लगभग दो महीने बाद 7 अक्टूबर के दिन रामपुर को स्थापित हुए 245 साल हो जायेंगे। ऐतिहासिक और शैक्षिक मूल्य से समृद्ध शहर रामपुर की स्थापना नवाब फैज़ुल्ला खान द्वारा 1774 में की गयी थी जो आज दुनिया भर के आगंतुकों के लिए एक आशाजनक गंतव्य साबित होता है। नवाब सैय्यद फैज़ुल्ला अली खान रामपुर रियासत के पहले नवाब थे जिनका जन्म 1730 में हुआ था। इस रियासत की स्थापना उन्होंने प्रथम रोहिल्ला युद्ध के बाद की थी। वे अली मुहम्मद खान के दूसरे पुत्र थे जिन्होंने अपने भाई नवाब सैदुल्ला खान बहादुर रोहिल्ला के साथ अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई के बाद उन्हें शिकोहाबाद प्रदान किया गया जबकि उनके भाई को जलेसर और फिरोज़ाबाद दिया गया। फैज़ुल्ला खान के 18 पुत्र थे जिनमें से उनके बड़े पुत्र मुहम्मद अली खान को रामपुर रियासत का उत्तराधिकारी चुना गया। रामपुर राज्य अवध के साथ महत्वपूर्ण शिया रियासतों में से एक था। फैज़ुल्ला खान सुन्नी थे तथा चाहते थे कि उनके पुत्र मुहम्मद अली खान भी उसी परंपरा को स्वीकार करें हालांकि नवाब असफ-उद-दौला के प्रभाव और शिक्षण के कारण उनके बड़े बेटे ने शिया पंथ को स्वीकार कर लिया था।
क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले का नाम भी फैज़ाबाद रख दिया गया था। इस क्षेत्र का नाम राजा रामसिंह के नाम पर रामपुर रखा गया था किंतु नवाब फैज़ुल्ला खान ने रामपुर का नाम बदलकर फैज़ाबाद कर दिया और कई दिनों तक इसका नाम फैज़ाबाद ही रहा। लेकिन पहले से ही मुगलों ने फैज़ाबाद नाम से एक नगर बसाया हुआ था, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश का एक जिला भी है और दीपावली के दिन इसका नाम बदलकर अयोध्या किया गया है। उस दौरान रामपुर नवाब के एक सिपहसालार ने उन्हें बताया कि फैज़ाबाद के नाम से पहले से ही एक नगर पूर्वी भाग में बसा हुआ है। जिसके बाद नवाब ने रामपुर यानी तत्कालीन 'फैज़ाबाद' का नाम बदलकर ‘मुस्तफाबाद’ कर दिया। इसके बाद कई दिनों तक इसी नाम से रियासत का कामकाज चलाया गया। लेकिन कुछ समय बाद ही उनके सिपहसालारों ने बताया कि मुस्तफाबाद नाम से भी पहले से ही एक नगर है। इसके बाद उन्होंने रामपुर नगर के कई दूसरे नाम सुझाए। जब उनके बारे में पता किया गया तो मालूम हुआ कि इन सभी नामों से पहले से ही मुगल साम्राज्य में नगर बसा हुआ है। जिसके बाद नवाब फैज़ुल्ला खान ने रामपुर का नाम बदलने का प्रस्ताव निरस्त कर दिया और इसका नाम तब से ही रामपुर चला आ रहा है।
फैज़ुल्ला खान की मृत्यु 1794 में हुई तथा उन्हें ईदगाह दरवाज़ा, रामपुर के पास एक कब्र में दफनाया गया।
रामपुर की संस्कृति और वास्तुकला के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी जिसका गवाह यहां स्थित रज़ा पुस्तकालय है जिसे हामिद मंज़िल भी कहा जाता है। इसमें पांडुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, इस्लामी सुलेख के नमूनों, लघु चित्रों, खगोलीय उपकरणों, अरबी और फ़ारसी भाषाओं में दुर्लभ सचित्र कृतियों के अलावा 60,000 मुद्रित पुस्तकों के बहुत दुर्लभ और मूल्यवान संग्रह शामिल हैं। नवाब अहमद अली के शासन (1794-1840) के दौरान इन संग्रहों में उल्लेखनीय परिवर्धन किया गया। उनके बाद नवाब मुहम्मद सईद खान (1840-1855) ने पुस्तकालय का एक अलग विभाग बनाया और संग्रहों को नए कमरों में स्थानांतरित किया। मुहम्मद सईद खान के बाद नवाब यूसुफ अली खान नाज़िम अपने पिता के उत्तराधिकारी बने और 1 अप्रैल 1855 को उनकी ताजपोशी की गई। नवाब खुद उर्दू के शायर थे जिनके सोने में लिखे गये दीवान (छंदों का संग्रह) को पुस्तकालय में संरक्षित किया गया है। 1949 में रामपुर राज्य के भारत संघ में विलय के बाद पुस्तकालय को एक ट्रस्ट (Trust) के प्रबंधन द्वारा नियंत्रित किया गया जो जुलाई, 1975 तक जारी रहा।
रामपुर की इमारतों और स्मारकों में मुगल वास्तुकला की झलक साफ दिखायी देती है। यहां स्थित जामा मस्जिद रामपुर की वास्तुकला का एक और सुंदर उदाहरण है जिसका निर्माण भी नवाब फैज़ुल्ला खान द्वारा करवाया गया था। मस्जिद में कई प्रवेश-निकास द्वारों के साथ तीन बड़े गुंबद और चार लम्बी मीनारें हैं जिन्हें सोने के पंखों के साथ एक शाही स्पर्श दिया गया है। इसके मुख्य ऊंचे द्वार पर एक क्लॉक टॉवर (Clock tower) है जिसकी घड़ी को ब्रिटेन से आयात किया गया था। नवाब द्वारा यहां कई प्रवेश-निकास द्वारों जैसे शाहबाद गेट, नवाब गेट, बिलासपुर गेट आदि को बनाया गया था जोकि शहर के प्रमुख प्रवेश-निकास मार्ग हैं।
कला के संदर्भ में भी नवाबों के शासनकाल के दौरान रामपुर में बहुत अधिक विकास हुआ। दिल्ली और लखनऊ के बाद कविता का तीसरा स्कूल (School) रामपुर को माना जाता है। गालिब, अमीर मिनाई जैसे प्रमुख और प्रसिद्ध उर्दू कवि रामपुर दरबार के संरक्षण में शामिल हुए थे। रामपुर के नवाब कविता और अन्य ललित कलाओं के बहुत शौकीन थे। वे उन कवियों को पारिश्रमिक प्रदान करते थे जो दरबार से जुड़े हुए थे। निज़ाम रामपुरी, शाद आरफी आदि ने यहां कवि के रूप में बहुत नाम कमाया तथा कविताओं की अलग-अलग शैलियों को विकसित किया।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2yrzsPI
2. https://bit.ly/2Yyf9PA
3. https://bit.ly/333tDpM
4. https://bit.ly/2Ye8OJE
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