प्रत्येक वर्ष 26 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मानव समाज को परमाणु हथियार से होने वाले दुष्प्रभावों से अवगत कराता है तथा इन्हें पूर्ण रूप से समाप्त करने की ओर अग्रसर करता है। इस दिवस का लक्ष्य पूरे संसार से परमाणु हथियारों का निरस्त्रीकरण कर संसार को परमाणु हथियार मुक्त बनाना तथा संसार को इसके निरस्त्रीकरण से होने वाले लाभों से अवगत कराना है।
दरअसल परमाणु हथियार इतने भयावह हैं कि ये आने वाली कई पीढ़ियों को अपने हानिकारक प्रभाव से ग्रसित कर सकते हैं। इनका सर्वप्रथम उत्पादन मैनहट्टन परियोजना द्वारा द्वितीय विश्व-युद्धों के दौरान किया गया था जिसमें कई परमाणु हथियार बनाए गये थे। यह हथियार पारम्परिक हथियारों से बिल्कुल भिन्न होते हैं तथा रासायनिक प्रतिक्रियाओं के बजाय परमाणु से अपनी विनाशकारी शक्ति प्राप्त करते हैं। पारम्परिक हथियार प्रायः रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा शक्ति प्राप्त करते हैं।
रासायनिक प्रतिक्रिया की अपेक्षा एक परमाणु प्रतिक्रिया से लगभग दस लाख गुना अधिक ऊर्जा निकलती है और इस कारण यह अपेक्षाकृत विनाशकारी प्रभाव उत्पन्न करता है। परमाणु हथियार की शक्ति को विस्फोट में उत्पन्न हुई ऊर्जा की कुल मात्रा द्वारा मापा जा सकता है। पारंपरिक हथियारों की तुलना में परमाणु हथियार बड़े पैमाने पर मृत्यु और विनाश का कारण बनते हैं और सामूहिक विनाश के लिए उपयोग किये जाते हैं। परमाणु विस्फोट में बड़ी मात्रा में रेडियोएक्टिव (Radioactive) पदार्थ का उत्पादन होता है जो परमाणु विकिरण की घातक किरणों को बाहर निकालता है। इस विकिरण से मानव की तुरंत मृत्यु हो जाती है तथा यह गम्भीर व आनुवांशिक बीमारियों का कारण भी बन सकता है। यह पर्यावरण प्रदूषण को भी विभिन्न रूपों में प्रभावित करता है। जबकि पारम्परिक हथियारों में प्रायः ऐसा नहीं होता।
ये हथियार निम्न-लिखित प्रकार के होते हैं जिन्हें बड़े पैमाने पर विस्फोट क्षति और शहरों में नागरिक आबादी को मारने के लिए डिज़ाइन (Design) किया गया था:
शुद्ध विखंडन हथियार
इन हथियारों में केवल विखंडन की प्रतिक्रिया होती है और इसलिए इन्हें शुद्ध विखंडन हथियार कहा जाता है। इस तरह के बम हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए थे जिनका भयावह प्रभाव आज भी वहां देखने को मिलता है। इन्हें डिज़ाइन करना और इनका निर्माण करना अपेक्षाकृत सरल होता है।
बूस्टेड विखंडन हथियार (Boosted Fission Weapons)
ऐसे हथियारों की दक्षता को इनमें कुछ सामग्रियों की मात्रा को मिलाकर बढ़ाया जा सकता है जो संलयन प्रक्रिया से गुज़रती है।
थर्मोन्यूक्लियर हथियार (Thermonuclear weapon):
थर्मोन्यूक्लियर हथियारों को हाइड्रोजन (Hydrogen) बम भी कहा जाता है। अधिकांश इनका उत्पादन संलयन प्रतिक्रिया के द्वारा होता है। यह सबसे शक्तिशाली परमाणु हथियार है। अब तक परीक्षण किया जा चुका सबसे शक्तिशाली परमाणु हथियार ‘त्सार बोम्बा’ (Tsar Bomba) है जिसे 30 अक्टूबर 1961 में विस्फोटित किया गया था।
संवर्धित विकिरण हथियार
संवर्धित विकिरण हथियार को न्यूट्रॉन (Neutron) बम भी कहा जाता है। ये छोटे थर्मोन्यूक्लियर हथियार हैं, जिन्हें गहन परमाणु विकिरण का उत्पादन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
नमकीन परमाणु हथियार (Salted Nuclear Weapons)
इन्हें कोबाल्ट (Cobalt) बम भी कहा जाता है जो प्रायः थर्मोन्यूक्लियर हथियार हैं। इनका प्रभाव लम्बे समय तक रहता है क्योंकि ये रेडियोधर्मी विकिरणों को उत्सर्जित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर रेडियोधर्मी संदूषण होता है।
शुद्ध संलयन हथियार
