मोहन जोदड़ो की बातें इतिहास के पन्नों में बहुत ही मशहूर है। मोहन जोदड़ो का अर्थ है “मुर्दों का टीला”। यह मनुष्य द्वारा निर्मित विश्व का सबसे पुराना शहर माना जाता है जो की सिन्धु घाटी की सभ्यता से जुड़ा है। मोहनजोदड़ो की खोज सन 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आफिसर आर. डी. बनर्जी ने किया था। यह पहले भारत में था परन्तु 1947 के बाद पाकिस्तान के अलग होने पर यह पाकिस्तान का हिस्सा है।
यह नगर पाकिस्तान में सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर लगभग 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदड़ो को हड़प्पा की सभ्यता का एक नगर माना जाता है और इस समूचे क्षेत्र को सिंधु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपतिनाथ) की मूर्ति प्राप्त हुई है। उनके चारों और हाथी, गैंडा,चीता एवं भैंसा विराजमान है।
ऐसा मानना है कि 2600 ईसापूर्व इस नगर की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकार लगभग 2700 ईसापूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक मानते हैं। हड़प्पा के इस मोहनजोदड़ो को सिंध का बाग भी कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इसके निर्माता द्रविड़ थे। मोहनजोदड़ो से सूती कपड़ों के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं, इससे यह स्पष्ट होता है कि यह कपास की खेती के बारे में जानते थे। इस नगर से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव रोकने के लिए ईंटो के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई है। जिससे पता चलता है कि वह चारकोल के संबंध में भी जानते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार संभवतः सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त के बृहत स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है। जिस के मध्य स्थित स्नान कुंड 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है।
इस मोहन जोदड़ो शहर की जब खुदाई की गयी तब एक खास बात सामने आयी की यहाँ पर कोई महल, मंदिर और स्मारक के निशान नहीं पाए गए। इतिहास ने हमें जो सबूत दिए उनसे एक बात सामने आती है, कि मोहन जोदड़ो में कोई राजा, रानी या किसी सरकार का अस्तित्व ही नहीं था। यहाँ के लोग शासन, विनम्रता और स्वछता को अधिक पसंद करते थे इसके ठोस सबूत भी इतिहास में मिलते है। शिल्प और बर्तनों पर बने पैमाने पर मिट्टी, ताबें और पत्थरो का भी इस्तेमाल किया जाता था।मूल्यवान कलाकृति
इस शहर की खुदाई के दौरान कई सारी मुर्तियाँ मिली है जिसमे एक प्रसिद्ध नाचती हुई लड़की की कांस्य मूर्ति पाई गयी और साथ में कुछ पुरुषो की भी मुर्तियाँ मिली। वो सभी पुरुषो की मुर्तिया पर नक्काशी का काम किया गया है वो सभी रंगीन है। कुछ का मानना है की पुरुष की मूर्ति राजा की है तो दुसरो का मानना है वो मूर्तिकला और धातु विज्ञान की परिपक्वता है।
युग की समाप्ति
इतिहास भी आज तक किसी नतीजे पर पहुँच नहीं पाया की ऐसे महान शहर का अंत कैसा हुआ। इस शहर का अंत क़ुदरत के किसी संकट जैसे बाढ़ से हुआ या किसी भूचाल से या फिर दुसरे देश के लोगों ने इस शहर पर आक्रमण करके यहाँ के सभी लोगों को खत्म तो नहीं किया। इन सारे सवालों के जवाब इतिहास के पास भी मौजूद नहीं है। इतने पुराने ज़माने में भी ऐसा विकसित शहर हुआ करता था यह सबके लिए आश्चर्य की बात है।
सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=P0zIQDbUiI8
2. https://www.gyanipandit.com/mohenjo-daro-history/
3. https://igkhindi.com/mohenjo-daro-civilization
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