पेड़ प्रकृति का उपहार हैं जो अपनी भिन्न-भिन्न विशेषताओं के लिये जाने जाते हैं। जहां इनके द्वारा हमें फल-फूल, लकड़ी इत्यादि प्राप्त होते हैं वहीं इनके कई औषधीय गुण हमारे स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाते हैं। चंदन का पेड़ भी इन्हीं में से एक है जो अपनी विशिष्ट विशेषताओं के लिये जाना जाता है।
सेंटालम (Santalum) वंश से सम्बंधित इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम सेंटालम अल्बम (Santalum album) है जिसकी लकड़ियों से विशिष्ट सुगंध आती है तथा ये सुगंध वर्षों तक बरकरार रहती है। प्राचीन काल से ही इन पेड़ों का उपयोग खेती, प्रसंस्करण और व्यापार में किया जाता रहा है। इसकी लकड़ी का उपयोग जहां साबुन, सौंदर्य प्रसाधन, तेल आदि के निर्माण में किया जाता है वहीं आयुर्वेद में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है जिस कारण इसकी लकड़ी बहुत महंगी होती है। इसकी लकड़ी में कई प्राचीन भारतीय मूर्तियों को भी उकेरा जाता था।भारतीय चंदन भारत की स्वदेशी प्रजाति है जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत अर्थात कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी कुछ प्रजातियां पश्चिमी घाटों और कुछ अन्य पर्वत श्रृंखलाओं जैसे कि कालरायन (Kalrayan) और शेवारॉय (Shevaroy) पहाड़ियों में भी पाई जाती हैं। भारत में प्राकृतिक रूप से उगे चंदन को कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, गुजरात, मध्य प्रदेश, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में आसानी से देखा जा सकता है।
भारत (विशेष रूप से कर्नाटक) विश्व में चंदन का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। इसके औषधीय गुणों और अन्य विशेषताओं के कारण पूरे विश्व भर में इसकी मांग बहुत अधिक है। भारत में पिछली कुछ शताब्दियों में इन्हें बहुत अधिक कटाई का सामना करना पड़ा है। 1970 के दशक की शुरुआत में इनका वार्षिक उत्पादन 4,000 टन था जो वर्तमान में गिरकर 300 टन से भी कम हो गया है, जिस कारण भविष्य में ऑस्ट्रेलिया चंदन का सबसे बड़ा उत्पादक बन सकता है। अपने मूल देश में भारतीय चंदन की विकट स्थिति के लिये काफी हद तक सरकारी नीति को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है जिसके तहत चंदन को घरों में उगाने की अनुमति नहीं थी और यदि इसे उगाया भी जाए तो इस पर सिर्फ सरकार का हक़ था। घरेलू उत्पादन में गिरावट मुख्य रूप से अत्यधिक दोहन के कारण आयी है। इसके अमूल्य गुणों के कारण इसकी लकड़ी की तस्करी की जाती है जिसकी वजह से अब तक लगभग 1.74% चंदन के जंगल तस्करों द्वारा काटे जा चुके हैं। इनके अत्यधिक शोषण के कारण इनकी जंगली आबादी विलुप्त होने की कगार पर है। भारत सरकार ने अधिक कटाई के खतरे को कम करने के लिए इनके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। 2002 तक व्यक्तियों द्वारा चंदन उगाने पर प्रतिबंध लगा हुआ था। इन प्रतिबंधों ने चंदन की अवैध तस्करी को बढ़ावा दिया जिसकी वजह से चंदन के लगभग 90% पेड़ों को नुकसान पहुंचा। लेकिन आज इन पेड़ों को घर के बगीचों में आसानी से उगाया जा सकता है। आर्थिक लाभ को ध्यान में रखते हुए इसे खेतों और घरों में उगाया जाना आवश्यक है जिससे इसकी चोरी और तस्करी कम हो जायेगी।
चंदन के पेड़ को पूर्ण रूप से परिपक्व होने में लगभग 20 वर्षों का समय लगता है। लगभग 30 फीट ऊंचाई वाले इन पेड़ों को उगाने के लिये अच्छी धूप की आवश्यकता होती है। पेड़ लगभग 7 साल के बाद फूलना शुरू करता है और लगभग 10 साल बाद पेड़ का तना सुगंधित लकड़ी विकसित करता है। चंदन के पौधे को अच्छी तरह से सूखी मिट्टी में लगाया जाना चाहिए तथा पर्याप्त पानी से इसकी सिंचाई करनी चाहिए। इसको अच्छे से विकसित करने के लिये यह आवश्यक है कि खाद के रूप में केवल जैविक खाद (45 दिनों में एक बार) का ही उपयोग किया जाये। क्योंकि इसकी जड़ें आस-पास की झाड़ियों और घास की जड़ों से पोषण प्राप्त करती हैं इसलिए इसके आस-पास की झाड़ियों और घास को साफ नहीं करना चाहिए। सफेद चंदन के बीजों को ऑनलाईन (Online) या नर्सरी (Nursery) से भी प्राप्त किया जा सकता है।
इनके महत्त्वपूर्ण गुणों का लाभ उठाने के लिये यह आवश्यक है कि हम इनकी संख्या को बहुत अधिक बढ़ाएं तथा इनका अत्यधिक शोषण करने से बचें।
संदर्भ:
1. http://www.anandway.com/article/548/How-to-grow-sandalwood-trees-in-a-garden-in-North-India
https://www.google.com/amp/s/www.livemint.com/Home-Page/BDsfOQH2DCWR5ikaMVlaqI/Indian-sandalwood-production-set-to-lose-home-ground-edge.html%3ffacet=amp
3.https://www.quora.com/What-is-sandalwood-and-where-can-it-be-found-in-India#
4.https://www.google.com/amp/s/www.thehindu.com/features/homes-and-gardens/gardens/time-to-lift-restrictions-on-planting-sandalwood/article7285956.ece/amp/
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