भारत संरचनात्मक दृष्टि से गांवों का देश है, और अधिकतर ग्रामीण समुदाय कृषि पर ही आधारित हैं। और इसलिए ही भारत को कृषि प्रधान देश की संज्ञा भी मिली हुई है। लेकिन वर्तमान में भारत में किसानों की स्थिति काफी खराब और दयनीय हो चुकी है। दिन प्रतिदिन किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन किसानों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे का स्पष्ट कारण कई लोगों को कभी समझ ही नहीं आया। आर.एस. देशपांडे और सरोज अरोड़ा की 2010 की एक पुस्तक ‘अगरेरियन क्राइसिस एंड फार्मर सुसाइड्स’ (Agrarian Crisis And Farmer Suicides) में यह समझाया गया है कि क्यों हर साल हज़ारों भारतीय किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं।
इस पुस्तक में बदलती कृषि संरचनाओं और कृषि संकट पर उनके प्रभाव से निपटने के लिए तीन निबंध लिखे गये हैं। एक निबंध में, ए.आर.वासवी ने कृषि आत्महत्याओं के संदर्भ में हरित क्रांति पर संकट को ज़िम्मेदार ठहराया है। आधुनिक कृषि पद्धतियाँ चार दशक से अधिक समय से प्रचलन में हैं, लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत तक किसान आत्महत्या का कोई मामला सामने नहीं आया था। 1990 के दशक के मध्य में आर्थिक सुधारों की शुरूआत के बाद से कृषि संकट दिखाई देने लगे थे। देशपांडे और शाह, वैश्वीकरण से उत्पन्न विभिन्न मुद्दों को स्पष्ट रूप से सामने लाये किंतु कृषि संकट में वैश्वीकरण की भूमिका पर इन्होनें कुछ नहीं कहा जबकि कृषि संकट देश में काफी व्यापक रूप से फैला हुआ है। किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की घटना ज़्यादातर पंजाब, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से आती हैं।
आंध्र प्रदेश की स्थिति पर आधारित निबंधों ने वाणिज्यिक फसलों पर बढ़ती निर्भरता, भूजल सिंचाई पर निर्भरता और अनौपचारिक ऋण को किसानों की अस्थिरता का प्रमुख कारण बताया है।
पंजाब ने हमेशा कृषि क्षेत्र में भारत की उपलब्धि के गौरव बिंदु के रूप में कार्य किया है। वहीं राज्य द्वारा हरित क्रांति के नेतृत्व पर पंजाब के किसानों को देश को खाद्यान्न की कमी से लेकर खाद्य स्थिरता तक लाने की जिम्मेदारी दी गई। पंजाब से किसानों की आत्महत्या के मामलों ने कई शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को व्याकुल किया हुआ है क्योंकि पंजाब हरित क्रांति तकनीक के माध्यम से कृषि की स्थिति को बदलने में अग्रणी उदाहरणों में से एक रहा है। पंजाब की स्थिति का विश्लेषण करने के बाद विभिन्न बातें सामने आई हैं।
आत्महत्या प्रभावित जिलों में उपलब्ध साहित्य और प्राथमिक सर्वेक्षण के आधार पर, अय्यर और अरोड़ा ने 1990 के दशक के बाद से पंजाब में किसानों की आत्महत्या के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं को उजागर किया है। वहीं अनीता गिल के मुताबिक किसानों द्वारा आत्महत्या करने का मुख्य कारण ऋण है। साथ ही कम उपज, खेती की बढ़ती लागत और शुद्ध कृषि आय में गिरावट ऋणग्रस्तता की समस्याओं को बढ़ाती है। वहीं अय्यर और अरोड़ा द्वारा और अधिक विश्लेषण करने पर पता चला है कि दलालों द्वारा लगातार ऋण चुकाने के लिए दबाव के कारण उन्हें ज़मीन बेचने पर मजबूर किया जाता था या लगातार अपमानित किया जाता था। जिस कारण वे समाज में निरंतर अपमान का सामना करने के बजाय आत्महत्या कर लेते हैं।
