कला वह स्वतंत्र पक्षी है जिसे उड़ने के लिए पूरा आकाश चाहिए। यह किसी भी प्रकार के उद्देश्यों और बंधनों की मोहताज नहीं है। कला जगत में एक मुहावरा ‘कला के लिए कला’ (Art for art's sake) काफी प्रसिद्ध है। इस मुहावरे का प्रयोग मुख्यतः कला की स्वतंत्रता को बताने के लिए किया गया था। कला एक ऐसा आयाम है जो सिर्फ अपने लिए जीती है तथा अपने आप में पूर्ण है। यह किसी भी प्रकार के विचारोत्तेजक, नैतिक या उपयोगितावादी कृत्यों से पूर्णतः अलग है। ‘कला के लिए कला’ मुहावरा 19वीं शताब्दी की शुरुआत में फ्रांसिसी दार्शनिक विक्टर कज़िन द्वारा बनाए गए एक आदर्श वाक्य l’art pour l’art का अनुवादित रूप है, जो कई लेखकों और कलाकारों द्वारा बनाई गयी धारणा (कला को सिर्फ समर्थन देने की आवश्यकता है और इसे अन्य किसी भी सेवा की आवश्यकता नहीं है) को अभिव्यक्त करता है।
हम अपने लखनऊ को कलाकारों की नगरी कहें, तो इसमें भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। माना कि कला अपने आप में स्वतंत्र है किंतु फिर भी एक कलाकार को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। विशेषकर जब उसकी कला ही उसके जीवन निर्वाह का माध्यम हो। लखनऊ में नियमित रूप से स्थानीय चित्रकारों और मूर्तिकारों द्वारा कला प्रदर्शनियां लगायी जाती हैं। और लोग इनकी कला की सराहना भी करते हैं, किंतु जब इन्हें खरीदने की बात आती है तो कोई विशेष रूचि नहीं लेता है। कई स्थानीय लोग तो बाहरी राज्यों से कला खरीदने में लाखों खर्च कर देंगें किंतु स्थानीय कलाकारों की कला को आधे दाम में भी खरीदना पसंद नहीं करते हैं।
यदि किसी कलाकार की तस्वीरें बेची भी जाती हैं तो उसका दाम उसकी मेहनत के एक सूक्ष्म हिस्से के बराबर भी नहीं होता है। यहाँ एक प्रदर्शनी में औसतन एक चित्र भी नहीं बिक पाता। जिस कारण कुछ कलाकारों को अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने जुनून की हत्या करनी पड़ जाती है। उत्तर प्रदेश में लोग कला को उपहार के रूप में देखते हैं, न कि कोई खरीदने योग्य वस्तु की तरह। वे नहीं समझते कि यह एक कलाकार का जुनून है, जिसे महत्व दिया जाना चाहिए। लखनऊ में ऐसे बाज़ार की आवश्यकता है जहां खरीददार और कलाकार के बीच एक विश्वसनीय संबंध हो। वहीं एक कलाकार को भी इस प्रकार की कला तैयार करनी चाहिए, जिसे लोग आधारभूत सिद्धान्त के रूप में खरीदना पसंद करते हों, क्योंकि कला एक ऐसी चीज़ है जिसे लोग लम्बे समय तक अपने पास रखना चाहते हैं।
इसके साथ ही लखनऊ के कलाकारों को भी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है, क्योंकि यहां के कुछ कलाकार शौकिया हैं जो दूसरों के कार्यों का अनुसरण करते हैं। इन्हें अपनी कल्पना शक्ति का विस्तार कर कुछ नया बनाने का प्रयास करना होगा।
वर्ष 2018 में लखनऊ में एक बहुत बड़ी खुली कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यह यहां के कलाकारों के लिए एक बहुत ही बड़ी सफलता थी। यह प्रदर्शनी गोमती नगर में राम मनोहर लोहिया पार्क में आयोजित की गयी, जिसमें सभी उम्र के लोगों को अपने कला के प्रदर्शन का अवसर दिया गया तथा लोगों ने भी खुलकर भिन्न-भिन्न रूपों में अपनी रचनात्मकता को प्रस्तुत किया। इन चित्रों में लखनऊ के ऐतिहासिक परिदृश्य से लेकर 21वीं सदी के कलाकारों की कला को उकेरा गया था। इस प्रदशर्नी में दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, इंदौर, ग्वालियर और रांची के कलाकार भी शामिल हुए थे। कलाकारों की कला को सम्मान देने के लिए हम इसे एक अच्छा कदम कह सकते हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Art_for_art%27s_sake
2. https://bit.ly/2M3R4sX
3. https://bit.ly/2Z1fUxl
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