चन्द्रमा के सपनों को साकार करता अपोलो-11

लखनऊ

 24-07-2019 12:01 PM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

कवियों, लेखकों और प्रेमियों ने चांद की खूबसूरती पर न जाने कितने अफसाने लिखे। बचपन में दादी-नानी की कहानियों से लेकर किशोर होने तक, प्रेयसी की तुलना चांद से करने तक चांद हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा रहा। इसके साथ कई यादें जुड़ी हैं और आज भी कायम है। इन कल्पना से भरी पुरानी यादों के बीच हकीकत का एक बड़ा हिस्सा भी है जब इंसान अपोलो-11 (Apollo-11) के ज़रिए बहुत करीब से चांद से रूबरू हुआ। वह तारीख थी 20 जुलाई 1969। 20 जुलाई 2019 को मिशन अपोलो-11 ने अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाई तथा उस उपलब्धि को याद किया जब एक मानव (नील आर्मस्ट्रांग) ने चंद्रमा पर अपना पहला कदम रखा। यह उपलब्धि पूरे विज्ञान जगत और पूरे विश्व के लिये एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

बात 1960 के दशक की है जब विश्व की दो महाशक्तियों सोवियत संघ और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के बीच शीत युद्ध चल रहा था। दोनों के बीच दुनिया में राजनैतिक, आर्थिक और प्राकृतिक संसाधनों पर वर्चस्व की होड़ मची हुई थी। जब रूस ने अपना अंतरिक्ष अभियान शुरू किया तो यह होड़ अंतरिक्ष में भी वर्चस्व स्थापित करने तक पहुंच गयी। अपनी राष्ट्रीयता की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करते हुए संयुक्त राष्ट्र अमेरिका रूस से पहले ही मिशन अपोलो-11 के माध्यम से चंद्रमा पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया।

यह मिशन अंतरिक्षयात्री नील आर्मस्ट्रांग के लिये बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसके माध्यम से वे चंद्रमा पर उतरने वाले पहले मानव बने। 1930 को जन्मे आर्मस्ट्रांग बहुत ही केंद्रित, अनुशासित और दृढ़-निश्चयी व्यक्ति थे और इसलिये वे अपोलो-11 कमांडर (Commander) की भूमिका के लिए एकदम सही वैमानिकी इंजीनियर भी थे। नासा में नील आर्मस्ट्रांग ने इंजीनियर (Engineer), टेस्ट पायलट (Test Pilot), अन्तरिक्ष यात्री और प्रशासक के रूप में कार्य किया। उन्होंने तरह-तरह के हवाई जहाज उड़ाये, जिनमें 4000 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ने वाले एक्स-15 से लेकर जेट, रॉकेट, हेलीकॉप्टर और ग्लाइडर भी शामिल थे। 16 मार्च 1966 को जेमिनी-8 अभियान के तहत वे सबसे पहले अन्तरिक्ष में गये। अपोलो-11 के जोखिम और नुकसान पर ध्यान केंद्रित किए बिना उन्होंने निडर होकर मिशन का नेतृत्व किया तथा मिशन को ऐतिहासिक रूप दिया।