महाराष्ट्र एक केंद्रीय भारतीय राज्य है, जो वर्षा आधारित परिस्थितियों में अपने क्षेत्र का उच्च हिस्सा प्रदान करता है। महाराष्ट्र के चार व्यापक क्षेत्र हैं, जैसे पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण, मराठवाड़ा और विदर्भ। भारत में सबसे कम सिंचित क्षेत्र महाराष्ट्र में हैं, जिनमें से मराठवाड़ा और विदर्भ अन्य की तुलना में सबसे पिछड़े क्षेत्र हैं। महाराष्ट्र के कृषि क्षेत्र ने पिछले छह दशकों के दौरान कई संकटों से खुद को बचाया है। साठ के दशक के मध्य में सूखे और 1972-73 के विनाशकारी अनुभव ने राज्य के नीति निर्माताओं को कठोर सबक सिखाया है।
हरित क्रांति की शुरुआत के बाद भारतीय कृषि की स्थिति बदल गई थी, लेकिन महाराष्ट्र में सूखा पड़ने के बाद कृषि की स्थिति में काफी बदलाव आ गया। जहां खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा, वहीं तिलहनी, कपास, गन्ना, आदि व्यावसायिक फसलों के उत्पादन में भी इसी तरह का झुकाव देखा गया। इस झुकाव ने विदर्भ और मराठवाड़ा को काफी प्रभावित किया। इसके कई कारक सामने आए, सबसे पहला सीमांत और छोटे किसानों में पहले बढ़ोतरी हुई लेकिन स्वामित्व वाली भूमि में धीरे-धीरे कमी होने के कारण किसानों का शोषण होने लगा। दूसरा, वाणिज्यिक फसलों की ओर किसानों का बढ़ता रुझान। तीसरा, ज़मीन के बाज़ार में बड़े ज़मीनदारों का बड़ा पक्ष होना। तथा ऐसे ही कुछ और कारक ऐसी स्थितियाँ बना देते हैं जब एक किसान को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
कर्नाटक राज्य में भी किसानों द्वारा आत्महत्या करने का मामला सामने आया है। कर्नाटक में किसानों द्वारा आत्महत्या करने के कारण के बारे में देशपांडे ने अपने पेपर (Paper) में व्यापक सैद्धांतिक और अनुभवजन्य मुद्दों को संबोधित किया। उन्होंने जमा धन और ऋणग्रस्तता को इसका कारण माना। मुज़फ्फर असदी (1998) ने अपने विश्लेषण को राजनीतिक अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर केंद्रित किया। वे कर्नाटक के किसानों की आत्महत्या के कारणों की अलग-अलग दृष्टिकोणों से जाँच करते हैं, जिससे वे वैश्वीकरण को ही इन आत्महत्याओं का कारण मानते हैं।
आत्महत्या के कारण का एक संक्षिप्त विवरण
कृषि क्षेत्र की भेद्यता निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है - राज्य की नीतियां; ऋण; ऋणदाता और विक्रेता; उत्पाद बाजार की खामियां; स्वास्थ्य और अन्य ज़रूरतें; खरीदे गए आदानों की प्रौद्योगिकी और जानकारी; श्रम; पानी; मौसम; आदानों की कीमतें आदि। कृषि क्षेत्र में संकट एक वास्तविकता है और इसकी शुरुआत नीतियों के बाहरी होने और नीतिगत मोर्चे के कुछ मुद्दों से नहीं हुई है बल्कि दोनों में पैदा हुए तनाव से हुई है। इसलिए, अब स्थिति से निपटने के लिए नीतियों को फिर से तैयार करने की आवश्यकता है।
संदर्भ :-
1. https://www.thehindu.com/books/why-do-farmers-commit-suicide/article2082581.ece
2. https://bit.ly/2Zp8BPM
3. https://www.goodreads.com/book/show/17923784-agrarian-crisis-and-farmer-suicides
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.