हर वर्ष 23 सितंबर को शरद्विषुव (इक्वीनॉक्स- Equinox) होता है। अर्थात वो समय-बिंदु जब सूर्य भूमध्य रेखा की सीध में होता है। यह समय-बिंदु हर साल दो बार होता है। एक 20 मार्च के आस-पास जिसे वसन्त विषुव कहा जाता है और एक 23 सितंबर के आसपास जिसे शरद्विषुव कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह वो क्षण है जिसमें दृश्यमान सूर्य का केंद्र भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर होता है।
‘इक्वीनॉक्स’ शब्द लैटिन भाषा के शब्द एक्वस (समान) और नॉक्स (रात्रि) से लिया गया है। विषुव शब्द संस्कृत का है जो दिन और रात्रि के समान होने को इंगित करता है अर्थात इस समय-बिंदु पर दिन और रात की अवधि समान होती है। जैसा कि हम जानते ही हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर 23½° झुके हुए सूर्य के चक्कर लगाती है। इस प्रकार पूरे वर्ष में पृथ्वी एक बार सूर्य की ओर झुकी रहती है तथा एक बार सूर्य के दूसरी ओर झुकी होती है। अतः वर्ष में दो बार ऐसी स्थिति भी आती है, जब पृथ्वी का झुकाव सूर्य के इधर-उधर न होकर ठीक बीच में होता है और यह स्थिति ही विषुव कहलाती है।
यदि दो लोग भूमध्य रेखा से समान दूरी पर खड़े हों तो उन्हें दिन और रात की लंबाई बराबर महसूस होगी। ग्रेगोरियन (Gregorian) वर्ष के आरंभ होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्ध की ओर अग्रसर होता है। वर्ष के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्ध से होकर पुनः दक्षिणी गोलार्ध पहुंच जाता है। इस तरह से सूर्य वर्ष में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुज़रता है। हिन्दू नव वर्ष एवं भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर (Calendar) व विश्व में अन्य कई नव वर्ष इसी समय के निकट ही आरंभ हुआ करते हैं। उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले लोगों के लिए विषुव के अगले छह महीने लगातार दिन वाले होते हैं जबकि दक्षिणी ध्रुव के लोगों के लिए छह महीने अंधेरी रात वाले होते हैं। विषुव के इस विशेष दिन दोनों ध्रुवों के लोगों को सूर्य का एक जैसा प्रकाश देखने को मिलता है, जबकि दोनों जगह का मौसम अलग-अलग होता है।
वैज्ञानिक तरीके से बात करें तो विषुव के दौरान सौर झुकाव 0° होता है। सौर झुकाव पृथ्वी के अक्षांशों की स्थिति का वर्णन करता है जहां सूर्य भूमध्य रेखा के एक सीध में होता है। इस क्षेत्र में सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह पर लंबवत चमकती हैं या एक समकोण बनाती हैं। विषुव से पहले या बाद में यह सौर बिंदु उत्तर या दक्षिण की ओर पलायन करता है। मार्च के बाद यह उत्तर की ओर पलायन करता हैं क्योंकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर झुकने लगता है। 21 जून के आसपास यह सौर बिंदु कर्क रेखा (23.5°N) को केंद्रित करता है। इस समय जून संक्रांति होती है जिसके बाद यह सौर बिंदु दक्षिण की ओर आगे बढ़ता है। सितम्बर विषुव के बाद सौर बिंदु दक्षिण की ओर जाता है क्योंकि इस समय दक्षिणी गोलार्ध सूर्य की ओर झुकने लगता है। 21 दिसम्बर के आसपास यह मकर रेखा पर पहुंचता है तथा इस समय फिर दिसम्बर संक्रांति मनाई जाती है। विषुव के दौरान दिन और रात दोनों 12 घंटे के हो जाते हैं।
