यूं तो प्रायः भारत में प्राचीन लिपि के नाम पर संस्कृत लिपि को ही अधिकतर याद किया जाता है किंतु भारत में विकसित हुई एक अन्य लिपि भी है जो भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है और वह है ‘ब्रह्मी लिपि’। यह लिपि सिंधु लिपि के बाद भारत में विकसित की गई प्रारंभिक लेखन प्रणाली है जो सबसे प्रभावशाली लेखन प्रणालियों में से एक है। आज जितनी भी भारतीय लिपियाँ पायी जाती हैं, वे ब्रह्मी लिपि से ही प्राप्त हुई हैं। दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में पाई जाने वाली कई सौ लिपियों की उत्पत्ति भी ब्रह्मी से ही हुई है।
ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मी लिपि को सेमिटिक (Semitic) लिपि से लिया गया है जिसे ब्राह्मण और विद्वानों द्वारा संस्कृत और प्राकृत के अनुकूल बनाया गया। भारत 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान सेमिटिक लिपि के सम्पर्क में तब आया जब अकेमेनिड साम्राज्य (Achaemenid empire) ने सिंधु घाटी (वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत का हिस्सा) पर अपना अधिकार जमाया। उस समय अकेमेनिड साम्राज्य की प्रशासनिक भाषा अरामाइक (Aramaic) थी तथा आधिकारिक रिकॉर्डों (Records) को उत्तर सेमिटिक लिपि का उपयोग करके लिखा गया था। इस समय इस क्षेत्र में एक और लिपि विकसित हुई जिसे खरोष्ठी के नाम से जाना गया तथा यह सिंधु घाटी क्षेत्र की प्रमुख लिपि रही। तथा उस समय ब्रह्मी लिपि का उपयोग भारत के बाकी हिस्सों और दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों में किया गया था। तमिल-नाडु में कई स्थलों के भित्तिचित्रों में ब्रह्मी लिपि के निशान पाये गये हैं। इस लिपि की प्राचीनता को मौर्य राजवंश से देखा जा सकता है। इसके उदाहरण उत्तर और मध्य भारत में फैले भारतीय सम्राट अशोक के शिलालेख हैं जिन पर ब्रह्मी लिपि का उपयोग किया गया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले ब्रह्मी उत्पन्न होने की धारणा को बल तब मिला जब श्रीलंका के अनुराधापुरा में काम कर रहे पुरातत्वविदों ने 450-350 ईसा पूर्व की अवधि के मिट्टी के बर्तनों पर ब्रह्मी शिलालेखों को पुनः प्राप्त किया। इन शिलालेखों की भाषा उत्तर भारतीय प्राकृत तथा इंडो-आर्यन (Indo-Aryan) भाषा है। उत्तर और मध्य भारत में पाए जाने वाले ब्रह्मी के अधिकांश उदाहरण प्राकृत भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि दक्षिण भारत में, विशेषकर तमिल नाडु में, ब्राह्मी शिलालेख तमिल भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो द्रविड़ परिवार से संबंधित है। हाथीदांत, हड्डी, पत्थर और मौर्य काल के टेराकोटा (Terracotta) से बने छोटे मुहरों पर भी लघु ब्रह्मी शिलालेखों के कुछ उदाहरण देखने को मिलते हैं। ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में सिक्कों पर ब्रह्मी शिलालेखों की शुरुआत देखी गई थी। लखनऊ संग्राहलय में रखे गये एक शिलालेख में भी ब्रह्मी लिपि को देखा जा सकता है। यह शिलालेख साका युग के 9वें वर्ष का है जिसमें एक महिला, गाहपाला जोकि ग्रहमित्र की बेटी तथा एकरा दला की पत्नी है, के द्वारा एक उपहार को दर्शाया गया है। ब्रह्मी कई अन्य लिपियों की जननी भी है क्योंकि विकास के अपने लंबे इतिहास के दौरान इससे कई लिपियों की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मी से प्राप्त कई लिपियों को अलग-अलग भाषाओं के अनुकूल बनाया गया। एशिया की कई लेखन प्रणालियों जैसे सिंहली, तेलुगु, थाई, तिब्बती, गुरुमुखी आदि की उत्पत्ति ब्रह्मी लिपि से ही हुई है तथा कई अन्य लेखन प्रणालियों को भी ब्रह्मी लिपि में खोजा जा सकता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.