दशकों से ही भारत में (खासकर उत्तर भारत, जैसे उत्तर प्रदेश में) दीवाली के त्यौहार पर भोग के रूप में खाद्य चीनी को विभिन्न जानवरों की आकृतियों में ढाल कर बनाने की परंपरा चलती आ रही है। ऐसे ही दुर्गा पूजा में पारंपरिक भोग देने की परंपरा मौजूद है। भोग उस भोजन को संदर्भित करता है जो पूजा में आए हुए लोगों को परोसा जाता है, यह गुरुद्वारों में होने वाले लंगर के समान होता है।
वास्तविकता में भोग दोहरी भूमिका निभाता है, एक ओर यह देवी को भेंट चढ़ाने के काम आता है और दूसरी ओर यह भोग समाज की सेवा करने के उद्देश्य को भी पूरा कर देता है। यह दुर्गा पूजा का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि यह न केवल पारंपरिक बंगाली भोजन प्रदान करता है, बल्कि यह बंगाली परंपरा के साथ दुर्गा पूजा भी मनाता है।
दुर्गा पूजा के दौरान भोग की परंपरा दो सदियों से चली आ रही है। प्लासी के युद्ध में नवाब सिराज-उद-दौला पर ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने जीत हासिल कर अगले 100 वर्षों तक भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करना आरंभ कर लिया था। अंग्रेजों के सत्ता संभालने के तुरंत बाद, नाबा कृष्णा देब नाम के एक सज्जन को लॉर्ड क्लाइव के लिए भाषा अनुवादक के रूप में नियुक्त किया गया। देब ने उसी साल उत्तर कलकत्ता में अपनी हवेली पर प्रतिष्ठित सोवाबाजार रजबाड़ी पूजा शुरू की थी।
आमतौर पर, भोग शाकाहारी होता है, जिसमें कोई प्याज़ और लहसुन नहीं होता है, और इसे मुख्य रूप से मनोरम भोग खिचड़ी के साथ परोसा जाता है। कई बार, खिचड़ी के एवज में मिष्टी पुलाओ को परोसा जाता है। भोग बनाने के लिए आमतौर पर बैंगन, फूलगोभी और आदि मिश्रित सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही भोग में खट्टी-मीठी चटनी और मीठे में खीर या मिष्टी दही को परोसा जाता है। वहीं प्रत्येक पंडाल में भिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोग को पेश किया जाता है। लेकिन कई बार भोग संपूर्ण रूप से शाकाहारी नहीं होता है, जैसे पूजा की शक्तो परंपरा, मांस और मछली के समावेश को मंज़ूरी देती है। पूर्वी बंगाल के घरों में देवी को सामान्यतः मछली का भोग लगाया जाता है, क्योंकि इस क्षेत्र में कई नदियां हैं और पश्चिम बंगाल के मुकाबले यहाँ अधिक मात्रा में मछलियाँ पाई जाती हैं। वहीं अनुष्ठानिक पशु बलि के माध्यम से देवी को रक्त की पेशकश करना भी एक और परंपरा (पूजा की तांत्रिक परंपरा) में आता है। यह बली अष्टमी के ख़त्म होने पर और नवमी के शुरू होने पर दी जाती है जब दुर्गा माँ को चामुंडा के रूप में पूजा जाता है। इसके बाद बली दिए गये पशु के मांस को भोग के रूप में पूजा में उपस्थित लोगों को परोसा जाता है। इस मांस (आमतौर पर बकरी) को प्याज़ या लहसुन के बिना पकाया जाता है। इस व्यंजन को निरामिष मांगशो (शाकाहारी मांस) के नाम से जाना जाता है।
केसरी दाल और कोचुसाग के साथ पंटा चावल परोसने की परंपरा आमतौर पर केवल ब्रह्मणों द्वारा पूरी की जाती है। हालांकि सभी लोग पके हुए चावल (खिचड़ी या पुलाव) को परोस नहीं सकते हैं, कई गैर-ब्राह्मण परिवार केवल फलों और मिठाइयों के साथ बिना पके हुए चावल का भोग लगाते हैं। इस कच्चे चावल को बच्चों के लिए अलग-अलग अनाथालय में भेज दिया जाता है। भोग दुर्गा पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है, और यह भोजन के साथ समाप्त नहीं होता है। भोग का अनुगमन बिजोय द्वारा किया जाता है, जहां पड़ोसियों, दोस्तों, और रिश्तेदारों के घर जाकर शुभकामनाएं दी जाती हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2VRVsOZ
2. https://bit.ly/32gEGLr
3. https://bit.ly/2MiyNXD
4. https://bit.ly/2MhvZes
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=2Tl0eSZfixE
2. https://www.youtube.com/watch?v=urynpQchuQM
3. https://www.flickr.com/photos/belurmath/21764474301/in/photostream/
4. https://www.flickr.com/photos/belurmath/21671129444/in/photostream/
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