पाकिस्‍तान में अभी भी जीवित हस्‍त कशीदाकारी

लखनऊ

 18-06-2019 11:10 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

हस्‍तकला का विकास मानव जाति का एक उत्‍कृष्‍ट कौशल है, जिसने इसे हमेशा कुछ नया और आकर्षक करने के लिए प्रोत्‍साहित किया है। पुरातत्‍विक खोजों में इसके उत्‍कृष्‍ट उदाहरण मिले हैं, अर्थात यह सभ्‍यता के प्रारंभ होने के साथ ही विकसित हो गयी थी। किंतु आज औद्योगिक दौड़ में यह कला कहीं विलुप्‍त हो गयी है। लेकिन आज भी दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, नेपाल आदि) में हस्‍तकला के कुछ रूप, जैसे वस्‍त्रों पर की जाने वाली काशीदकारी, आज भी जीवित है, विशेषकर पाकिस्‍तान में।

पाकिस्‍तान में आज भी महिलाएं बड़े पैमाने पर हाथों से की गयी कढ़ाई वाले वस्‍त्र पहनना पसंद करती हैं’। यह कढ़ाई काफी हद तक भारत में की जाने वाली कढ़ाई के समान होती है। पाकिस्तान को अफगानिस्तान, ईरान, फ्रांस और चीन से कढ़ाई की तकनीक विरासत में मिली थी, इसलिए इनकी कढ़ाई में इन चारों देशों की तकनीक की विशेष झलक दिखाई देती है। यहां पर कढ़ाई अंधिकांशतः ग्रामीण महिलाओं द्वारा घर में ही की जाती है। इस पारंपरिक कढ़ाई को धागे सूई और वस्‍त्र सजावट हेतु अन्‍य सामग्री जैसे क्रिस्टल (Crystals), स्टोन्स (Stones), सेक्विन (Sequins), टिनसेल (Tinsel), धात्विक पट्टी और धात्विक तार की सहायता से किया जाता है। इसके लिए एकाग्रता, कौशल, विशेषज्ञता और श्रम समय की आवश्‍यकता होती है तथा यह एक ऐसी कला है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्‍तांतरित किया गया है। इनमें विभिन्‍न प्रकार की कढ़ाई तकनीक शामिल हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
बालूची कढ़ाई / डोच : ऊपर दिये गये चित्र में बलूची कढ़ाई को दिखाया गया है।
यह ज्यामितीय पैटर्न (Pattern) और रंगों की आवृति का एक जटिल और उत्‍कृष्‍ट कार्य है। इस कढ़ाई को एक मज़बूत कढ़ाई के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्‍योंकि इसमें सतही कपड़े को साटन (Satin), इंटरलेसिंग (Interlacing), आड़ी तिरछी बखिया, इत्‍यादि से पूर्णतः ढक दिया जाता है। आस्तीन और गर्दन जैसे खुले स्‍थानों की किनारियों को रेशम और सोने के धागों से ढक दिया जाता है।
बालूची चमड़े की कढ़ाई : यह कढ़ाई मुख्‍यतः सजावट सामग्री जैसे बेल्‍ट (Belt), पारंपरिक बटुए, और टोपी इत्‍यादि में की जाती है। इस कढ़ाई में चैन (Chain) की सिलाई की जाती है। इसमें बनाए जाने वाले पुष्‍प और ज्यामितीय पैटर्न में महीन रेशम या सूती कढ़ाई, छोटे शीशे, और अवश्‍वयकता अनुरूप चांदी और सोने के धागों का प्रयोग किया जाता है।
क्रोशिया कढ़ाई : यह कढ़ाई मुख्‍यतः मध्‍यम आयु वर्ग की लड़कियों द्वारा की जाती है, जिसमें डिज़ाइन (Design) बनाने के लिए ऊन का प्रयोग किया जाता है। पारंपरिक रूप से जटिल डिज़ाइन जैसे चादर, मेज़पोश, दुपट्टे की किनारियों के लिए सूती धागों का उपयोग किया जाता था।
ज़रदोज़ी/ज़री : सूई धागे से खूबसूरत पत्तियों के डिज़ाइन तैयार किए जाते हैं। जो सोने या धातू से की जाने वाली कढ़ाई को संदर्भित करते हैं।
कश्मीरी कढ़ाई : यह कढ़ाई पारंपरिक रूप से केवल शॉल (Shawl) में की जाती है, किंतु अब इसे दुप्‍पटे और पोशाकों में भी किया जा रहा है।
फुलकारी : सतह पर साटन में रेशम के धागों का प्रयोग करके फूल के डिज़ाइन, ज्यामितीय पैटर्न तैयार किया जाता है।
रेशम : रेशम के महिन धागे से की जाने वाली कढ़ाई पारंपरिक है, जिसमें साटन टांके, फ्रेंच गांठें, चेन स्टिच (Chain stitches), लेज़ी डेज़ी (lazy daisy), रिबन वर्क (Ribbon Work) इत्‍यादि शामिल हैं।

पाकिस्‍तान में क्षेत्रवार भिन्‍न भिन्‍न पारंपरिक कढ़ाई तकनीक देखने को मिलती हैं। सिंध क्षेत्र की कढ़ाई स्‍थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले सैलानियों का भी मन मोह लेती है। यह प्रमुखतः स्‍थानीय महिलाओं द्वारा की जाती है। सिंध पाकिस्‍तान में अद्भुत हस्‍तकला, श्रेष्‍ठ शीशे की गुणवत्‍ता, और शानदार कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है। यहां तैयार किए गए चटकीले रंगों के कपड़ों का विश्‍व स्‍तर पर निर्यात किया जाता है।

संदर्भ:
1. https://www.youtube.com/watch?v=NxEf3grsrvk
2. https://asiainch.org/craft/embroidery/
3. https://allaboutsana.com/embroidery-found-in-pakistan/
4. https://bit.ly/2v1oMEt
5. http://www.houseofpakistan.com/2014/05/sindhi-hand-embroidery/



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id