कौन थे लस्कर और अस्कारी भारतीय?

लखनऊ

 01-08-2019 10:19 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

लगभग 200 से 250 साल पहले के दो शब्द ‘लस्कर’ और ‘अस्कारी’ हिंद महासागर के इतिहास के साथ गहन रूप से संबंधित हैं किंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया इन दोनों शब्दों को इतिहासकारों द्वारा जानबूझकर या अनजाने में भुला दिया गया। दोनों ही शब्द मूल रूप से अरबी भाषा से लिये गये हैं जो सैनिकों को संदर्भित करते हैं।

दरअसल लस्कर और अस्कारी फ्रांसिसी शब्द हैं जिन्हें अरबी शब्द ‘अल-अस्कर’ से लिया गया है जिसका अर्थ है सिपाही। लस्कर भारतीय उपमहाद्वीपों, दक्षिण पूर्व एशिया, अरब और अन्य प्रदेशों जो कि केप ऑफ गुड होप (Cape of good hope) के पूर्व में स्थित हैं, के नाविक या सिपाही थे जिन्होंने 16वीं शताब्दी से 20वीं सदी के मध्य तक यूरोपीय जहाज़ों पर कार्य किया। पुर्तगालियों द्वारा लस्कर को ‘लस्करीन’ कहा गया जोकि विशेष रूप से केप ऑफ गुड होप के पूर्व के किसी भी क्षेत्र के जहाजों में कार्य करने वाले नाविक थे। शुरूआत में भारतीय लस्करों को ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) द्वारा टोपेज़ेस (Topazes) कहा गया किंतु बाद में उन्हें उनके पुर्तगाली नाम लस्कर से सम्बोधित किया गया। लस्करों ने लस्कर समझौतों के तहत ब्रिटिश जहाज़ों पर अपनी सेवा दी। इन समझौतों के कारण जहाज़ मालिकों ने इन सैनिकों पर अपना अधिकाधिक नियंत्रण रखा जिसके फलस्वरूप नाविकों को एक जहाज़ से दूसरे में स्थानांतरित किया गया तथा एक समय पर तीन साल से भी अधिक समय तक काम करवाया गया।

इसी प्रकार अस्कारी भी स्थानीय सैनिक थे जो अफ्रीका में यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों की सेनाओं में कार्य करते थे तथा मुख्य रूप से अफ्रीकन ग्रेट लेक्स (African Great Lakes), पूर्वोत्तर अफ्रीका और मध्य अफ्रीका में सेवारत थे। इस शब्द का उपयोग अंग्रेजी, जर्मन, इतालवी, उर्दू और पुर्तगाली में भी किया जाता है। फ्रांस में इन्हें ऐसे सैनिकों द्वारा संदर्भित किया जाता है जो फ्रांसिसी औपनिवेशिक साम्राज्य के बाहर अन्य देशों में भी कार्य कर रहे थे। अफ्रीका में यूरोपीय औपनिवेशिक साम्राज्य की अवधि के दौरान स्थानीय रूप से भर्ती किए गए इन सैनिकों को इतालवी, ब्रिटिश, पुर्तगाली, जर्मन और बेल्जियम औपनिवेशिक सेनाओं द्वारा नियुक्त किया गया था। विभिन्न औपनिवेशों में इन सैनिकों ने आंतरिक सुरक्षा बलों के रूप में कार्य किया। जब प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तो इन सैनिकों ने अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी सेवा दी। इन सैनिकों के पास कोई आधिकारिक वर्दी नहीं थी और न ही कोई मानकीकृत हथियार थे। 1895 से ब्रिटिश अस्कारियों को पूर्वी अफ्रीकी राइफल्स (Rifles) नामक एक नियमित, अनुशासित और वर्दीधारी बल में संगठित किया गया था जो बाद में मल्टी बटालियन किंग्स अफ्रीकन राइफल्स (Multi-battalion King's African Rifles) का हिस्सा बना। इसके औपनिवेशिक अर्थों के कारण 1960 के दशक के दौरान इस अस्कारी शब्द को आमतौर पर खारिज कर दिया गया था।

