यह सामान्य ज्ञान है कि प्राचीन काल से वर्तमान काल तक, विभिन्न संस्कृतियों ने विभिन्न बीमारियों को रोकने और उपचार करने में सफलता की विभिन्न दरों के साथ कई विविध तकनीकों का विकास किया है। यह बहुत स्पष्ट है कि प्राचीन काल से चिकित्सा में काफी सुधार हुआ है और साथ ही साथ लोगों के जीवन में भी सुधार हुआ है।
आज कोई भी अपने इलाज के लिए समाज में प्रचलित दो मुख्य प्रकारों यानी पारंपरिक चिकित्सा और वैकल्पिक चिकित्सा का चुनाव कर सकता है। पहले वाला आजकल सबसे व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि, यह वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है और योग्य व्यक्तियों द्वारा बड़े पैमाने पर शोध किया गया है। दूसरी ओर, कई लोग वैकल्पिक चिकित्सा का चयन करते हैं, हालांकि इसके अभ्यास के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता या वैज्ञानिक प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। यहां वैकल्पिक चिकित्सा (आयुर्वेद, होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा) और पारंपरिक चिकित्सा (एलोपैथी, मुख्य चिकित्सा) के बीच निर्णय लेते समय ध्यान रखने योग्य कुछ बिंदु दिए गए हैं। वैकल्पिक चिकित्सा पर एक मुख्य लाभ यह है कि यह संश्लेषित उत्पादों के बजाय प्राकृतिक उत्पादों के उपयोग पर आधारित है।
यह बुद्धिजीवियों द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है कि होम्योपैथी, अरोमाथेरेपी और हर्बलिज़्म तकनीकें शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए कार्बनिक पदार्थों, खनिजों और पौधों का उपयोग करती हैं। इन प्राकृतिक उत्पादों को चिकित्सा नुस्खे की आवश्यकता नहीं है, उन्हें आसानी से खरीदा जा सकता है और इसके अलावा, वे रासायनिक दवाओं की तुलना में सस्ती हैं। गैर-पारंपरिक चिकित्सा का एक अतिरिक्त लाभ यह है कि इसे सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि पारंपरिक चिकित्सा को इस प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है, जिससे सामान्य अवस्था में आने में लंबा समय लग सकता है। दूसरी ओर, वैकल्पिक चिकित्सा के खिलाफ भी कुछ तर्क हैं। कुछ बीमारियों को ठीक करने के लिए प्राकृतिक उत्पादों के बिना परीक्षण उपयोग से लोगों के स्वास्थ्य पर संभावित खतरा उत्पन्न हो जाता है। चूंकि इन उत्पादों का वैज्ञानिक रूप से परीक्षण नहीं किया गया है, इसलिए वे विषाक्तता, शरीर पर गंभीर चोट या कुछ अपरिवर्तनीय क्षति का कारण बन सकते हैं, जो तुरंत स्पष्ट नहीं होते हैं।
एक और नकारात्मक पहलू यह है कि वैकल्पिक चिकित्सा वास्तविक वैज्ञानिक नैदानिक (Diagnostic) उपचार की तुलना में अधिक आध्यात्मिक या मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करती है। पारंपरिक चिकित्सा के विपरीत बीमारी को देखने का एक दार्शनिक तरीका है, जो रोगियों के लक्षणों के आधार पर परीक्षणों के माध्यम से निदान का मुख्य तरीका है।
इन दो चिकित्सा शैलियों के मध्य एक और अंतर है, जो व्यक्ति (रोगी) और चिकित्सक के बीच के संबंध पर केंद्रित है। कई मामलों में, पारंपरिक चिकित्सा में सभी रोगियों का एक सा उपचार होता है। मरीजों का जल्दी से एक दवा या शल्य (surgery) चिकित्सा द्वारा उपचार कर बीमारी का निदान किया जाता है। वरन वैकल्पिक चिकित्सक रोगियों के साथ अधिक समय बिताने, संबंध विकसित करने और रोगी पर ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति रखते हैं। वह एक व्यक्ति को अपने स्वयं के स्वास्थ्य और कल्याण पर नियंत्रण की मजबूत भावना महसूस करने में योगदान देते है। पश्चिमी या आधुनिक चिकित्सा में बहुत सख्त दिशानिर्देश हैं और जो चिकित्सक इसका अभ्यास करते हैं, उन्हें अच्छी तरह से शिक्षित और उच्च प्रशिक्षित होना चाहिए। सख्त गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएं भी हैं, और प्रत्येक प्रक्रिया और उपचार वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित है।
प्राकृतिक या वैकल्पिक चिकित्सा हमेशा शोध पर आधारित नहीं होती है, बल्कि वास्तविक प्रमाणों पर आधारित होती है, इसलिए वैज्ञानिक समुदाय के लिए यह साबित करना कठिन है कि प्राकृतिक उपचार किसी कूटभेषज (placebo) से अधिक कुछ भी नहीं है। क्योंकि चिकित्सा के प्रत्येक मॉडल के अपने लाभ और सीमाएं हैं, क्या हमें वास्तव में स्वस्थ करने के लिए सिर्फ एक चुनना है? वैकल्पिक और पश्चिमी चिकित्सा के संलयन को "एकीकृत (integrative) चिकित्सा" कहा जाता है क्योंकि यह दोनों चिकित्सा पद्धतियों के सर्वोत्तम तरीकों को एकीकृत करता है, जो भविष्य के लिए एक अच्छा विकल्प माना जा रहा है। इसलिए सभी बातों पर विचार कर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वैकल्पिक और पारंपरिक चिकित्सा दोनों सह-अस्तित्व में हो सकते हैं क्योंकि उनके पास अपने फायदे और नुकसान हैं। लोगों को हमेशा अपनी बीमारी की गंभीरता और संदर्भ को ध्यान में रखना चाहिए और उपलब्ध जानकारी के साथ चिकित्सा का सबसे अच्छा कोर्स चुनना चाहिए।
सन्दर्भ:
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5. https://www.webmd.com/balance/guide/complementary-vs-alternative-medicine#1
6. http://ayush.gov.in/research
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