भारत में मोर को एक दिव्य पक्षी माना जाता है। इसके पंख को भगवान कृष्ण के मुकुट में स्थान मिला है। वे उस दिव्य प्रेम का प्रतिनिधित्व करते हैं जो मानव हृदय में बसकर उसे परमानंद से भर देता है। मोरपंख सुंदरता, जीवन में समृद्धि, सत्कार और आनंद की छवि माने जाते हैं। इसमें गहरे रंग दुख व उदासी के लिए तथा खुशी के लिए उज्ज्वल रंग हैं। माना जाता है मोरपंख बुरी नज़र से बचाता है और क्रोध, लालच, ईर्ष्या जैसी सभी नकारात्मकता को नष्ट करता है और ज़हर को भी काटता है।
मोर के पंखों की बाज़ार में अच्छी मांग रहती है क्योंकि ये धार्मिक कार्यों के लिए खरीदे जाते हैं। यह प्रतीकात्मक है क्योंकि भगवान कृष्ण अपने मुकुट में मोर पंख पहनते थे। मोर के पंखों में सजावटी और उपयोगिता दोनों ही मूल्य होते हैं।
वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट (Wildlife Protection Act), 1972 के तहत हालांकि इस पक्षी की हत्या को प्रतिबंधित किया गया है परन्तु प्राकृतिक रूप से मोर के पंखों के व्यापार की अनुमति है। कानून की खामियों का दुरुपयोग किया जाता है और यही पंख व्यापार पूरे भारत में उनकी हत्या का बड़ा कारण है। 1991 में वर्ल्ड वाइड फंड (World Wide Fund) द्वारा प्रकृति के लिए भारत में मोर की आबादी का एकमात्र सर्वेक्षण किया गया जिससे पता चला कि भारत में आज़ादी के समय मौजूद कुल मोर आबादी का केवल 50% ही 1991 में बचा था। सरकारी अधिकारियों और पशु कार्यकर्ताओं का मानना है कि निवास स्थान के नुकसान और अवैध शिकार के कारण 1991 के बाद यह संख्या और कम हो गई है। मोर के मांस और पंख सहित कई कारणों से इनका शिकार किया जाता है। एक अधिकारी ने कहा, "ऐसी धारणा है कि मोर के पंखों को घर में रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।" कई स्थानों पर राष्ट्रीय पक्षी को मांस के लिए मार दिया जाता है, जिसका विशेष रूप से गठिया के संबंध में औषधीय महत्व माना जाता है।
मोर की घटती संख्या को रोकने के लिए वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत कड़े कानून बनाए गए हैं। एक व्यक्ति को मोर के पंख या ट्राफियां (Trophies) बेचते या खरीदते हुए पकड़ा जाये तो संशोधित कानून के तहत उसे दो साल तक की कैद हो सकती है। फिर भी देश के विभिन्न हिस्सों में इनका एक बड़ा बाज़ार देखा जाता है।
देश में मोर के पंखो का प्रमुख स्रोत राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु हैं। WWF-1 की एक शाखा, वन्यजीव अपराध रोकथाम संगठन, TRAFFIC ने राजस्थान के गोदामों में पंखों के 25.71 करोड़ गुच्छे, गुजरात में 3 करोड़ और तमिलनाडु में 2 लाख का हिसाब बताया है। आगरा और राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में मोर पंखों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं जबकि ओडिशा मोर पंखों का सबसे बड़ा खरीददार है।
तेईपूसम और पंगुनी उथ्राम त्योहारों में तमिल नाडू और केरल में लगभग 1.95 करोड़ पंखों का उपयोग किया जाता है। पंखों का उपयोग पंखे, सुन्दर मोर गुड़िया, झुमके के साथ-साथ आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा चूरण बनाने में भी किया जाता है। इसके साथ ही, शिकारी कहलाने वाली अनुसूचित जाति का एक प्रमुख संप्रदाय, आंध्र प्रदेश व अन्य दक्षिणी राज्यों में मोर के पंख बेचने के लिए विशेष रूप से व्यापक है। नेल्लोर जिले में कई आदिवासी परिवार हैं जिनका मुख्य काम मुंबई जैसे दूर के स्थानों से मोर के पंखों की खरीद करना और उन्हें विभिन्न धार्मिक स्थानों पर बेचना है। भारत में मोर को मारना प्रतिबंधित है, लेकिन मुंबई स्थित कुख्यात गिरोह गुप्त रूप से आन्ध्र प्रदेश में शिकारियों को मोर पंखों की आपूर्ति करने वाली मुख्य एजेंसी (Agency) मानी जाती है।
इस पूरे व्यवसाय में और भी बहुत सारे रास्ते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मोर के अवैध शिकार के लिए कड़े कानून होते हुए भी, निश्चित रूप से इनका बहुत बड़ा बाज़ार काम करता है जिसे हम हमारे लखनऊ में भी देख सकते हैं, और यहां तक कि डिजिटल प्लेटफॉर्म (Digital Platforms) जैसे कि Amazon.in आदि पर भी इनका व्यवसाय किया जा रहा है। ये सभी ऐसा विश्वास दिलाते हैं कि इन वस्तुओं को जानवरों को बिना कोई नुकसान किये निकाला जाता है लेकिन इन्हें आंख मूंदकर नहीं माना जा सकता है।
सन्दर्भ:
1. https://www.quora.com/What-is-the-significance-of-the-peacock-feather-on-Krishnas-crown
2. http://bit.ly/2IvTcrx
3. http://bit.ly/2ZABokx
4. http://bit.ly/2WXlX4m
5. https://www.amazon.in/Desi-Natural-Peacock-Feathers-Tails/dp/B01AWOGG88
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