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मनुष्य द्वारा पर्यावरण में की गई छेड़छाड़ के कारण हमने कई महत्वपूर्ण प्रजातियों को खो दिया है। जिनमें से एक है पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुकी “गैस्ट्रिक-ब्रूडिंग मेंढक” की प्रजाति, यह पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के स्वदेशी मेंढक थे और इनकी केवल दो प्रजातियां थीं, जो 1980 के दशक के मध्य में विलुप्त हो गईं। ये मेंढक सामान्य मेंढकों की तरह ही दिखते थे बस यह बाकी मेंढकों से भिन्न इसलिए थे क्योंकि इनमें मादा मेंढक अपने अंडों को निगल लेती थी और उनके परिपक्व होने पर वह उन अंडों को मुह से बाहर निकालती थी।
मादाओं में पाए जाने वाले अंडे व्यास में 5.1 मिमी तक मापे गए, ज्यादातर मादा मेंढकों द्वारा लगभग 40 अंडे दिये जाते थे, जो पेट में पाए जाने वाले किशोरों की संख्या से लगभग दोगुना (21-26) होते थे। इसका मतलब दो चीजों में से एक हो सकता है, कि या तो मादा सभी अंडों को निगलने में विफल रहती होगी या निगलने वाले पहले कुछ अंडे पच जाते होंगे। साथ ही सबसे रोचक बात तो यह है कि जब मादा द्वारा अंडों को निगला जाता था, तब उसका पेट किसी भी अन्य मेंढक की प्रजाति से अलग नहीं होता था। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक अंडे के चारों ओर जेली में प्रोस्टाग्लैंडीन (prostaglandin) E2 (PGE2) नामक पदार्थ होता है, जो पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड के उत्पादन को रोक देता था।
वहीं माना जाता है कि गैस्ट्रिक-ब्रूडिंग मेंढक कि ये अद्वितीय प्रजाति मानव द्वारा रोगजनक कुकुरमुत्ता को निवास स्थल में लाने के कारण से विलुप्त हुई थी। दोनों प्रजातियों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की संकट सूची और ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण अधिनियम 1999 के तहत विलुप्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया है; हालाँकि, वे अभी भी क्वींसलैंड के प्रकृति संरक्षण अधिनियम 1992 के तहत लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध हैं। दूसरी ओर वैज्ञानिकों द्वारा क्लोनिंग की एक विधि, दैहिक-कोशिका नाभिकीय हस्तांतरण का उपयोग करके गैस्ट्रिक-ब्रूडिंग मेंढक की प्रजातियों को वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ का यह अनुमान है कि कम से कम एक तिहाई ज्ञात उभयचर प्रजातियों को विलुप्त होने का खतरा है, जो पक्षियों या स्तनधारियों की तुलना में अधिक है। उभयचरों के विलुप्त होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है उनके निवास स्थान की क्षति या पतन और तेजी से फैलने वाली संक्रामक बीमारी चितरीडिओमैक्सिस (chytridiycycosis)। उभयचर की व्यवस्थित आबादी विलुप्त होने वाली कई प्रजातियों के लिए एकमात्र संरक्षण की उम्मीद बन सकती है। जिसके लिए AZA’s Amphibian Taxon Advisory Group से मान्यता प्राप्त चिड़ियाघरों और मछलीघर को उभयचर के संरक्षण के लिए रणनीतिक, टिकाऊ और प्रभावी कार्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Gastric-brooding_frog
2. https://news.mongabay.com/2013/11/strange-mouth-brooding-frog-driven-to-extinction-by-disease/
3. https://www.aza.org/amphibian-conservation