ये ऐसे संलयन हथियार हैं जिन्हें थर्मोन्यूक्लियर विस्फोट के लिए विखंडित करने की आवश्यकता नहीं होती। इन हथियारों को विकसित करने के लिए अमेरिका में सक्रिय अनुसंधान चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।
अनुमानों से पता चलता है कि भारत के पास भी ऐसे लगभग 130-140 परमाणु हथियार हैं किंतु इसकी पुष्टि नहीं की गयी है। भारत में प्रायः जैविक, रासायनिक तथा परमाणु तीनों प्रकार के हथियारों का उत्पादन किया गया है। ये सभी हथियार मानव तथा प्रकृति दोनों के लिए ही भयावह हैं जिनके प्रभाव निम्नलिखित हैं:
• परमाणु विस्फोट से बहुत ही तेज़ ध्वनि उत्पन्न होती है जो किसी के कान के परदे को फाड़ने तथा फेफड़ों को घायल करने के लिए पर्याप्त होती है।
• विस्फोट से ऊष्मीय विकिरण निकलते हैं जो त्वचा को जला सकते हैं।
• परमाणु विस्फोट से बड़ी मात्रा में न्यूट्रॉन और गामा (Gamma) विकिरण निकलते हैं जो बहुत हानिकारक हो सकते हैं।
• परमाणु विस्फोट से रेडियोधर्मी विकिरण निकलते हैं जो पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते हैं और आनुवांशिक रोगों के लिए भी उत्तरदायी होते हैं।
मानव जीवन पर उपरोक्त भयावह प्रभावों को देखते हुए 1970 में एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय संधि विकसित की गयी जिसे परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी- NPT) के नाम से जाना गया। इस संधि का उद्देश्य परमाणु हथियारों को निरस्त्रीकृत करना है ताकि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोका जा सके तथा केवल शांतिपूर्ण उपयोग में इसके सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके। इस संधि की घोषणा 1965-1968 के बीच जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित एक संयुक्त राष्ट्र-प्रायोजित संगठन द्वारा की गई थी। यह संधि मुख्य रूप से परमाणु अप्रसार, परमाणु हथियार निरस्त्रीकरण और परमाणु तकनीक का शांतिपूर्वक उपयोग करने के अधिकार पर आधारित है। पांच परमाणु हथियार वाले देशों सहित संधि में कुल 191 देश शामिल हुए हैं किंतु भारत, पाकिस्तान और इज़रायल इस संधि का हिस्सा नहीं हैं।
संधि के प्रारम्भिक चरण में पांच परमाणु विकसित देशों अमेरीका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस ने भाग लिया। इस संधि के तहत NPT के सदस्य देश न तो किसी ग़ैर-परमाणु देशों को यह हथियार दे सकते हैं और न ही इसे बनाने में दूसरे देश की मदद कर सकते हैं। केवल इन देशों को ही शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग की छूट दी गयी है। यह संधि परमाणु हथियारों के विकास को समाप्त करने पर ज़ोर देती है ताकि भविष्य में कोई भी देश परमाणु हथियार का गलत प्रयोग न कर सके। इन्हीं उद्देश्यों को बार-बार याद दिलाने तथा इनकी पूर्ति के लिए ही संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसम्बर, 2013 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार पूर्ण उन्मूलन दिवस के प्रस्ताव को पारित किया गया था।
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संदर्भ:
1. http://www.nucleardarkness.org/nuclear/nuclearandconventionalweapons/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/India_and_weapons_of_mass_destruction
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Treaty_on_the_Non-Proliferation_of_Nuclear_Weapons
4. https://www.un.org/disarmament/wmd/nuclear/npt/
5. https://www.nap.edu/read/11282/chapter/8#74
6. http://www.unfoldzero.org/?p=action_sep26
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