ई-रिक्शा का बढ़ता चलन और इसकी चुनौतियां

लखनऊ

 03-10-2019 02:05 PM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

वर्तमान में वाहन हमारी बुनियादी ज़रुरत बनते जा रहे हैं क्योंकि इनके माध्यम से ही हम एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से जाने में सक्षम हो पाते हैं। इन वाहनों की श्रेणी में एक स्थान ऑटो-रिक्शा (Auto Rickshaw) का भी है जो शहरी क्षेत्रों में परिवहन का एक आम साधन बन गया है। समय व्यतीत होने के साथ-साथ इसकी संरचना में भी कई परिवर्तन आये हैं और आज यह परिवर्तन इलेक्ट्रिक (Electric) रिक्शा या ई-रिक्शा के रूप में नज़र आ रहा है। हम में से सभी लोगों ने प्रायः इसका उपयोग किया होगा। यह भारत में ई-क्रांति का परिणाम है जो सभी वाहनों के विद्युतीकरण की ओर अग्रसर है। भारत जैसे देश में गरीब वर्ग में यह रिक्शा एक महत्वपूर्ण सेवा प्रदान करता है तथा साथ ही अशिक्षित वर्ग के लिए आमदनी का एक साधन भी बनता है।

जहां वाहनों को डीज़ल (Diesel), पेट्रोल (Petrol) या प्राकृतिक गैस (CNG) से चलाया जाता है, वहीं ई-वाहन या ई-रिक्शा बैटरी (battery) से संचालित होते हैं जिसमें प्रायः लेड (Lead) बैटरी का उपयोग किया जाता है। भारत के लाखों ई-रिक्शा दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहनों का दूसरा सबसे बड़ा संग्रह है। विश्लेषकों की मानें तो प्रतिदिन लगभग 6 करोड़ भारतीय लोग ई-रिक्शा की सवारी करते हैं तथा साधारण रिक्शा की अपेक्षा इसे अधिक पसंद करने लगे हैं। ई-रिक्शा का उपयोग पहले अवैध था किंतु इसके कुछ अच्छे प्रभावों के कारण 2015 में राष्ट्रीय संसद ने इसे वैध बनाया।

सरकार ई-वाहनों के प्रयोग को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है क्योंकि ई-वाहन प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करते हैं तथा इसका उपयोग तेल की लागत में भी कटौती करता है। इसके अतिरिक्त यह देश में बड़ी मात्रा में रोज़गार का सृजन भी करता है। राजधानी नई दिल्ली क्षेत्र में एक उद्यमी ने 'स्मार्ट ई' (Smart E) नाम से एक स्टार्टअप (Startup) भी लॉन्च किया है जिसके द्वारा 1000 ई-रिक्शा का संचालन किया जा रहा है।

सोसाइटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (Society of Manufacturers of Electric Vehicles - SMEV) के अनुसार, 2018-19 में भारत में लगभग 7.6 लाख ई-वाहन बेचे गए। जिनमें तीन-पहिया वाहनों की संख्या 6.3 लाख थी। हालांकि ई-रिक्शा एक बेहतर माहौल प्रदान करते हैं किंतु इनका कुछ दुरुपयोग भी देखा गया है। अक्सर इन्हें चलाने वाले चालकों के पास लाइसेंस (License) नहीं होता जिससे दुर्घटनाएं आम हो जाती हैं। इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी को सीटों के नीचे रखा जाता है जिससे वह चोरी हो जाती है। चालकों द्वारा ये गलत और अनुचित रूप से संचालित किये जाते हैं। वाहनों के खुले किनारों से सवारियों के बाहर लटकने या गिरने का जोखिम बना रहता है तथा इसकी बैटरी कभी-कभी गर्म हो जाती है, जिससे लोगों को गर्म सीट पर बैठना पड़ता है। इन सभी मुद्दों को सुलझाने हेतु सरकार और वाहन निर्माता अब इस पर कुछ नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाने के लिए करों में कटौती की है तथा बैटरी और चार्जिंग स्टेशनों (Charging stations) के लिए सब्सिडी (Subsidy) का प्रस्ताव भी दिया है। सभी तीन पहिया वाहनों को 2023 तक विद्युतीकृत करने की योजना बनाई गयी है। ई-वाहनों को विकसित करने हेतु सरकार ने जीएसटी (GST) में 7% कटौती की घोषणा भी की है। हालांकि सरकार द्वारा ई-वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिये कई योजनाएं बनाई जा रही हैं, किंतु इसके समक्ष कुछ चुनौतियां भी हैं जोकि निम्नलिखित हैं:
• भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग बुनियादी ढांचा अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है जिसके लिए सामुदायिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की पहल की गई है। बैटरियों को चार्ज करना एक गंभीर समस्या है क्योंकि यह 6 से 8 घंटे तक का समय लेता है।
• ई-वाहनों की लागत लीथियम-आयन बैटरी की लागत के कारण मुख्य रूप से बहुत अधिक है। 28% जीएसटी और भारत में लिथियम की कमी बैटरी की लागत को और भी बढ़ा देती है।
• भारत में नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रिड अवसंरचना का अभाव है जो ई-वाहनों के विकास के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2ncZnJa
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Electric_vehicle_industry_in_India
3. https://bit.ly/2lJMiFV



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