आज मुस्लिम समुदाय का पवित्र पर्व मुहर्रम है जो मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिये बहुत अहमियत रखता है। इस दिन को उत्साह के रूप में नहीं बल्कि शहादत के रूप में मनाया जाता है। यह शहादत पैगंबर मुहम्मद साहब के पोते हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की है जो कर्बला के युद्ध में बेरहमी से मारे गये थे। उनकी शहादत को याद करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मुहर्रम के दिन शोभायात्रा निकाली जाती है जिसे अल-मवकिब अल हुसैनिय्या (al-mawakib al-husayniyya) कहा जाता है। इस शोभायात्रा में मुहम्मद के प्रिय घोड़े (खच्चर) जुल्जानह (Zuljanah) के रूप में एक घोड़े को भी शामिल किया जाता है। जुल्जानह को अलेक्जेंड्रिया (Alexandria) के शासक अल-मुक्कवीस ने पैगम्बर मुहम्मद को उपहार स्वरूप भेंट किया था जो दुल दुल नाम से प्रसिद्ध हुआ। दुल दुल पैगंबर को बहुत प्रिय था और इसका उपयोग उन्होंने अपनी कई लड़ाइयों में भी किया। बाद में मुहम्मद ने दुल दुल को अपने पोते हुसैन इब्न अली को भेंट कर दिया। इस घोड़े पर बैठकर हुसैन सवारी किया करते थे। इसका उपयोग कर्बला युद्ध से कुछ समय पहले कासिम जोकि हुसैन के दामाद थे, की शादी में भी किया गया था। कर्बला के युद्ध के दौरान इसने हुसैन का बहुत वफादारी और बहादुरी से साथ दिया किंतु अंततः यह भी मारा गया।
ऐसा माना जाता है कि दुल दुल सफेद रंग का तथा बहुत चमकदार घोड़ा था। हर साल मुहर्रम में एक घोड़े को अच्छी तरह से सजाया जाता है और फिर इसे शोभायात्रा के जुलूस में दुल दुल के रूप में शामिल किया जाता है। लखनऊ स्थित इमामबाड़ा जोकि अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, में भी एक बेदाग और चमकदार सफेद घोड़े के साथ मुहर्रम के दिन शोभा यात्रा निकाली जाती है। यूं तो हर जगह की शोभायात्रा में एक घोड़े को शामिल किया जाता है किंतु इमामबाड़ा का यह घोड़ा कुछ खास है क्योंकि इसे दुल दुल की जीवित प्रतिकृति के रूप में चुना गया है जिसे विशेष रूप से शोभायात्रा के उद्देश्य के लिए ही रखा गया था।
इस घोड़े के रखरखाव का भुगतान हुसैनाबाद और सम्बंध ट्रस्ट (एचएटी-HAT) द्वारा किया जाता है, जिसे 1838 में अवध नवाब मुहम्मद अली शाह द्वारा स्थापित किया गया था। इस ट्रस्ट की आय का उपयोग नवाबी स्मारकों के रखरखाव से लेकर धार्मिक समारोहों और अनुष्ठानों के प्रदर्शन तक के उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह घोड़ा जब 11 महीने का था तब इसे एचएटी द्वारा खरीदा गया था जिसका अन्य किसी कार्य के लिये उपयोग नहीं किया जाता सिवाय मुहर्रम जुलूस में शामिल होने के। इस घोड़े को स्वस्थ (fit) रखने हेतु इसे दिन में दो बार परिसर से टहलने के लिए बाहर निकाला जाता है और नियमित रूप से चिकित्सकीय जांच भी की जाती है।
मुहर्रम का दिन घोड़े के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता क्योंकि कई दिनों तक अलग रह रहे घोड़े को अचानक लाखों लोगों के जुलूस में शामिल किया जाता है। दुल दुल प्रेम के माध्यम से प्राप्त की गई ताकत या पराक्रम का प्रतीक है जो सभी बाधाओं को आसानी से पार करने की शक्ति प्रदान करता है।
संदर्भ:
1. http://mulography.co.uk/the-prophet-and-his-mule/
2. https://bit.ly/2krUrik
3. https://bit.ly/2m2rABm
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