं। इसके सुनने, सूँघने और देखने की क्षमता तीव्र होती है जिस कारण यह अपने शिकार को बहुत जल्दी हासिल कर लेता है। बाघ की खोपड़ी शेर के समान होती है, किंतु इसके निचले जबड़े की संरचना के द्वारा इनमें भेद किया जा सकता है। इनके दांत बहुत सख्त होते हैं जिनकी ऊंचाई 90 मिमी (3.5 इंच) तक हो सकती है। बाघों के शरीर का आकार भी भिन्न-भिन्न होता है। मादा बाघ, नर बाघ से थोड़ी छोटी होती है। बाघ ऐतिहासिक रूप से पूर्वी तुर्की और ट्रांसकॉकेशिया (Transcaucasia) से लेकर जापान के सागर के तट तक, और दक्षिण एशिया से दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर सुमात्रा, जावा और बाली के इंडोनेशियाई द्वीपों तक फैला है।भारत के लिए बाघ एक धरोहर की भांति है और इसी कारण इसे राष्ट्रीय पशु के रूप में भी सुशोभित किया गया है। 2018 की नवीनतम बाघ आकलन रिपोर्ट (Report) के अनुसार, जंगलों में 2,967 बाघ हैं जिनमें से आधे से अधिक मध्य प्रदेश और कर्नाटक में पाये गये है। जंगलों में कुल बाघ जनसंख्या 2,603 से लेकर 3,346 है। 2014 में बाघों की जनसंख्या का अनुमान 2,226 था जो अब 33% बढ़ गया है। हालांकि यह विकास उन सभी 18 राज्यों में एक समान नहीं हुआ है जहाँ बाघ पाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में गिनती 46 से घटकर 19 हो गई है जबकि ओडिशा में, यह वर्षों से लगातार गिरती जा रही है। उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां बाघों की आबादी 2019 तक 173 है। मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 218 अधिक बढ़कर 526 पहुंच गयी है जबकि कर्नाटक में यह संख्या 524 आंकी गयी है। इसी प्रकार उत्तराखंड में 442, महाराष्ट्र में 312 और तमिलनाडु में यह संख्या 264 पहुंच गयी है।
सरकार के अनुसार, बाघों की कुल संख्या हर साल 6% की दर से बढ़ रही है तथा भारत दुनिया में बाघों के लिए सबसे सुरक्षित जगह है। कुछ वर्षों से बाघों की प्रजातियों में हो रही कमी के कारण वाइल्डलाइफ एक्सचेंज प्रोग्राम (Wildlife Exchange Program) चलाया गया है जिसके अंतर्गत लखनऊ स्थित नवाब वाजिद अली शाह उद्यान में एक सफेद मादा बाघ को दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क (National Zoological Park) से लाया गया है। इसके बदले में एक नर बाघ को नेशनल ज़ूलॉजिकल पार्क में छोड़ा गया है। इससे सफेद बाघों की प्रजातियों में वृद्धि होगी। यह केंद्रीय प्राधिकरण का एक नियम है और वन्यजीव विनिमय कार्यक्रम के तहत, जानवरों का आदान-प्रदान किया जाता है। एक ही चिड़ियाघर में पैदा होने वाली संतानों के अंतर-प्रजनन को रोकने के लिए शावकों का आदान-प्रदान किया जाता है ताकि क्रॉस-ब्रीडिंग (Cross-breeding) हो सके।
जहां बाघों की प्रजातियों को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है वहीं बाघ कुछ लोगों के लिए खतरे का कारण भी बने हुए हैं। दरअसल पीलीभीत टाइगर रिज़र्व (Pilibhit Tiger Reserve -PTR) की सीमा पर लगभग 256 गांव स्थित हैं। बहुसंख्यक ग्रामीणों के खेत रिज़र्व की सीमा से लगे हुए हैं जबकि रिज़र्व के आस-पास लगभग 50 बाघ मौजूद हैं। इस कारण वे अपने खेतों में खेती नहीं कर सकते क्योंकि बाघों का निरंतर भय बना हुआ है। इसके लिए गांवों में सीमांत और छोटे किसानों ने वन अधिकारियों से उन्हें सशस्त्र गार्ड (Guard) प्रदान करने के लिए कहा है क्योंकि वे अपनी गन्ने और धान की फसल काटना चाहते हैं तथा बिना किसी सुरक्षा के यह सम्भव नहीं है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Tiger
2. https://bit.ly/2MvtMvS
3. https://bit.ly/2J3wMh6
4. https://bit.ly/31poJSd
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