गाँवों में भी दम तोड़ रही है, झांझी और टेसू की परम्परा

लखनऊ

 06-10-2019 10:00 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

पहले दशहरा पर्व के बाद झांझी और टेसू के विवाह के लिए पूर्णिमा तक हाथों में मिटटी के टेसू और झांझी लेकर लोगों के घरों में अनाज, पैसा मांगने के लिए बच्चों व बड़ों के झुण्ड दस्तक दिया करते थे। पहले इस खेल में लोग काफी रूचि दिखाया करते थे परन्तु अब समय के साथ लोगों की रूचि इस खेल से गायब होती जा रही है। खासकर यह खेल गांवों में बड़े ही शौक से खेला जाता था, बुजुर्गों में अब तो इस खेल को बचाने की फ़िक्र बची हुयी है।

कभी गाँवों में रात-रात भर बच्चों और बड़े लोगों के झुण्ड झांझी टेसू के खेल के लिए खूब धमाल किया करते थे। दशहरा के बाद से एक सप्ताह यानि पूर्णमासी तक गाँव की रात बहुत मजेदार हुआ करती थी। गाँव में झाँझी, टेसू लेकर बच्चों का झुण्ड आता था उन्हें देने के लिए घरो में पहले से ही अनाज अलग रख दिया जाता था। जिनके पास अनाज नही होता था, वह रुपए दे दिया करते थे। झांझी टेसू का खेल आपसी भाई चारे व प्रेम का हुआ करता था, इन दिनों में गाँव की लड़किया मंगल गीत गाया करतीं थीं, पूर्णिमा के दिन झांझी टेसू का विवाह किया जाता था। फिर सभी लोग बैलगाड़ियों से गाँव से दूर गंगा जाकर स्नान करते थे।

आज की व्यस्त जिंदगी के आगे शहर और कस्बो में तो पुरानी परम्पराएँ दम तोड़ ही रही हैं लेकिन गाँव में भी इनका वजूद समाप्त होता नजर आ रहा है। ऐसा ही झांझी टेसू की परम्परा के साथ हो रहा है, गांवों में इस परम्परा को भुलाया जा रहा है| झांझी टेसू से जुड़ी किवदन्ती टेसू की उत्पत्ति और इस त्योहार के आरंभ के सम्बन्ध में अनेक किवदंतियाँ प्रचलित है।

माना जाता है कि टेसू का आरम्भ महाभारत काल से ही हो गया था। कहा जाता है कि कुन्ती को विवाह से पूर्व ही दो पुत्र उत्पन्न हुए थे जिनंमें पहला पुत्र बब्बरावाहन था जिसे कुन्ती जंगल में छोड़ आई थी। वह बड़ा विलक्षण बालक था। वह पैदा होते ही सामान्य बालक से दुगनी रफ़्तार से बढ़ने लगा और कुछ सालों बाद तो उसने बहुत ही उपद्रव करना शुरू कर दिया। पाण्डव उससे बहुत परेशान रहने लगे तो सुभद्रा ने भगवान कृष्ण से कहा कि वे उन्हें बब्बरावाहन के आतंक से बचाएं, तो कृष्ण भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन काट दी। परन्तु कहा जाता है बब्बरावाहन ने अमृतपान किया था इसलिये वह मरा ही नही। तब कृष्ण ने उसके सिर को छेकुर के पेड़ पर रख दिया। लेकिन फिर भी बब्बरावाहन शान्त नहीं हुआ तो कृष्ण ने अपनी माया से सांझी को उत्पन्न किया और टेसू से उसका विवाह रचाया।

टेसू का स्वरूप आमतौर बांस का बनाया जाता है जिसमें मिट्टी की तीन पुतलियां फिट कर दी जाती हैं। जो क्रमश: टेसू राजा, दासी और चौकीदार की होती है या टेसू राजा और दो दासियां होती हैं। मध्य में मोमबत्ती या दिया रखने का स्थान होता है।

सन्दर्भ:-
1.
https://bit.ly/2VgllHG
2. https://bit.ly/30PVszH
3. https://www.youtube.com/watch?v=ioWVtgs4wA8



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