मौसम परिवर्तन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की बीमारियां भी हमारे जीवन का हिस्सा बनने लगती हैं तथा हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं। बरसात के मौसम में इन बीमारियों का प्रभाव और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस समय हर स्थान पर गंदे पानी का भराव होने लगता है और विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव या रोगाणु इस पानी में पनपने लगते हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होकर बीमारियां फैलाते हैं।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मौसमी बीमारियों ने पिछले महीने उत्तर प्रदेश में कम से कम 80 लोगों की जान ली। लखनऊ भी उच्च श्रेणी के वायरल (Viral) बुखार, मलेरिया (Malaria), टाइफाइड (Typhoid) और हैजा की समस्याओं से ग्रसित रहा। बदलता मौसम, जलभराव, बाढ़ इत्यादि इन बीमारियों के संक्रमण को और भी अधिक बढ़ा रहे हैं। बाढ़ प्रभावित जिलों में इन बीमारियों का प्रभाव अत्यधिक देखने को मिलता है। दरअसल बरसात का मौसम इन बीमारियों के वाहक रोगाणुओं जो कि हमारे चारों तरफ मौजूद हैं, के लिये सबसे अनुकूल होता है।
इन बीमारियों से प्रभावित होने का एक प्रमुख कारण प्रतिजैविकों (Antibiotics) का अत्यधिक उपयोग भी है जो रोगाणुओं के प्रभाव को और भी अधिक बढ़ा देता है। दरअसल प्रतिजैविक वे दवाईयां हैं जो विभिन्न रोगों के संक्रमण से निजात पाने के लिये प्रयोग में लायी जाती हैं। किंतु जब इनका अत्यधिक सेवन किया जाता है तो ये प्रतिजैविक प्रतिरोध (Antibiotic resistant) प्रभाव उत्पन्न करती हैं। प्रतिजैविक प्रतिरोध प्रभाव में संक्रमण के रोगाणु इन दवाओं या प्रतिजैविकों के प्रभाव का प्रतिरोध करने लगते हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो रोगाणुओं पर इन दवाओं का कोई असर नहीं पड़ता है। इन दवाओं के अत्यधिक सेवन से मानव की प्रतिरोधक क्षमता भी घटने लगती है तथा ऊतकों की क्षति भी होती है जो आगे कैंसर (Cancer) या अन्य भयावह बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इस प्रकार शरीर में रोगाणुओं की वृद्धि निरंतर होती जाती है और संक्रमण का प्रभाव और भी अधिक बढ़ने लगता है।
रोगाणुओं में प्रतिजैविक प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
• वैज्ञानिकों द्वारा नई-नई दवाओं का निर्माण कुछ परिस्थितियों में अप्रभावी हो जाता है जिस कारण रोगाणुओं पर इन दवाओं का कोई भी प्रभाव नहीं हो पाता।
• रोगाणुओं के भीतर होने वाले परिवर्तनों के कारण दवाईयां उन पर बेअसर होने लगती हैं।
• जब रोगाणु प्रजनन करते हैं तो उनमें अनुवांशिक परिवर्तन होने की सम्भावना बढ़ जाती है और वे प्रतिरोधक जीनों (Genes) को विकसित कर लेते हैं।
• प्रतिजैविकों के बार-बार सेवन से रोगाणु दवा के प्रभाव से अनुकूलित हो जाते हैं जिस कारण दवाओं का उन पर कुछ खास असर नहीं होता और वे वृद्धि करते रहते हैं।
वर्तमान में अधिकतर बीमारियों का संक्रमण प्रतिजैविकों के अत्यधिक सेवन के कारण हो रहा है। लोग बिना किसी चिकित्सकीय परामर्श के इन प्रतिजैविकों का सेवन करते हैं। साथ ही इनकी अंधाधुंध उपलब्धता भी इन दवाओं के अत्यधिक सेवन का कारण बन रही है। इनके अधिक उपयोग से मानव की प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है, रोगाणुओं का प्रभाव बढ़ने लगता है और मानव विभिन्न प्रकार की बीमारियों से संक्रमित होने लगता है। भारत में सालाना ऐसी दवाओं की लगभग 1,300 करोड़ गोलियों का सेवन होता है। भारत में पिछले दस वर्षों में इनके उपभोग में 66% की वृद्धि देखी गयी। प्रतिजैविक प्रतिरोध के कारण होने वाली बीमारियों में जीवाणु संक्रमण मुख्य है। यदि इस पर ध्यान न दिया जाये तो यह घातक रूप ले लेती है।
वर्तमान में प्रतिजैविक प्रतिरोधक बीमारियों से निजात पाने के लिये वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी तकनीकें विकसित की हैं जो शरीर में मौजूद जीवाणु को मारकर उसके प्रभाव को नष्ट कर सकती हैं। जैसे- दवा के रुप में ऐसे वायरस (बैक्टीरियोफेज - bacteriophage) का प्रयोग जो संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया का उपभोग करेगा। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal antibodies) का उपयोग करना जो रोगाणुओं द्वारा उत्पन्न विषाक्त पदार्थों के प्रभाव को कम करेगा। संक्रमण से बचने के लिये प्रभावी टीके विकसित करना इत्यादि।
प्रतिजैविक प्रतिरोधक बीमारियों से बचने के लिये आवश्यक है कि प्रतिजैविक दवाओं का उपभोग बहुत ही कम किया जाये। हल्की सर्दी और खांसी के लिये बार-बार इन दवाओं का उपयोग करने से बचना चाहिए। इन दवाओं की उपलब्धता को नियंत्रित करना भी बहुत आवश्यक है। इन प्रतिजैविकों का उपभोग केवल चिकित्सक के परामर्श पर ही करना चाहिए। इस प्रकार थोड़ी सावधानियां बरतने पर हम प्रतिजैविक प्रतिरोधक बीमारियों के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2LAzehS
2.https://www.medicalnewstoday.com/articles/283963.php
3.https://bit.ly/2Y3ip5R
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