लस्करों की शुरूआत भारत में अरबों के आगमन के साथ हुई थी। व्यापार को प्रसारित करने के उद्देश्य से अरबी भारत में आये। भारत-अरब साझेदारी को एक रिश्ते द्वारा समेकित किया गया जिसने इंडो-अरब के लस्कर वर्ग का निर्माण किया। पश्चिम भारतीय तट पर कालीकट के बंदरगाह का जन्म अरब नाविकों के साथ-साथ इन्हीं लस्करों के योगदान के कारण हुआ था जहां इन्होंने बंदरगाह के निर्माण और गतिविधियों को प्रबंधित करने तथा समुद्री जहाज़ों की मरम्मत और उनका संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब 1498 में यूरोपीय वास्को डी गामा समुद्र के रास्ते भारत जा रहा था तो उसने भी हिंद महासागर में पुर्तगाली जहाज़ चलाने के लिए एक लस्कर को काम पर रखा। इसके बाद 16वीं और 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली जहाज़ों द्वारा लस्करों का उपयोग बड़ी संख्या में व्यापक रूप से किया जाने लगा।

15 वीं शताब्दी में यूरोपीय नाविकों के लिये हिंद महासागर में यात्रा करना बहुत कठिन था और इसके लिये उन्होंने लस्करों को नियुक्त किया। उनके अपने नाविक महासागर में लागातार हो रही बीमारियों के कारण मरने लगे थे तथा जो बच गये थे वे भी वापस चले गये थे। ऐसे समय में यूरोपीय शक्तियों को लस्करों की बहुत अधिक आवश्यकता महसूस हुई और उन्होंने लस्करों की बहुत बड़ी संख्या को नियुक्त करना शुरू किया। भारतीय लस्कर अपने साहस, कड़ी मेहनत, लचीलेपन, कौशल और हिंद महासागर के भौगोलिक ज्ञान के कारण काफी प्रसिद्ध थे और यही कारण था कि यूरोपीय शक्तियों ने उन्हें अपना जहाज़ चलाने और वहां कार्य करने के लिये नियुक्त किया था।

ब्रिटिश साम्राज्य ने भी महासागरों की भयावह लहरों का सामना करने के लिये लस्करों का व्यापक रूप से उपयोग किया। 1810 में जब अंग्रेजों ने फ्रांसिसियों के हाथों से मॉरिशस को अपने कब्ज़े में लिया तो उन्होंने नौसैनिकों की मदद के लिए सैकड़ों लस्करों की सेवाओं को बरकरार रखा। जब युद्ध के दौरान ब्रिटिश नाविकों को रॉयल नेवी (Royal Navy) की आवश्यकता हुई, तो उनके व्यापारी जहाज़ों को केवल लस्करों के श्रम पर ही निर्भर रहना पड़ा था। इस वजह से 1803-1815 के नेपोलियन युद्धों के दौरान ब्रिटिश जहाज़ों पर काम करने वाले लस्करों की संख्या 224 से बढ़कर 1,336 हो गयी थी। गैर-यूरोपीय नाविकों के लिए लस्कर शब्द एक वर्णनात्मक शब्द बन गया था। इसके बाद शिपिंग कंपनियों (Shipping Companies) ने कई पृष्ठभूमि के पुरुषों की भर्ती की जिसमें अरब, सिप्रस, चीनी और पूर्वी अफ्रीकी पुरूष शामिल थे। इन भर्तियों में भारतीय उपमहाद्वीप से बड़े पैमाने पर पुरूष भर्ती किए गए जो कि मुख्य रूप से भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात और मालाबार के समुद्री क्षेत्रों से थे। जैसे-जैसे लस्करों की मांग बढ़ती गयी वैसे-वैसे पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमा के कई प्रांतों से भी भर्तियां की गयीं। विश्व युद्धों के दौरान भी 4 मिलियन से अधिक गैर-श्वेत पुरुषों को लड़ाकू और गैर-लड़ाकू भूमिकाओं में यूरोपीय और अमेरिकी सेनाओं में जुटाया गया था। 20वीं शताब्दी तक व्यापार के विस्तारित होने के साथ कई व्यापारी जहाज़ों ने लस्करों को नियुक्त करना शुरू किया जिससे उनकी संख्या और भी अधिक बढ़ गई।

जहां इन नाविकों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था वहीं इनका शोषण भी किया जा रहा था। इन सैनिकों को नियमित आय का लालच दिया गया था जिसे सम्भवतः पूरा नहीं किया गया। यूरोपीय नाविकों की तुलना में लस्करों को बहुत कम भुगतान किया जाता था जबकि उनके लिये जहाज़ों पर श्रम बहुत अधिक होता था। भाप से चलने वाले इंजनों (Engines) पर भी लस्करों से ही श्रम करवाया जाता था क्योंकि इनके नियोक्ताओं के अनुसार वे भाप की उस भयंकर ऊष्मा को झेल सकते थे।

संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Lascar
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Askari
3. https://bit.ly/2GK6FuD
4. https://bit.ly/2pjJspQ
5. https://bit.ly/2Ykpyyf
6. https://bit.ly/2OkmSg9
7. https://bit.ly/2FfOSge



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id