संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पहली बार परमाणु शस्त्रों के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दिवस 26 सितम्बर को मनाने की घोषणा की गयी थी। यह दिवस मानव जाति को पूरी तरह से परमाणु शस्त्रों के निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने के लिए संकल्पित करता है। यह नेताओं और जनता को ऐसे हथियारों को खत्म करने के वास्तविक लाभों और उन्हें नष्ट करने की सामाजिक और आर्थिक लागतों के बारे में शिक्षा प्रदान करता है।
संयुक्त राष्ट्र में इस दिवस को मनाने का विशेष महत्व है। इसकी सार्वभौमिक सदस्यता और परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दों को लोगों के समक्ष पेश करने की विशेषता इसे काफी महत्वपूर्ण बनाती है। परमाणु शस्त्र मानवता की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जिसके बिना विश्व में शांति और सुरक्षा बरकरार रहेगी। इसके बारे में 1946 में महासभा द्वारा प्रस्ताव रखा गया था, जिसने परमाणु ऊर्जा के नियंत्रण और परमाणु हथियारों और सभी प्रमुख हथियारों के उन्मूलन के लिए विशिष्ट प्रस्ताव बनाने के लिए जनादेश के साथ परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की थी।
1959 में, महासभा ने सामान्य और पूर्ण निरस्त्रीकरण के उद्देश्य का समर्थन किया। वहीं 1978 में, निरस्त्रीकरण के लिए समर्पित महासभा के पहले विशेष सत्र में परमाणु निरस्त्रीकरण को प्राथमिकता दी गई। प्रत्येक संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इस लक्ष्य को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है। फिर भी, आज लगभग 14,000 परमाणु हथियार विश्व में मौजूद हैं। ऐसे हथियार रखने वाले देशों के पास अपने परमाणु शस्त्रागार को आधुनिक बनाने के लिए अच्छी तरह से वित्त पोषित, दीर्घकालिक योजनाएं हैं। भारत ने पहली बार 1974 में 12 किलोटन विस्फोटक उपकरण के विस्फोट के साथ परमाणु हथियार का परीक्षण किया था। भारत सरकार अपने परमाणु शस्त्रागार की स्थिति पर लगातार चुप रही है, और इसके परिणामस्वरूप भारत के परमाणु हथियार रहस्यमय हैं। भारत की पहली परमाणु वितरण प्रणाली में संभावित हमले वाले विमान पहले जैगुआर (Jaguar), फिर मिग -27 (MiG-27) और मिराज 2000 (Mirage 2000) हैं। भारतीय परमाणु हथियारों को सामरिक बल कमान के अधिकार में रखा गया है।
सूर्या मिसाइल (Missile) एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक (Ballistic) मिसाइल है जो भारत द्वारा विकसीत करने का अनुमान किया गया है। ‘द नॉनप्रोलिफरेशन रिव्यू’ (The Nonproliferation Review) में प्रकाशित 1995 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूर्या इंटरकॉन्टिनेंटल (Intercontinental) बैलिस्टिक मिसाइलों में से एक का कोडनेम (Codename) है। माना जाता है कि डीआरडीओ (DRDO) ने 1994 में इस परियोजना की शुरुआत की थी लेकिन इस रिपोर्ट की पुष्टि 2010 तक किसी अन्य स्रोत से भी नहीं हुई थी और ना ही भारत सरकार के अधिकारियों ने इस परियोजना के अस्तित्व की पुष्टि की है।
भारत में वाणिज्यिक संचालन में 14 छोटे, 2 बड़े निर्माणाधीन और 10 योजनाबद्ध परमाणु ऊर्जा रिएक्टर (Reactor) हैं। 14 संचालित रिएक्टर में (कुल 2548 MWe) निम्न शामिल हैं:
• संयुक्त राज्य अमेरिका से दो 150 MWe BWR, जो 1969 में शुरू हुए, अब स्थानीय रूप से समृद्ध यूरेनियम (Uranium) का उपयोग करते हैं और सुरक्षा उपायों के तहत हैं,
• दो छोटे कनाडाई PHWR (1972 और 1980), जो भी सुरक्षा में हैं,
• कनाडाई डिज़ाइनों (Designs) पर आधारित दस स्थानीय PHWRs, दो 150 और आठ 200 MWe, और
• तारापुर में दो नए 540 MWe और दो 700 MWe संयंत्र (तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन के रूप में जाने जाते हैं)।
भारतीय सुरक्षा नीतियां निम्नलिखित कारणों से संचालित की गयी हैं:
• क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में पहचाने जाने के निश्चय के कारण।
• चीन के बढ़ते परमाणु हथियारों और मिसाइल वितरण कार्यक्रमों के साथ बढ़ती चिंता के कारण।
• परमाणु हथियारों को भारत में पहुंचाने की पाकिस्तान की क्षमता की चिंता के कारण।
भारत को "परमाणु रंगभेद" के संदर्भ में भी चर्चा में लाया गया है। 1998 में भारत के पहले भूमिगत परमाणु परीक्षण से कई साल पहले, व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि पारित की गई थी। ऐसा कहा जाता है कि संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत को राज़ी करने का काफी प्रयास किया गया था। लेकिन भारत द्वारा पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण में भाग लेने से इनकार कर दिया गया, क्योंकि विरोधियों के पास भी परमाणु हथियार मौजूद हैं, इसलिए बचाव को देखते हुए इस संकल्प को लेने में भारत विफल रहा। भारत का यह मानना है कि परमाणु मुद्दे सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हैं।
लखनऊ कई डीआरडीओ अनुसंधान और प्रयोगशालाओं का घर है जो भारत के परमाणु शस्त्रागार कार्यक्रमों के विस्तार के लिए उत्तरदायी हैं। वहीं यदि कभी लखनऊ में परमाणु हमला होता है तो वह कितने क्षेत्र को प्रभावित करेगा, इसका अनुमान आप इस लिंक (https://nuclearsecrecy.com/nukemap/) से लगा सकते हैं। भारत के पास जहां इतने परमाणु हथियार हैं, वहीं भारत में “नो फर्स्ट यूज़” (No First Use) नीति को भी लागू किया गया है। साथ ही भारतीय एक "न्यूनतम आत्मरक्षा" सिद्धांत का भी पालन करते हैं, जिसमें हमले से बचाव के लिए न्यूनतम परमाणु हथियारों का उपयोग किया जाएगा।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Nuclear_proliferation
2.https://www.un.org/en/events/nuclearweaponelimination/
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Surya_missile
4.https://nationalinterest.org/blog/buzz/india-vs-pakistan-could-be-nuclear-war-where-billions-die-82601
5.https://nuclearsecrecy.com/nukemap/
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