भारत और चीन के मध्य ऐतिहासिक धार्मिक संबंध हैं। भले ही आज चीन में हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों में गिना जाता है, किंतु यहां से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्य मध्यकालीन चीन के विभिन्न प्रांतों में हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण उपस्थिति का संकेत देते हैं। इतिहास में बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ ही यहां हिन्दू धर्म भी प्रभावी हो गया। योग और ध्यान जैसी प्राचीन भारतीय वैदिक परंपरा चीन में काफी लोकप्रिय हैं। चीन के कुछ स्थानीय लोग हिंदू देवताओं जैसे शिव, विष्णु, गणेश और काली की पूजा भी करते हैं।
वर्ष 2010 में चीन ने लगभग 6-7वीं ईस्वी में बनाए गये पांच कालीनों की तस्वीर प्रकाशित की। यह कार्पेट खोतान, शिनजि़यांग (चीन) से प्राप्त हुए। इन रंगबिरंगे कालीनों, पर एक मोटे बॉर्डर (Border) के साथ लगभग 33 व्यक्तियों की चित्रकारी की गयी है। इस कालीन पर भारत की प्राचीन ब्रह्मी लिपी का प्रयोग करके खोतानीस भाषा (जिस पर प्राचीन संस्कृत और कश्मीरी भाषा का भी प्रभाव देखा जाता है) में कुछ शब्द भी उकेरे गये हैं। इन कालीनों के विषय में विस्तृत जानकारी हम अपने एक अन्य लेख (https://meerut.prarang.in/posts/1781/postname) में लिख चुके हैं। इनका गहनता से अध्ययन करने पर पता चला है कि इस पर भगवान श्री कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाते हुए दर्शाया गया है। अब आप सोच रहे होंगे कि भगवान श्री कृष्ण चीन कैसे पहुंच गये। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की कहानी। चीन में जब महायान और हिनयान धर्म (बौद्ध धर्म के भाग) का प्रवेश हुआ, तो उनके साथ ही हिन्दू देवी देवताओं का भी वहां प्रवेश हुआ। इसका सबसे बड़ा कारण था महायानियों और हिनयानियों द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं का भी अनुसरण करना। चीन के खोतान से सर्वाधिक हिन्दू देवी देवताओं (शिव, पार्वती, गणेश, ब्रह्मा तथा अन्य) की चित्रकारी प्राप्त हुयी हैं।
खोतान के अलावा अन्य चीनी क्षेत्रों से भी हिन्दू धर्म के प्रतीक प्राप्त हुए हैं। गुआंग्डोंग और क्वांज़ोउ प्रांतों में स्थित चीन के बंदरगाहों में, तमिल हिंदू व्यापारियों द्वारा हिन्दू मंदिरों का निर्माण किया गया। चीन के युन्नान में डाली मंदिर की खुदाई के दौरान मिली जियानचुआन गुफाओं (शिज़ोंगशान) और अन्य हिंदू रूपांकनों में लिंग शिव से जुड़े प्रतीक प्राप्त हुए हैं। प्राचीन चीन में हिंदू धर्म की उपस्थिति के पुरातात्विक साक्ष्य ज़िंजियांग प्रांत के लोप नूर और किज़िल गुफ़ाओं से प्राप्त हुए हैं। गुफाओं की भित्ति पर गणेश, हनुमान तथा रामायण के अन्य पात्र और हिंदू देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं, जो लगभग चौथी से छठी शताब्दी के हैं। किज़िल गुफ़ाएँ मुख्यतः बौद्ध गुफाओं का समूह हैं, जिसमें 236 गुफा मंदिर हैं।
हिन्दू धर्म के प्रभाव से जापान भी अछुता नहीं रहा। जापान में मुख्यतः बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा है। जापान के बौद्ध मंदिरों में भारतीय दार्शनिक दृष्टिकोण स्पष्ट झलकता है। जापान के तोडा-जी नारा में स्थित बौद्ध मंदिर में बने एक अष्टकोणीय स्तंभ पर भगवान श्री कृष्ण की छवि उकेरी गयी है। इनके अतिरिक्त यहां माता सरस्वती अत्यंत पूजनीय हैं। लक्ष्मी, गरुड़ (विष्णु के वाहन) और अन्य वैदिक देवताओं को जापान के मंदिरों में देखा जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Hinduism_in_China
2. https://bit.ly/2Mw8qQB
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Kizil_Caves
4. https://bit.ly/33U32MA
5. https://bit.ly/30DJ1I9
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