अपोलो कार्यक्रम को नासा (NASA) द्वारा चंद्रमा पर मनुष्यों को उतारने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लाने के लिए डिज़ाइन (Design) किया गया था। यह लक्ष्य मिशन के छह अपोलो- अपोलो-11, अपोलो-12, अपोलो-14, अपोलो-15, अपोलो-16 और अपोलो-17 द्वारा हासिल किया गया। नासा के इस अभियान से जुड़े अपोलो मिशनों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है:
अपोलो-1 (1967): यह मिशन 21 फरवरी को शुरू किया जाना था। लेकिन प्रक्षेपण से पहले ही एक प्री-फ़्लाइट सिमुलेशन (Pre-flight simulation) अभ्यास के दौरान अंतरिक्ष यान के मुख्य कैप्सूल (Capsule) में आग लग गयी जिस कारण मिशन पर जाने वाले तीनों अंतरिक्ष यात्री मारे गये और मिशन विफल रहा।
अपोलो 4 (9 नवंबर 1967): यह विशाल सैटर्न वी रॉकेट (Saturn V rocket) की पहली उड़ान थी। इस मिशन में किसी भी अंतरिक्ष यात्री ने उड़ान नहीं भरी।
अपोलो 5 (22 जनवरी, 1968): यह एक अन्य मिशन था जिसके अंतर्गत किसी भी अंतरिक्ष यात्री ने उड़ान नहीं भरी। यह पुन: डिज़ाइन किए गए अंतरिक्ष कैप्सूल की पहली उड़ान थी जो बाद के मिशनों पर अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
अपोलो-6 (अप्रैल 4, 1968): यह सैटर्न वी रॉकेट की दूसरी उड़ान थी जिसमें पुनः किसी अंतरिक्ष यात्री को शामिल नहीं किया गया था।
अपोलो-7 (अक्टूबर 11, 1968): अपोलो-7 अंतरिक्ष में जाने वाला पहला अपोलो मिशन था। इस मिशन पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्री वाल्टर शिरा जूनियर (Walter Schirra Jr), वाल्टर कनिंघम (Walter Cunningham), और डोन ईज़ल (Donn Eisele) थे जिन्होंने अंतरिक्ष में 11 दिन बिताए। यह लाइव टीवी (Live TV) प्रसारण करने वाला पहला अंतरिक्ष यान था।
अपोलो-8 (दिसंबर 21 1968): यह चंद्रमा के चारों ओर जाने वाला पहला अपोलो मिशन था। अंतरिक्ष यात्री फ्रैंक बोरमैन, विलियम एंडर्स और जेम्स लोवेल जूनियर भी सैटर्न वी रॉकेट पर सवारी करने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बने जिन्होंने 20 घंटे चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए बिताए।
अपोलो-9 (मार्च 3, 1969): अपोलो-9 पहला ऐसा मिशन था जिसमें लूनर मॉड्यूल (Lunar module) को कमांड मॉड्यूल (Command module) से अलग कर दिया गया था जिसने स्वतंत्र रूप से छह घंटे तक उड़ान भरी। हालाँकि मिशन पृथ्वी की कक्षा में ही पूरा हुआ था।
अपोलो-10 (मई 18, 1969): यह मिशन चंद्रमा पर मानव के उतरने का एक अभ्यास था तथा चंद्रमा की कक्षा में लुनार मॉड्यूल की पहली प्रविष्टि भी थी।
अपोलो-11 (जुलाई 16, 1969): यह चंद्रमा पर मनुष्य की पहली लैंडिंग (Landing) थी जो 20 जुलाई को हुई। अंतरिक्ष यात्री आर्मस्ट्रांग और ऑल्ड्रिन दो घंटे से अधिक समय तक चंद्रमा की सतह पर घूमते रहे। उन्होंने चंद्रमा पर चट्टान और मिट्टी के नमूने एकत्र किए तथा चंद्र सतह पर अमेरिका का झंडा भी स्थापित किया। उन्होंने चंद्रमा की सतह पर कुल 21 घंटे और 36 मिनट बिताए, जिनमें से अधिकांश लुनार मॉड्यूल के अंदर थे। उनके तीसरे सहयोगी माइकल कोलिन्स लूनर कक्षा के कमांड मॉड्यूल में बने रहे।
अपोलो-12 (नवंबर 14, 1969): इस मिशन ने छह महीने से कम समय में चंद्रमा पर दूसरी मानव लैंडिंग को 19 नवंबर को चिह्नित किया। यह मिशन दो साल पहले चंद्रमा पर पहुंचने वाले एक लैंडर मिशन सर्वेयर III (Surveyor) के टुकड़े भी वापस लाया था।
अपोलो-13 (11 अप्रैल, 1970): इस मिशन में उड़ान के दौरान एक तकनीकी गड़बडडी के कारण कमांड मॉड्यूल को नुकसान पहुंचा जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को लूनर मॉड्यूल में आना पड़ा। इस वजह से मिशन को वापस बुलाया गया और अंतरिक्ष यान सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस आने में कामयाब रहा।
अपोलो-14 (जनवरी 31, 1971): यह चंद्रमा पर मानव लैंडिंग का तीसरा मौका था। अंतरिक्ष यात्री एलन शेपर्ड चंद्रमा पर 2.5 किमी से भी अधिक चलने वाले व्यक्ति बने तथा एक नया रिकॉर्ड (Record) कायम हुआ।
अपोलो-15 (जुलाई 26, 1971): इस मिशन के द्वारा मनुष्यों ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर 25 किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए एक वाहन चलाया तथा लगभग 18 घंटे तक चंद्रमा की सतह पर बने रहे।
अपोलो-16 (अप्रैल 16, 1972): इस मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा पर एक रोवर (Rover) को भेजा तथा 90 किलोग्राम से भी अधिक चंद्र नमूनों को एकत्रित किया।
अपोलो-17 (दिसंबर 7, 1972): यह अपोलो कार्यक्रम का अंतिम मिशन था जो चंद्रमा की सतह पर 11 दिसंबर को उतरा तथा 19 दिसम्बर को वापस पृथ्वी पर आया। इस मिशन के अंतर्गत अंतरिक्ष यात्री तीन दिनों से अधिक समय तक चंद्रमा पर बने रहे।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2JZktlz
2. https://www.nasa.gov/specials/apollo50th/missions.html
3. https://cnet.co/2GrkXQF



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