नवरात्रि के नौ दिन मां दूर्गा की आराधना की जाती है और अष्टमी या नौंवी तिथि पर कन्याओं को भोजन करवा नवरात्रि का समापन किया जाता है। नवरात्रि के पर्व को नौ दिनों तक उत्साह के साथ मनाया जाता है। माता के 9 दिनों के उपवास के साथ ही अष्टमी और नौवमी वाले दिन कन्याओं को भोज कराया जाता है। आज हम इस वीडियो के द्वारा जानेंगे अष्टमी और नवमी के दिन माता की पूजा करने और कन्याओं को भोज कराने की संपूर्ण विधि के बारे में।
नवरात्रि की अष्टमी तिथि को कन्याओं को भोजन करने की परंपरा है। आप क्या जानते हैं कन्या पूजन के लिए अष्टमी तिथि ही क्यों इतना महत्वपूर्ण माना गया है। हालांकि कुछ लोग अष्टमी की बजाय नवमी पर कन्या पूजन के बाद उन्हें भोजन बनाते हैं। आइए जानते हैं अष्टमी पर कन्याओं को भोजन उपलब्ध कराने का महत्व और इसके नियम क्या हैं।
अष्टमी पर कन्याओं को भोजन बनाने के नियम
नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है। यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है। इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन बनाने की परंपरा भी है, हालांकि नवरात्रि में हर दिन कन्याओं की पूजा की परंपरा है, लेकिन अष्टमी और नवमी को अवश्य ही पूजा की जाती है। 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है।
कन्या पूजन की विधि
एक दिन पूर्व ही कन्यायों को उनके घर जाकर निमंत्रण दें। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरा परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे पाते हैं। अब इन कन्याओं को आरामदायक और अच्छी जगह बिठाएँ। सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में अपने हाथों से अपने पैर को हिलाकर पानी से धोएं। उसके बाद कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुंकुम लगाएं। फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएँ। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।
सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=SDHzlchpmDE
2. https://bit.ly/2oje9yp
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