अंतरिक्ष में हमारे भूस्थैतिक उपग्रह भूमध्यरेखीय कक्षा में पृथ्वी की सतह से 35,786 किमी (22,236 मील) ऊपर स्थापित किये गये हैं। इस कारण विषुव का प्रभाव इन उपग्रहों पर भी पड़ता है। विषुव के दौरान सूर्य के सीधे विकिरण से, उपग्रह संकेत प्रेषित करने से बाधित हो सकते हैं। भूमध्य रेखा के चारों ओर कई संचार उपग्रह कक्षा में हैं। सौर विकिरण के प्रभाव से इंटरनेट कनेक्शन (Internet connection) धीमा पड़ सकता है तथा रेडियो (Radio) स्थैतिकी प्रभावित हो सकती है। पृथ्वी के झुकाव के कारण, उपग्रह वर्ष का अधिकांश समय पृथ्वी की छाया के ऊपर या नीचे बिताते हैं। परन्तु उपग्रहों का कुछ समय छाया में भी व्यतीत होता है जिसे हम ग्रहण के नाम से जानते हैं। प्रत्येक ग्रहण 44 दिनों तक रहता है, जिसके दौरान एक उपग्रह कुछ समय ग्रहण (छाया) में बिताता है। क्योंकि हमारे उपग्रह सभी कार्यों के लिए विद्युत शक्ति पर निर्भर हैं, इसलिए ग्रहण काल के दौरान हमारे सभी उपग्रह लिथियम आयन बैटरी (ली-आयन- Lithium ion batteries) का उपयोग करते हैं। ये हमारे उपग्रहों को ग्रहण काल में कार्य करने की अनुमति देते हैं। उपग्रह के सभी सामान्य कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाली उपग्रहों की बैटरी पर्याप्त शक्तिशाली होनी चाहिए, जिसमें संचार, स्टेशन-कीपिंग (Station-keeping) के लिए प्रणोदन, टेलीमेट्री (Telemetry) और नियंत्रण कार्य, हीटर (Heaters), पथ प्रदर्शन आदि कार्य शामिल हैं। हमारा लखनऊ भी इसरो टेलीमेट्री ग्राउंड स्टेशन (ISRO Telemetry Ground Station) का केंद्र है, जो सभी उपग्रहों और अन्य प्रक्षेपण विमानों के मार्ग को खोजता है तथा अन्य सहायता भी प्रदान करता है।
उपग्रहों के साथ-साथ विषुव शनि ग्रह को भी प्रभावित करता है। शनि अपने चमकीले और शानदार छल्लों (Rings) के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन 2009 के विषुव के दौरान शनि की ली गई तस्वीरों में, छल्ले में एक अलग रोशनी दिखाई दी, क्योंकि इस समय सूरज की किरणें सीधा इन छल्लों के किनारे से टकराती हुई गुज़री। अंतर्राष्ट्रीय कैसिनी मिशन (Cassini Mission) ने 12 अगस्त 2009 को पहली बार शनि पर हुए विषुव को अपने कैमरे में कैद किया। शनि के विषुव लगभग हर 15 पृथ्वी वर्ष में होते हैं और अगला 6 मई 2025 को होगा। जब शनि के विषुव को पृथ्वी से देखा जाता है तो इसके छल्ले एक पतली रेखा के रूप में किनारे पर दिखाई देते हैं। कभी-कभी भ्रमित रूप से ये छल्ले गायब हो जाते हैं। कैसिनी के विस्तृत कोणीय कैमरे ने आठ घंटे में 75 चित्र खींचे जिन्हें बाद में श्रेणीबद्ध किया गया और मोज़ेक (Mosaic) बनाने के लिए आपस में जोड़ा गया। इस दौरान जैसे ही सूर्य का प्रकाश एक सीध में छल्लों से टकराता है, यह छल्लों को ऊपर या नीचे से रोशन करने के बजाय गृह पर छायांकित कर देता है और ग्रह पर इन्हें एक एकल संकीर्ण बैंड (Band) के रूप में संकुचित कर देता है। इस समय छल्ले सामान्य से अधिक गहरे अंधकारमय दिखाई देते हैं। इससे बाहरी संरचनाएं सामान्य से अधिक चमकीली दिख सकती हैं। कैसिनी ने 13 वर्षों तक शनि प्रणाली की खोज की और इससे जुड़ी विभिन्न जानकारियों का पता लगाया।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Equinox
2. https://www.nationalgeographic.org/encyclopedia/equinox/
3. https://bit.ly/2mvLTHT
4. http://www.esa.int/spaceinimages/Images/2019/03/Saturn_at_equinox
5. http://www.planetary.org/blogs/emily-lakdawalla/2009/2041.html
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.flickr.com/photos/ikewinski/16260989214
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