तेप्ची कढ़ाई- जो मशीनों के इस दौर में भी हाथ से की जाती है

लखनऊ

 18-06-2019 11:04 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

कढ़ाई यानी रंग-बिरंगे धागों से सुई की मदद से कुछ ऐसा काढ़ना, जो कपड़े की सुन्दरता को बढ़ा दे। पुराने ज़माने में कढ़ाई हाथों से ही की जाती थी, लेकिन वक्त बदलने के साथ ही आज कढ़ाई मशीनों (Machines) से भी की जाने लगी है। कढ़ाई करना तब भी बारीकी और हुनर का काम था और आज भी है। तो चलिये जानते हैं कि हाथ की कढ़ाई और मशीन की कढ़ाई में क्या अंतर है और कैसे दोनों के बीच पहचान कर सकते हैं। हाथ की कढ़ाई और मशीनों की कढ़ाई में मुख्य अंतर टांके लगाने की प्रक्रिया का है। गुणवत्ता की दृष्टि से, हाथ की कढ़ाई अधिक सपाट और नरम होती है और विभिन्न प्रकार के टांके, धागे द्वारा निर्मित होती है। हस्तनिर्मित कढ़ाई में अद्वितीय शैली, उत्तम डिज़ाइन (Design), कढ़ाई का सावधानीपूर्वक काम, जीवंत सुई का काम, सुरुचिपूर्ण रंग, और मज़बूत स्थानीय विशेषतायें देखने को मिलती हैं।

वहीं मशीन की कढ़ाई की बात करें तो यह पूरे कपड़े पर एक समान होती है और कंप्यूटर (Computer) द्वारा डिज़ाइन की जाती है। इसमें पूर्व-निर्मित पैटर्न (Pattern) एक कंप्यूटर प्रोग्राम (Program) में लगाए जाते हैं जो कढ़ाई मशीन पर कढ़ाई के टांकों को नियंत्रित करता है। साथ ही साथ इससे निर्मित सभी डिज़ाइन एकसमान होते हैं और बिल्कुल एक जैसे दिखते हैं। 1828 में फ्रांस में पहली कढ़ाई मशीन बनाई गई थी। इसके बाद 1863 में स्विस (Swiss) कढ़ाई मशीन बनाई गई जिसे शिफली (Schiffli) नाम दिया गया था। आखिरकार, 1900 की शुरुआत में, सिंगर (Singer) ने कई सिरों के साथ एक कढ़ाई मशीन विकसित की और तब से अब तक कढ़ाई मशीनें हर दौर में विकसित होती आई हैं।

मशीन की कढ़ाई में धागों को विभाजित नहीं किया जा सकता परंतु हस्तनिर्मित कढ़ाई में कारीगर द्वारा धागों को विभाजित किया जा सकता हैं। मशीन कढ़ाई के लिए धागे फाइबर (Fibre) सामग्री से, जैसे रेयान (Rayon), पॉलिएस्टर (Polyester) या धातु आदि से बने होते हैं और जब मशीन कढ़ाई की जाती है, तो यह बहुत तंग होती है। जबकि हस्तनिर्मित कढ़ाई धागा प्राकृतिक रेशम से बना होता है।

हस्तनिर्मित कढ़ाई हाथों से किये जाने की वजह से बहुत धीमी गति से होती है, जबकि मशीनी कढ़ाई बहुत तेज़ी से हो जाती है। इस कारण इनकी कीमतों में भी अंतर होता है। यदि आप एक हस्तनिर्मित कढ़ाई की शॉल खरीदते हैं तो इसकी कीमत आपको मशीन कढ़ाई से निर्मित शॉल से ज्यादा चुकानी पड़ेगी। हस्तनिर्मित कढ़ाई के वस्त्र, मशीन कढ़ाई से निर्मित वस्त्रों की तुलना में अधिक महंगे होते हैं क्योंकि हस्तनिर्मित कढ़ाई के वस्त्रों को बनाने में ज़्यादा समय, मेहनत और लागत लगती है। हस्तनिर्मित कढ़ाई में एक कारीगर अपने विवेक से सुई द्वारा वस्त्र के प्रत्येक हिस्से को कई धागों से सुंदर तरीके से सजाता है। धागों की विभिन्न मोटाई के कारण अधिक डिज़ाइन अच्छे से उभर कर आते हैं। यदि आप हस्तनिर्मित कढ़ाई के वस्त्र लेना चाहते हैं परंतु मशीन कढ़ाई और हाथ कढ़ाई के बीच अंतर का पता नहीं लगा पाते तो निम्न तरीकों से पता लगा सकते हैं:
मशीन की कढ़ाई में एक सतत कढ़ाई की प्रक्रिया द्वारा डिज़ाइन तैयार किये जाते हैं। यदि आप इसके पीछे की तरफ देखेंगे तो आपको बहुत कम धागे लटके हुये नज़र आएंगे। इसके विपरित हाथ की कढ़ाई करते समय शिल्पकार समय-समय पर एक धागे को तोड़कर अन्य नये धागे से जब काम शुरू करता है तो पीछे की तरफ पुराने धागे में गांठ लगा कर छोड़ देता है। इस प्रकार पीछे की तरफ बहुत से लटके हुये धागे नज़र आएंगे।
हाथ की कढ़ाई अच्छी तरह से रंगों के साथ सुव्यवस्थित होती है। जबकि मशीन की कढ़ाई में रंग अतिव्याप्त हो जाते हैं।
आपने अक्सर देखा होगा कि मशीन की कढ़ाई में फूल और पत्तियाँ ज़्यादातर सीधी रेखा में होते हैं जबकि हाथ की कढ़ाई में कुशल हाथों द्वारा घुमावदार डिज़ाइन भी बनाये जा सकते हैं।

