रामपुर एक ऐसे भूभाग पर बसा हुआ है जिसको प्राचीन महाभारत काल का माना जाता है। यह प्राचीन पांचाल क्षेत्र के भूभाग में आता है। प्राचीन पांचाल दो भागों में विभाजित था उत्तर पांचाल और दक्षिण पांचाल। उत्तर पांचाल की राजधानी थी अहिछत्र। अहिछत्र रामपुर के नज़दीक ही स्थित है। यह वर्तमान समय में रामपुर से सटे जिले बरेली का हिस्सा है। जबकि दक्षिण पांचाल की राजधानी थी काम्पिल्य जो कि अहिछत्र की तरह प्रचलित नहीं है। काम्पिल्य का इतिहास और यहाँ की पुरातात्विक सम्पदा अत्यंत ही महत्वपूर्ण है जिसका प्रमाण यहाँ पर हुए विभिन्न उत्खननों से मिलता है। पांचाल महाभारत में वर्णित है और महाभारत के ही कथन के अनुसार वहां पर महाराज द्रुपद का शासन था। काम्पिल्य में ही यग्नकुंड में द्रौपदी का जन्म माना जाता है। जो राज्य कभी महाभारत के अनुसार पांडवों का ससुराल हुआ करता था व महाभारत के सबसे शकितशाली व्यक्तित्व का घर रहा था वो आज वर्तमान परिदृश्य में अपनी पहचान से धूमिल होता जा रहा।
काम्पिल्य उत्तरप्रेदश के फर्रुखाबाद ज़िले में स्थित है। यहाँ पर स्थित द्रौपदी कुंड वर्तमान काल में जलकुंभियों से लदा पड़ा है। यदि इतिहास की बात की जाए तो सन 1878 में अलेक्जेंडर कनिंघम के आदेश पर पहली बार इसका सर्वेक्षण किया गया। 1975-76 में जब काम्पिल्य की खुदाई की गई तो प्राकृतिक मिट्टी की ऊपरी सतह पर चित्रित धूसर मृद्भांड संस्कृति की परत पाई गई जो 2.4 मीटर मोटी थी। यह प्राचीन शहर महाभारत में वर्णित अन्य महत्वपूर्ण शहर, इन्द्रप्रस्थ पुरातात्विक स्थल से करीब 300 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान चित्रित धूसर मृद्भांड परंपरा के मृदभांडों से लेकर कुशाण कालीन मृद्भांडों और मृण्मूर्तियों से भरा हुआ है। यह महत्वपूर्ण स्थान वर्तमान काल में उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है, हांलाकि यहाँ का पौराणिक अतीत यहाँ पर सालाना हज़ारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है जो मुख्य रूप से पूजा पाठ करने यहाँ आते हैं। यहाँ पर महाभारत से जुड़ी अनेकों कहानियां हैं जैसे कि यहाँ पर द्रौपदी का जुड़वा भाई धृष्टद्युम्न भी हवन कुंड से पैदा हुआ था।
महाभारत के कथन के अनुसार यहाँ पर राजा द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य से अपनी हार का बदला लेने के लिए यज्ञ किया था। यह वही स्थान है जहाँ पर अर्जुन ने मछली की आँख में तीर मार कर द्रौपदी से स्वयंवर रचाया था। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग आगरा सर्कल के अनुसार, 1975-76 में काम्पिल्य के स्थलों से जुड़े किसी भी ऐतिहासिक या पुरातात्विक मूल्य को इंगित करने के लिए कोई भी पट या सीमा नहीं निर्धारित की गयी है। यहाँ पर विभिन्न संस्थाओं ने खुदाइयां करवाई हैं जिसमें से अनेक प्रकार के पुरातात्विक साक्ष्य सामने आये हैं जैसे कि बी. बी. लाल द्वारा किया गया अध्ययन जिसमें सन 1954-55 में यहाँ से चित्रित धूसर मृद्भांड और नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर (Northern Black Polished Ware) पाए गए थे। डेक्कन कॉलेज (Deccan College), पुणे के वी. एन. मिश्रा ने 1960 के दशक में यहाँ पर अध्ययन किये। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने 1976 में 6 ट्रेंच (Trench) की खुदाई कराई जिसमें चित्रित धूसर मृद्भांड की 2.4 मीटर मोटी परत प्राप्त की गयी। इस पुरास्थल पर सतह के नीचे की आकृतियों को समझने के लिए राडार (Radar) का प्रयोग किया गया जिसने यहाँ की महत्ता को पहचानने में मदद प्रदान की। अभी भी यह पुरास्थल अपने में कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं को छुपा कर रखे हुए है जो कि समय के साथ-साथ और गहन अध्ययन के साथ सामने आएंगे।
संदर्भ:
1. http://www.draupaditrust.org/Excavations.html
2. https://bit.ly/2L1U8F4
3. https://bit.ly/2LfN4Us
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Kampilya
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.