क्रिकेट (Cricket) खेल आज भारत में और अन्य खेलों में सबसे ज्यादा प्रचलित खेल है। इस खेल में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण तीन बिंदु हैं- पहला बैटिंग (Batting) दूसरा बोलिंग (Bowling) और तीसरा फील्डिंग (Feilding)। क्रिकेट खेल में बोलिंग का इतिहास और इसका विकास सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। बोलिंग जो आज हम आम खेल में देखते हैं वो अचानक से ऐसा नहीं हो गया बल्कि इस खेल में कई विविध प्रकार के बदलाव आये। गेंद फेकने की तकनीक में समय-समय पर विभिन्न विशेषताएं आईं जिन्होंने इस खेल की विधा को बदल कर रख दिया। आज जिस प्रकार से हम देखते हैं कि गेंद फेकने वाला बॉलर (Baller) 140-150 की रफ़्तार से गेंद फेकता है वो पहले बिलकुल भी आज की तरह सामान्य नहीं था अपितु वो कई बदलावों से गुज़रा। आइये फिर जानते हैं क्रिकेट खेल में बोलिंग या गेंद फेकने के इतिहास को।
क्रिकेट का जन्म करीब 17वीं शताब्दी में हो चुका था और उस दौर में क्रिकेट के मैदान आज की तरह ठोस और हरे भरे ना हो कर अत्यंत ही ढीले और रूखे हुआ करते थे। ऐसे माहौल के होने से गेंद अत्यंत ज्यादा अनिश्चित घुमाव लेती थी जिसके कारण सभी खेल कम रन (Run) वाले खेल हुआ करते थे। शुरुवाती दौर में क्रिकेट में गेंद अंडरआर्म (Underarm) से फेंकी जाती थी जिसकी वजह से गेंद ज़मीन पकड़ कर जाती थी और उनमें टिप्पा कम होता था। उस समय में क्रिकेट का बैट (Bat) भी आज के बैट की तरह नहीं होता था बल्कि वह काफी हद तक हॉकी (Hockey) से मिलता-जुलता हुआ करता था। यह हमें यह भी बताता है कि किस प्रकार से बोलिंग और बैट दोनों का विकास सामानांतर ढंग से हुआ था। यदि अंडरआर्म बोलिंग की बात करें तो आज के समय में अंडरआर्म बोलिंग से क्रिकेट का खेल सिर्फ बच्चे ही खेला करते हैं।
एक कहानी के अनुसार क्रिस्टीना विल्स जो कि केंट क्रिकेटर जॉन विल्स की बहन थीं, अपने भाई के साथ अपने बगीचे में क्रिकेट खेल रही थीं। वे अंडरआर्म बोलिंग फेंकने में असहज महसूस कर रही थीं जिसका मुख्य कारण था उनका स्कर्ट (Skirt) तो वे ऊपर हाँथ कर के गेंद फेकने लगीं। उपरोक्त दी गयी कहानी को क्रिकेट बोलिंग के प्रकार में बदलाव का कारक माना जाता है हालांकि इसमें कई अन्य मत भी हैं। एक मत के अनुसार यह प्रकार कई प्रयोगों का नतीजा है। 1816 में नियमों में राउंड आर्म (Round Arm) गेंद फेंकने पर पाबंदी लगी लेकिन अंडरआर्म बोलिंग को उस समय तक अवैध नहीं माना गया था। जुलाई 15, 1822 को विल्स ने केंट की तरफ से खेलते हुए राउंड आर्म गेंद फेकी जो कि एम. सी. सी. के खिलाफ लॉर्ड्स (Lord’s) के मैदान में था। उस गेंद को अंपायर ने नो बाल (No Ball) करार दिया जिसका परिणाम यह आया कि विल्स ने गेंद को ज़मीन पर दे मारा और अपने घोड़े पर बैठ चले गए। उन्होंने कहा कि वे कभी फिर बड़ा मुकाबला नहीं खेलेंगे पर बाद में उन्होंने खेलना शुरू कर दिया।
1820 के ही दशक में राउंड आर्म बोलिंग फेंकी जानी शुरू हो गयी। 1826 में ससेक्स ने दो राउंड आर्म बॉलर अपने टीम में रखे जिनका नाम जेम्स ब्रॉडब्रिज और विलियम लिलीवाइट था। उस समय राउंड आर्म बोलिंग के नियम इतने बड़े पैमाने पर नहीं बने थे तो बैट्समैन हमेशा राउंड आर्म बॉलर पर सवाल उठाते रहते थे। 1828 में एम. सी. सी. ने नियमों में बदलाव किये और गेंदबाजों को अपनी कोहनी तक हाथ उठाने की इजाज़त दी लेकिन राउंड आर्म बोलिंग अभी भी चली आ रही थी जो एक विस्मय का कारण थी। अब एम. सी. सी. ने 7 साल के संघर्ष के बाद हार मान ली और राउंड आर्म गेंदबाजों को गेंद फेकने की इजाज़त दे दी। 1845 में नियमों में और बदलाव आए और कंधे तक हाथ उठा कर गेंद फेकने की इजाज़त दे दी गयी। 1864 का वह दौर था जब आज की तरह से गेंद फेकने का नियम बना और आज तक उसी प्रकार से गेंद फेंकी जाती है।
आज यदि विश्व के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो वर्तमान के गेंदबाज अत्यंत ही तीव्र गति से गेंदबाज़ी करते हैं। कुछ ने तो अब तक का विश्व कीर्तिमान भी स्थापित कर लिया है जैसे- 1. शोइब अख्तर जिनका विश्व कीर्तिमान है 161.3 कि.मी. प्रतिघंटा, 2. शौन टैट- 161.1 कि.मी. प्रतिघंटा, 3. ब्रेट ली- 161.1 कि.मी. प्रतिघंटा, 4. जेफ्फ थोमसन- 160.6 कि.मी. प्रतिघंटा आदि। राउंड आर्म गेंदबाजी के चलन के कारण ही यह गेंदबाजी आज इस मुकाम पर पहुंची और यह खेल मात्र 5 वर्ष के अंतराल में अत्यंत ही लोकप्रिय हो गया था। वर्तमान में भारत के जसप्रीत बुम्राह विश्व के नंबर 1 पायदान के गेंदबाज़ हैं।
संदर्भ:
1. http://www.espncricinfo.com/ci/content/story/248600.html
2. https://bit.ly/32T1B0b
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/32VbI4M
2. https://bit.ly/2yfztX7
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