हस्तनिर्मित कढ़ाई की बात करें तो लखनऊ की चिकनकारी मशहूर कढ़ाई है। चिकनकारी का अर्थ है चिकन (Chikan) का कार्य। चिकन फारसी शब्द से बना है, जिसका अर्थ मुख्य रूप से जटिल और उत्तम सुई के काम से तैयार किया हुआ कपड़ा है। यह लखनऊ की मशहूर कढ़ाई है, जिसमें लखनवी नज़ाकत देखने को मिलती है। कहा जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी नूरजहां इसे ईरान से सीख कर आई थीं और एक दूसरी धारणा यह है कि नूरजहां की एक बांदी बिस्मिल्लाह जब दिल्ली से लखनऊ आई तो उसने इस हुनर का प्रदर्शन किया। इस कढ़ाई के नमूनों में महीन कपड़े पर सुई-धागे से तरह-तरह के टांकों द्वारा हाथ से पशु-पक्षी, गुलदस्ते, मोर, बेल-बूटे, फूल-पत्ते बनाये जाते हैं। चिकनकारी में सूती में मुर्री, बखिया, जाली तेप्ची, फंदा, आदि टाँकों का प्रयोग किया जाता है। इनमें से सबसे प्रमुख और अत्यंत सरल टांके तेप्ची हैं।

तेप्ची टांके आज भी हाथों द्वारा ही काढ़े जाते हैं। इन्हें तैप्ची या तीप्खी भी कहा जाता है। ये एक विशिष्ट प्रकार के टांके का काम है जो चिकनकारी कढ़ाई में उपयोग किये जाते हैं। इस शैली में, कपड़े को एक बार में एकल पंक्तियों के साथ बुना जाता है। यह शैली चिकनकारी की सबसे बुनियादी शैली है इसलिये चिकनकारी करने के लिये इन्हें सीखना आवश्यक है। हालांकि आज मशीनों से कई प्रकार की कढ़ाई की जाती है परंतु तेप्ची शैली बड़े चिकनकारी परिधान का हिस्सा है इसलिये आज भी कढ़ाई की इस शैली को केवल हाथ से किया जाता है। यह कढ़ाई का सबसे बुनियादी रूप है और आमतौर पर अधिक विस्तृत और जटिल पैटर्न बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरी तरह से हाथ से और कपड़े के दाईं ओर की जाती है।

संदर्भ:
1. http://blog.delicatestitches.com/embroidery-hand-vs-machine/
2. https://bit.ly/2FePEYo
3. https://bit.ly/31BFM4G
4. https://www.utsavpedia.com/motifs-embroideries/tepchistitch/



RECENT POST

  • जानें, प्रिंट ऑन डिमांड क्या है और क्यों हो सकता है यह आपके लिए एक बेहतरीन व्यवसाय
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:32 AM


  • मकर संक्रांति के जैसे ही, दशहरा और शरद नवरात्रि का भी है एक गहरा संबंध, कृषि से
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:28 AM


  • भारत में पशुपालन, असंख्य किसानों व लोगों को देता है, रोज़गार व विविध सुविधाएं
    स्तनधारी

     13-01-2025 09:29 AM


  • आइए, आज देखें, कैसे मनाया जाता है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:32 AM


  • आइए समझते हैं, तलाक के बढ़ते दरों के पीछे छिपे कारणों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:28 AM


  • आइए हम, इस विश्व हिंदी दिवस पर अवगत होते हैं, हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार से
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:34 AM


  • आइए जानें, कैसे निर्धारित होती है किसी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:38 AM


  • आइए जानें, भारत में सबसे अधिक लंबित अदालती मामले, उत्तर प्रदेश के क्यों हैं
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:29 AM


  • ज़मीन के नीचे पाए जाने वाले ईंधन तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे होता है?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:46 AM


  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली कैसे बनती है ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id