भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने हेतु अंग्रेजों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी किन्तु इसकी संप्रुभता को पूरे भारत में फैलाने के लिए यह आवश्यक था कि वे भारत की रियासतों को अपने साथ मिला पाएं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भारत में मैत्री संधि या सहायक संधि का विस्तार किया। इसके विस्तार के लिये लॉर्ड वैलेस्ली, जो 1798-1805 के बीच बंगाल के गवर्नर जनरल (Governor General) थे, को उत्तरदायी माना जाता है।
वैलेस्ली भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद का विस्तार करना चाहते थे और इसलिए भारत को ब्रिटेन के साम्राज्य में बदलने के लिए उन्होंने खुद को भारत में स्थापित किया। इस संधि का एक मुख्य उद्देश्य यह भी था कि वे भारत से फ्रांसीसी प्रभाव को पूर्णतः नष्ट करना चाहते थे। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए वैलेस्ली ने भारत के राजाओं की उत्सुकता का लाभ उठाते हुए एक नीति, जिसे सहायक संधि या सब्सिडियरी एलायंस (Subsidiary alliance) कहा जाता है, का विस्तार किया। इस नीति का मुख्य उद्देश्य राज्यों को पूरी तरह से अंग्रेजों पर निर्भर बनाना था। संधि के कुछ नियम निम्नलिखित थे:
• सहायक गठबंधन करने वाले शासक किसी अन्य शक्ति या सत्ता के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने के लिए स्वतंत्र नहीं होंगे। उन्हें अन्य शक्तियों के साथ आपसी बातचीत करने की अनुमति अंग्रेजों से प्राप्त करनी होगी।
• जिन शासकों के राज्य तुलनात्मक रूप से अधिक मज़बूत और शक्तिशाली थे, उनकी सेनाओं को ब्रिटिश अधिकारियों के अधीन रखा जायेगा।
• सहायक गठबंधन में प्रवेश करने वाले राजाओं के प्रभुत्व की सुरक्षा अंग्रेज़ी सेना की ज़िम्मेदारी होगी, लेकिन अंग्रेज़ी सेना की देखरेख में आने वाले खर्चों का वहन राजाओं को करना होगा।
• कंपनी ने सेनाओं को संरक्षित राज्यों की सीमा के पास रखा और उनसे नकदी एकत्रित की।
• कंपनी ने अपनी सेनाओं को राज्यों की सीमा के भीतर स्थापित किया तथा उसके अंतर्गत आने वाले प्रदेशों को भी अपने अधीन किया।
इस नीति का पहला शिकार हैदराबाद के निज़ाम बने। 1801 में अवध के नवाब सआदत अली खान ने भी लॉर्ड वैलेस्ली के प्रभाव से इस गठबंधन में प्रवेश किया जिसके फलस्वरूप अवध के आधे हिस्से को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया गया। संधि के लिए जब वैलेस्ली कलकत्ता से लखनऊ आये तो वे अपने साथ चार्ल्स डी ओयली को भी ले आये। डी ओयली ने नवाब और वैलेस्ली की मुलाकात के कई चित्र बनाये और उन्हें जल-रंगों से सुशोभित किया। उनकी इस मुलाकात का ज़िक्र डी ओयली द्वारा लिखित किताब ‘द यूरोपियन इन इंडिया’ (The european in india) में भी किया गया है। संधि के बाद अवध का आधे से भी अधिक उपजाऊ भाग ब्रिटिश सेना के अधीन हुआ। इस क्षेत्र की वार्षिक राजस्व आय 135 लाख रुपये थी जो संधि के बाद ब्रिटिश सेना के अधीन हो गयी थी। इस संधि के लिए नवाब ने अपनी अनुशासित सेना को बेहद महंगी ब्रिटिश सेना के साथ एकीकृत कर दिया था। संधि के बाद ब्रिटिश कम दरों पर अवध के विशाल खज़ाने का उपयोग करने में सक्षम हो गये थे। उन्हें अवध के सशस्त्र बलों को चलाने का भी राजस्व प्राप्त हुआ। अवध के साथ सहायक गठबंधन ने ब्रिटिशों को रणनीतिक लाभ प्राप्त करने में सहायता प्रदान की। अवध के नवाब को अपनी सुरक्षा के लिए कंपनी को प्रतिवर्ष एक निर्धारित राशि का भुगतान करना पड़ता था। यह राशि प्रति वर्ष 76 लाख रुपये निर्धारित की गई थी।
अवध के नवाब सआदत अली खान के साथ हुई इस संधि ने अवध को ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिये एक सहायक गठबंधित राज्य बनाया और अंततः भारत के अधिकांश हिस्सों को अपने नियंत्रण में लिया।
सन्दर्भ:
1. http://vkpeek.blogspot.com/2012/05/lucknow-gentleman.html
2. http://vkpeek.blogspot.com/2012/05/lucknow-series.html
3. https://bit.ly/2m8kuv8
4. https://www.gktoday.in/gk/subsidiary-alliance-system-by-lord-wellesley/
5. http://www.historydiscussion.net/british-india/wellesley-aims-policy-and-estimate/5939
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