दो देशों के मध्य सम्बन्ध और उनके मध्य हुए व्यापारिक ही नहीं अपितु दर्शनशास्त्रीय आदान-प्रदान एक अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम प्रदान करते हैं उनके विषय में अध्ययन करने का। प्राचीन विश्व एक प्रकार से एक प्रयोगशाला की तरह था जहाँ पर विभिन्न प्रकार की खोजों - तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, विज्ञान आदि का सृजन हुआ। यदि भारत और ग्रीस के मध्य सम्बंधों की बात करते हैं तो अधिकतर लोग सिकंदर के बाद के समय को ही मानते हैं, परन्तु यह तथ्य सोचनीय है कि आखिर सिकंदर को 4 शताब्दी ईसा पूर्व में भारत देश के विषय में जानकारी कहाँ से मिली थी?
यह समझने के लिए करीब 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के समय में जाने की आवश्यकता है जहाँ पर कुछ ऐसी घटनाएं घटी जो इतिहास पर एक छाप छोड़ गयीं। 5 वीं शती ईसा पूर्व में भारत और ग्रीस का रिश्ता कायम था जिसमें कुछ तनाव आया जिसका कारण था मैराथन की लड़ाई और प्लाटा की लड़ाई जिसमें भारत की घुड़सवार सेना शामिल थी। फारस और यूनान (ग्रीस) के सम्बन्ध इन दोनों लड़ाइयों की वजह से टूट चुके थे और उसका प्रतिफल यह हुआ कि भारत के रिश्ते पर भी इसका प्रभाव पड़ा। ऐसे प्रमाण मिले हैं कि उस दौर में भारत के एक विद्वानों का समूह व्यापारिक मार्ग से होते हुए ग्रीस गया था (412-323 ईसा पूर्व) और उन्होंने वहां पर डायोजींस को प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप भारतीय प्रथाओं को ग्रीस की परंपरा में सम्मिलित किया गया।
हालांकि डायोजींस के पहले भी एक ऐसी घटना का ज़िक्र है जो कि इतिहास के दृष्टिकोण से अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। यह घटना है एक भारतीय योगी की जो कि सुकरात से मिला था और उनके साथ लम्बी बात-चीत भी किया था। सुकरात प्राचीन ग्रीस (यूनान) के एक महत्वपूर्ण दार्शनिक थे जिनको पश्चिमी दर्शन के जनकों में से एक माना जाता है। सुकरात का जन्म एथेंस में करीब 470 ईसा पूर्व में हुआ था तथा मृत्यु एथेंस में ही 399 ईसा पूर्व में। उनकी रचनाएँ आज भी दर्शनशास्त्र में स्तम्भ के रूप में मानी जाती हैं। विश्व के अन्य मशहूर दार्शनिक जैसे कि प्लेटो और ज़ेनोफोन उन्ही के शागिर्द थे।
अरिस्टोक्सेनस जो कि सुकरात के शागिर्द थे, सुकरात और एक भारतीय के एथेंस में मिलन की बात करते हैं। अरिस्टोक्सेनस पेरिपटेटिक (Peripatetic) दर्शन स्कूल के मानने वाले थे जिसके जनक अरस्तु इस मुलाक़ात के विषय में पूर्ण जानकारी प्रस्तुत करते हैं। इसका विवरण यूसेबियस अपनी पुस्तक में करते हैं। यूसेबियस ने शुरूआती इसाइयत में ग्रीस के विचारों का प्रतिपादन किया था। उनकी पुस्तक ‘यूसेबियस ऑफ़ सीज़रिया: प्रिपरेशन फॉर द गोस्पेल’ (Eusebius of Caesarea: Preparation for the Gospel) के तृतीय अध्याय में वे इस मुलाक़ात का जिक्र करते हैं। यह मुलाक़ात और उस मुलाक़ात के दौरान पूछे गए प्रश्न निम्नवत हैं-
सुकरात से मिलने के दौरान भारतीय ने पूछा कि, “आप क्या अध्ययन कर रहे हैं?” जिसपर सुकरात का जवाब आया कि वे मानव जीवन के विषय में अध्ययन कर रहे हैं। सुकरात के ऐसा कहने पर वह भारतीय हँसा और बोला कि, “बिना दिव्यता का अध्ययन किये आप मानव जीवन को कैसे पढ़ सकते हैं?” इस कथन के बाद यह साक्ष्य नहीं मिल पाया कि सुकरात अपने अध्ययन को किस दिशा में लेकर गए पर इस प्रश्न ने प्लेटो को अत्यधिक प्रभावित किया था जिसका प्रमाण उनके बाद के लेखों में देखने को मिलता है। प्लेटो ने शुरूआती दौर में उस भारतीय से इस विषय पर बात की और कहा कि दिव्यता और मानव जीवन सामान हैं। पाए गए समस्त तथ्यों में उस भारतीय का नाम नहीं पता चलता है जो कि सुकरात से मिला था। भारत के सन्दर्भ में जो भी साक्ष्य ग्रीस अथवा यूनान से मिलते हैं उनमें भारत को इन्दोई (Indόi) कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ था सिन्धु नदी के पास बसे लोग।
संदर्भ:
1. http://varnam.nationalinterest.in/2012/11/the-yogi-who-met-socrates/
2. https://www.revolvy.com/page/Aristoxenus?cr=1
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Eusebius
4. http://www.tertullian.org/fathers/eusebius_pe_11_book11.htm
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Socrates
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Ancient_Greece%E2%80%93ancient_India_relations
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