आप सभी भू-राजनीति से परिचित होंगे लेकिन भू-अर्थशास्त्र का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। वास्तव में यह भू-राजनीति की ही एक शाखा है, जिसे भू-अर्थशास्त्र का नाम दिया गया है। अगर इसे परिभाषित किया जाये तो - अर्थव्यवस्थाओं और संसाधनों के स्थानिक, लौकिक और राजनीतिक पहलुओं का अध्ययन भू-अर्थशास्त्र कहलाता है। भू-राजनीति विज्ञान की इस शाखा का प्रतिपादन एडवर्ड लुटवाक (अमेरिकी अर्थशास्त्री और सलाहकार) और पास्कल लोरोट (फ्रांसीसी अर्थशास्त्री और राजनीतिक वैज्ञानिक) ने किया। अज़रबैजान के अर्थशास्त्री वुसल गैसिम्ली के अनुसार अर्थशास्त्र, भूगोल और राजनीति के अंतर्संबंधों का अध्ययन ही भू-अर्थशास्त्र है जो "अनंत शंकु" के रूप में पृथ्वी के केंद्र से बाह्य अंतरिक्ष की ओर जाता है।
भू-अर्थशास्त्र भले ही भू-राजनीति की एक शाखा है किंतु इन दोनों में असमानतायें भी हैं। भू-राजनीति आमतौर पर देशों और उनके बीच के संबंधों को संदर्भित करती है। यह सीमित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता वाले स्वतंत्र राज्यों और उप-राष्ट्रीय भू-राजनीतिक संस्थाओं के बीच संबंधों पर भी ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। भू-राजनीति का उदाहरण नाज़ी (Nazi) सिद्धांत है जो राजनीतिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, नस्लीय और आर्थिक कारकों का संयोजन है। नाज़ी सिद्धांत ने अपनी सीमाओं का विस्तार करने और विभिन्न महत्वपूर्ण भूमि और प्राकृतिक संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए जर्मनी के अधिकारों की पुष्टि की।
इसके विपरीत भू-अर्थशास्त्र दुनिया के देशों के आर्थिक रुझानों और स्थितियों का अध्ययन है। ये दोनों एक दूसरे से आपस में कैसे संबंधित हैं इसका भी अध्ययन भू-अर्थशास्त्र के अंतर्गत किया जाता है। भू-अर्थशास्त्र का वैश्विक पैमाना व्यापक है। यह वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखे गए देश की आर्थिक नीतियों या स्थितियों में भी योगदान देता है।
अध्ययन और विश्लेषण के लिये इनके द्वारा चुने गये प्रतिरूप, दृष्टिकोण और प्रभाव एक दूसरे से भिन्न-भिन्न हैं जिसे निम्न लिखित सारिणी द्वारा समझा जा सकता है:
विभिन्न राज्य घरेलू निजी संस्थाओं की सहायता या निर्देशन या विदेशी वाणिज्यिक हितों के विरोध में प्रत्यक्ष कार्यवाही के माध्यम से भू-आर्थिक प्रतियोगिता में संलग्न होते हैं तथा उच्च जोखिम वाले अनुसंधानों और विकास का समर्थन करके या विदेशी बाज़ार-मर्मज्ञ निवेश को शुरू करके निजी संस्थाओं की सहायता करते हैं। बाज़ार में हिस्सेदारी के लिए उत्पादन से अधिक निवेश करके भी राज्य निजी संस्थाओं की सहायता करते हैं। सीधे तौर पर भू-अर्थव्यवस्था के अंतर्गत राज्यों ने आयात करने के लिए विदेशी उत्पादों और बॉल्स्टर (Bolster) विनियामकों पर कर और कोटा लगाया है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों की शुरुआत करके और आर्थिक व तकनीकी खूफिया जानकारियों को एकत्रित करके राज्य रियायती निर्यात वित्तपोषण में भी संलग्न हो गये हैं।
भू-अर्थशास्त्र के संदर्भ में निम्नलिखित तत्वों पर ध्यान देना आवश्यक होता है:
• राज्यों को आर्थिक युद्ध के लिए अपने पथ को विकसित करना चाहिए। जब सरकारें राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढांचे का उपयोग करने लगती हैं, तो वे वास्तव में प्रणाली की सार्वभौमिकता को चुनौती देने लगती हैं जिससे यह संभावना बन जाती है कि अन्य शक्तियां इसके खिलाफ अपना बचाव करेंगी। परिणाम स्वरूप प्रतिशोध में फिर हमले भी भड़क सकते हैं। जिस प्रकार से राज्यों ने समझौतों और सम्मेलनों की एक ऐसी श्रृंखला को विकसित किया है जो देशों के बीच पारंपरिक युद्धों के संचालन को नियंत्रित करती है, ठीक उसी प्रकार इन सिद्धांतों को आर्थिक क्षेत्र में लागू किया जाना आवश्यक है।
• राज्यों को सही आर्थिक भूमिका ढूंढनी चाहिए और नियमों के नए रूपों का अनुसरण करना चाहिए।
• राज्यों को "विशालतम के अस्तित्व" और कमज़ोरों के एकत्रीकरण से जुड़े रहना चाहिए। जब कोई छोटा देश क्षेत्रीय उत्प्रेरणा पर निर्भर हो जाता है, तो उसकी आर्थिक और सामरिक रूप से खुद को बेहतर बनाने और उसे बनाए रखने की क्षमता सीमित हो जाती है। इससे बचने के लिए छोटे राज्यों को अपने संसाधनों को निरंतर संग्रहित करने और स्थानीय प्रमुख शक्तियों को अधिक चुनौती देने की आवश्यकता है।
• यदि भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा और परिवर्ती कारकों द्वारा उत्पन्न जोखिमों को कम करना है तो व्यवसायों को व्यापक वैश्वीकरण को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। व्यापार उदारीकरण और विदेशी निवेश के लिए इसे एक मज़बूत मध्यस्थ होना चाहिए जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मज़बूती प्रदान करेगा और युद्ध के लिए संरक्षणवाद और प्रोत्साहन को कम कर देगा। व्यवसायों को इस बारे में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है कि विभिन्न बाज़ारों को स्थानीय रूप में कैसे देखा जा सकता है।
• दुनिया भर के संस्थानों के बजाय प्रमुख क्षेत्रीय प्रतिद्वंदियों और उप-वैश्विक राजनीति पर ध्यान देना आवश्यक है। वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए नागरिक समाज को अधिक व्यावहारिक होने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Geoeconomics
2.https://www.quora.com/What-is-the-difference-between-geopolitics-geostrategic-and-geoeconomics
3.https://ebrary.net/935/economics/differences_between_geopolitics_geoeconomics
4.https://www.weforum.org/agenda/2015/02/5-things-to-know-about-geo-economics/
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