रेलवे ने जगाई मदारी समुदाय के लिए आशा की किरण

लखनऊ

 29-06-2019 11:50 AM
व्यवहारिक

बंदर आज देश के अधिकांश हिस्‍सों में एक बड़ी समस्‍या बनते जा रहे हैं। बंदर व्‍यक्तिगत स्‍थानों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्रों में भी जनजीवन को प्रभावित कर रहे हैं। लखनऊ के रेलवे स्‍टेशनों (Railway Stations) में भी बंदरों का आतंक अपने चरम पर पहुंच गया है। वे यात्रियों से सामान छीन रहे हैं, आस पास की बिजली की तारों को तोड़ रहे हैं, सीसीटीवी कैमरों (CCTV Cameras) को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही दुकानों में घुसकर सामान चुरा रहे हैं। बंदरों की इन गतिविधियों ने लोगों की नाक में दम कर दिया है।

कुछ समय पूर्व रेलवे विभाग ने इन्‍हें भगाने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया था। इन्‍होंने किस्‍मत नाम के एक व्‍यक्ति, जो पेशे से एक मदारी हैं, को इस काम के लिए नियुक्‍त किया। किस्‍मत लंगूर की आवाज़ निकालकर बंदरों को भगाते हैं। वे पहले यह कार्य लंगूरों से ही करवाते थे किंतु सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाने के बाद उन्‍होंने स्‍वयं लंगूर की आवाज़ निकालना सीखा। अपने इस कौशल को विकसित करने के बाद, पहले इन्‍होंने अपने आसपास के घरों में लंगूर की आवाज़ निकालकर बंदरों को भगाना शुरू किया। इनका यह तरीका काफी प्रभावी सिद्ध हुआ। यह अपनी इस प्रतिभा के कारण लगभग 50,000 रूपय प्रतिमाह तक कमा लेते हैं।

इनकी इस प्रतिभा को देखते हुए लखनऊ रेलवे ने करीब 20,000 रूपये प्रतिमाह में चारबाग स्‍टेशन सहित आसपास के स्‍टेशनों से बंदर भगाने का कार्य इन्‍हें सौंपा। इनका कहना था कि, “बंदर वास्‍तव में लंगूरों से बहुत डरते हैं। यदि वे तीन चार महीने तक लंगूर की आवाज़ से डराकर उन्‍हें भगाते रहें तो बंदर जल्‍द ही यहां से चले जाएंगे।” यह मदारी समुदाय के अन्‍य बेरोज़गार लोगों को भी इसका प्रशिक्षण देते हैं। किस्‍मत अपने इस कार्य से अपने समुदाय की परंपरा को भी जीवित रखना चाहते हैं।

लखनऊ रेलवे इससे पहले भी बंदरों को भगाने के लिए एक व्‍यक्ति अच्छन मियाँ उर्फ ‘गुड्डे’ को नियुक्‍त कर चुका है, जो बंदरों के समान वेशभूषा धारण कर चारबाग रेलवे स्‍टेशन से बंदरों को भगाते थे। इन्‍होंने अपनी कला से कुछ ही समय में अधिकांश बंदर रेलवे स्‍टेशन से भगा दिए थे।

भारत में मदारियों का व्यवसाय आज अंतिम सांस ले रहा है, ऐसी स्थिति में उत्‍तर रेलवे ने फिर से इन्‍हें एक आशा की किरण दे दी है।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2NvCAEy
2. https://bit.ly/2xlUFKA
3. https://bit.ly/302522B



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id