पौराणिक कथा के अनुसार रावण और कुंभकर्ण अपने पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल थे। भगवान राम (भगवान विष्णु के 7वें अवतार) द्वारा मारे जाने के अलावा भी, रावण और कुंभकर्ण ने मुक्ति पाने के लिए 2 अन्य जन्म लिए थे। तो चलिए जानते हैं इस कथा के बारे में।
भगवान ब्रह्मा द्वारा ब्रम्हांड के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान 'चार कुमार' या 'चतुरसेन' का निर्माण किया गया था। क्योंकि इन चार कुमार का जन्म ब्रह्मा के मन से हुआ था, उन्हें भगवान ब्रह्मा के मानसपुत्र के रूप में जाना जाने लगा। उनके नाम सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार रखे गए। जब चारों कुमार अस्तित्व में आए, तो वे सभी शुद्ध गुणों के अवतार थे और उनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि जैसे नकारात्मक गुणों का कोई संकेत नहीं था। भगवान ब्रह्मा ने इन चार कुमारों को सृजन की प्रक्रिया में मदद करने के लिए बनाया था।हालांकि, कुमारों ने ब्रह्मा के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया और खुद को भगवान और ब्रह्मचर्य के लिए समर्पित कर दिया और अपने पिता से अपने शेष जीवन में पांच वर्ष के बालक के रूप में ही रहने का वरदान मांगा। एक दिन कुमार भगवान विष्णु के दर्शन के लिए गये, तो वहाँ जय और विजय, वैकुंठ के द्वारपालों ने कुमारों को बालक समझ कर द्वार पर ही रोक दिया और उन्हें यह कह कर अन्दर प्रवेश करने से मना किया कि भगवान विष्णु अभी आराम कर रहे हैं। कुमारों ने उन्हें समझाया कि भगवान अपने भक्तों से प्रेम करते हैं और उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
हालाँकि, सनत कुमारों को कभी क्रोध नहीं आता था लेकिन अपने द्वारपालों को सबक सिखाने के लिए प्रभु ने योजना बनाई और सनत कुमारों के शुद्ध दिलों में क्रोध का संचार कर दिया। क्रोधित कुमारों ने द्वारपालों जय और विजय दोनों को श्राप दे दिया कि उन्हें अपनी दिव्यता त्यागनी होगी और पृथ्वी पर नश्वर के रूप में जन्म लेना होगा और वहां ही रहना होगा।
इसके बाद वहाँ भगवान विष्णु प्रकट हुए और द्वारपालों ने विष्णु से कुमारों के श्राप को वापस लेने का अनुरोध किया। भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि कुमारों का श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता है, लेकिन वे उन्हें दो विकल्प देते हैं, पहला विकल्प पृथ्वी पर भगवान विष्णु के भक्त के रूप में सात बार जन्म लेने का और दूसरा विकल्प भगवान विष्णु के शत्रुओं के रूप में तीन बार जन्म लेने का था। जिसके बाद वे वैकुंठ में अपना पद दोबारा प्राप्त कर सकते हैं और उनके साथ स्थायी रूप से रह सकते हैं। जय और विजय सात जन्मों तक विष्णु से दूर नहीं रहना चाहते थे, वे दुश्मन बनने के दूसरे विकल्प के लिए सहमत हो गए। पहले जन्म में जय और विजय का जन्म हिरण्यक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में सत्ययुग में हुआ था, जिनका भगवान विष्णु ने वराह और नरसिंह का अवतार लेकर वध किया था। दूसरे जन्म में जय और विजय का जन्म रावण और कुंभकर्ण के रूप में त्रेता युग में हुआ था, और भगवान विष्णु द्वारा श्री राम और लक्ष्मण के अवतार में उनका वध किया गया। द्वापर युग के अंत में जय और विजय ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में अपना तीसरा जन्म लिया, जिनका भगवान श्री कृष्ण और बलराम द्वारा वध कर दिया गया था। इस तरह से जय और विजय यानी रावण और कुंभकर्ण को तीन जन्मों के बाद इस श्राप से मुक्ति मिली थी।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Jaya-Vijaya
2. https://bit.ly/2JAsEHM
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