लखनऊ की छत्तर मंज़िल से प्राप्त हुई दो सौ वर्ष पुरानी नाव

लखनऊ

 29-08-2019 12:06 PM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

लखनऊ भारतीय इतिहास में एक ऐसे शहर के रूप में जाना जाता है जो कि अपनी कला और वास्तु का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह शहर अवध के नवाबों द्वारा नाज़ों से सजाया गया था। इस शहर के बारे मे देश ही नहीं बल्कि विदेशों के भी कला प्रेमी स्तब्धता पूर्ण इसकी बढाई करते हैं। लखनऊ में वैसे तो कई धरोहर हैं और उन्हीं धरोहरों में से एक है छत्तर मंज़िल। छत्तर मंज़िल वर्तमान काल में अपनी पुरातात्विक सम्पदा के कारण केंद्र बिंदु बना हुआ है। इस इमारत की रचना सआदत अली खान ने करवाई थी। यदि इतिहास की बात की जाए तो यह नवाब गाज़ी उद्दीन हैदर के निर्देश से बनवाई गयी थी तथा यह नवाब नासिरुद्दीन हैदर के समय में बन कर तैयार हुयी थी। यह गोमती नदी के किनारे बसी हुयी है। इस इमारत का नाम छत्तरमंज़िल इस वजह से पड़ा क्यूंकि इsके ऊपर छतीस छतरियां बनी हुयी हैं। यह इंडो-यूरोपीय-नवाबी कला का एक अनुपम नमूना है। इस इमारत को देखकर कोई भी कह सकता है कि यह राजधानी ऐतिहासिक धरोहरों का शहर है। पिछले कुछ समय से छत्तर मंज़िल के संरक्षण का कार्य उत्तर प्रदेश पुरातत्त्व विभाग करवा रही है। इस संरक्षण कार्य के दौरान ही कई ऐसी वस्तुएं यहाँ से प्राप्त हुयी जिन्होंने छत्तर मंज़िल के इतिहास को एक नया मोड़ दे दिया।

लखनऊ के निवासियों और पुरातत्व इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों ने अब तक सुना था कि छत्तर मंज़िल को पार करने के लिए नावों का प्रयोग होता था, लेकिन अब तक इसका कोई प्रामाणिक साक्ष्य नहीं था लेकिन मई में प्राप्त नाव के उत्खनन से इस बात का प्रमाण मिला कि वहां नावों का प्रयोग एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने में होता था। कई प्राचीन चित्रों में लखनऊ में मछली, मगरमच्छ आदि के आकार की नावों को देखा जाता रहा है जो कि गोमती नदी में घूमने आदि में प्रयोग में लायी जाती रही हैं परन्तु अब तक इसके कोई ठोस पुरात्तात्विक प्रमाण प्राप्त नहीं हुए थें। यहाँ से प्राप्त नाव करीब 200 साल पुरानी बताई गई है हांलाकि अभी तक इसका वैज्ञानिक प्रयोग नहीं किया गया है। इसे 19 फिट गहरे ज़मीन से निकाला गया और लगे हुए फट्टे 50 फुट लम्बे और 12 फुट चौड़े हैं, जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि अवध के नवाब इसका प्रयोग करके नदी पार करते थे या फिर इतनी बड़ी नाव का इस्तेमाल व्यापार के दृष्टिकोण से किया जाता रहा होगा। वैसे लखनऊ में गोमती एकमात्र ऐसी नदी है जिसमें से बड़ी संख्या में व्यापार और वस्तु विनिमय हुआ करता था। गोमती नदी के ही सहारे बांग्लादेश तक नाव से सामान ले जाया और लाया जाता था जिसके कई लिखित प्रमाण इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

छत्तर मंज़िल के उत्खनन के दौरान ज़मीन के नीचे भी महल की एक और सतह प्राप्त हुई है जिसमें प्रयोग में लाये गए पच्चीकारी किये हुए खम्बे, रोशनदान, खिड़कियाँ आदि यह प्रमाणित करती हैं कि इसे रहने के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा होगा। यह मंज़िल गर्मियों के दौरान प्रयोग में लाई जाती होगि क्यूंकि यहाँ पर नदी से पानी आने की नालियों के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2ZtQOGI
2. https://bit.ly/2MF0agX
3. https://bit.ly/2Zrn7dG
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Chattar_Manzil


RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id