किसी भी राष्ट्र के विकास को मापने का उत्तम तरीका वहां के समाज का स्वास्थ्य मापना होता है। क्योंकि नागरिकों के स्वास्थ्य का सीधा असर उनकी कार्य-शक्ति पर पड़ता है और नागरिक कार्य-शक्ति का सीधा संबंध राष्ट्रीय उत्पादन-शक्ति से है। जिस देश की उत्पादन शक्ति मज़बूत है वही देश वैश्विक स्तर पर विकास के नए-नए पैमाने बनाने में सफल होता है। अतः इससे स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी राष्ट्र के विकास में वहां के नागरिक-स्वास्थ्य का बेहतर होना बहुत ही ज़रूरी है। जब से मानव की उत्पत्ति हुई है तभी से खुद को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी उसकी खुद की ही है और समय के साथ-साथ स्वास्थ्य की चुनौतियां भी बदली हैं। वर्तमान में किसी भी राष्ट्र के लिए उसकी सबसे बड़ी चुनौती है जनसंख्या के अनुपात में स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैया कराना और इस समस्या से हम भारतीय भी अछूते नहीं है।
वर्तमान में भारत में व्यक्तिगत स्वच्छता के विषय में जागरूकता थोड़ी कम है। खासकर के हमारे उत्तर प्रदेश में, आज व्यक्तिगत स्वच्छता के मूल सिद्धांतो पर भारतीय नागरिकों को शिक्षित करने की सख्त आवश्यकता है। व्यक्तिगत स्वच्छता का अर्थ है खुद को साफ रखना। व्यक्तिगत स्वच्छता का आशय उस दिनचर्या से है जिसके फलस्वरूप एक स्वस्थ और स्वच्छ परिवेश बनता है। उदाहरण के लिये प्रतिदिन नहाना, साफ व स्वच्छ वस्त्र धारण करना, दांतों की सफाई आदि। व्यक्तिगत स्वच्छता बनाये रखने से रोग क्षमता बढ़ती है तथा बीमार होने की संभावना कम होती है। परंतु भारत में इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है।
लाइवमिंट (Livemint) के एक लेख के अनुसार, 2012 में किए गए एक सर्वेक्षण में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा डेटा (Data) जारी किया गया था। इस सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 32% ग्रामीण घरों में ही शौचालय हैं। क्या आपको पता है कि खुले में शौच करने वाले दुनिया के लगभग एक अरब लोगों में से आधे से अधिक लोग भारत में निवास करते हैं। अस्वच्छता के कारण ही कुपोषण और उत्पादकता में नुकसान की उच्च दर बढ़ती जा रही है। विश्व बैंक के अनुसार भारत को अस्वच्छता से फैली बिमारियों के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 6% का नुकसान हुआ है। भारत में लगभग 48% बच्चे कुछ हद तक कुपोषण के शिकार हैं। यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, पानी से होने वाली बीमारियाँ जैसे डायरिया और श्वसन संक्रमण भारत में बच्चों की मौतों का सबसे बड़ा कारण है और दूषित पानी से होने वाले दस्त से कमज़ोर बच्चे जल्द ही निमोनिया आदि जैसे संक्रमण की चपेट में आते हैं।
यदि व्यक्तिगत स्वच्छता पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो दस्त आदि के संक्रमण की सम्भावनाएँ काफी हद तक घट जाती हैं। व्यक्तिगत स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि घर के पास पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो। व्यक्तिगत स्वच्छता के लिए इन बातों को ध्यान में रखें:
व्यक्तिगत स्वच्छता की अच्छी आदतों में शामिल हैं:
• रोज नहाएँ: यदि संभव हो, तो हर किसी को हर दिन स्नान करना चाहिए।
क्या आप जानते हैं कि कुछ देशों में, दिन में दो बार से अधिक स्नान करना आम है? कैंटार वर्ल्डपेनल (Kantar Worldpanel) के अनुसार ब्राज़ील के लोग इसमें सबसे आगे हैं। वे दिन में दो बार स्नान करते है।
• हर दिन दो बार ब्रश (Brush) करें: पहली बार सुबह में जैसे ही आप जगें और फिर रात को बिस्तर पर जाने से पहले ब्रश अवश्य करें।
• सप्ताह में कम से कम दो बार बालों को साबुन या शैम्पू (Shampoo) से धोएं।
• शौच के लिए साफ पानी का प्रयोग करें और शौच के बाद साबुन से हाथ धोने चाहिए:
क्या आप जानते हैं कि साबुन से हाथ न धोने से डायरिया जैसे रोग हो सकते हैं। कई अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि जब साबुन और पानी से हाथ साफ किये जाते हैं तो इस आदत से 42-47% तक डायरिया होने की संभावनायें कम हो जाती हैं। अधिकांश डायरिया संबंधी बीमारियां एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलती हैं और यदि हाथों को साबुन से धोया जाये तो हाथ से बैक्टीरिया (Bacteria), परजीवी और वायरस (Virus) मर जाते हैं और इससे डायरिया होने की संभावनायें कम हो जाती हैं।
• खाना बनाने एवं खाने से पहले हाथ धोने चाहिए: गन्दे हाथों से खाना बनाने, परोसने या खाने से संक्रमण हो सकता है। अतः हमेशा हाथ धो कर ही उपरोक्त कार्य करने चाहिए।
• कपड़े और चादर धोने के बाद, उन्हें धूप में सुखाएँ: सूरज की किरणें कुछ रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं और परजीवियों को मार देती हैं।
• नाखून साफ रखें और उन्हें काट कर छोटे रखने चाहिए।
• नहा कर साफ कपड़े पहनें: नहाने के बाद गन्दे कपड़े पहनने से स्वच्छ शरीर अस्वच्छ हो जाता है।
• खाँसते या छींकते समय अन्य लोगों से दूर रहें और नाक या मुँह को एक कपड़े या हाथ से ढकें।
घर की स्वच्छताः
जब किसी घर में बहुत अधिक लोग रहते हों, तो उन्हें बीमारी होने की संभावना भी अधिक होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भीड़भाड़ वाले घर में लोग एक-दूसरे के बहुत करीब होते हैं और इसलिए रोगाणु एक से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल जाते हैं।
इससे बचाव के लिये आप निम्न उपाय कर सकते हैं:
• किसी दूसरे का तौलिया व रूमाल प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• सुनिश्चित करें कि बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए पानी और पानी के बर्तन स्वच्छ हों। अब तक हमने देखा कि स्वास्थ्य के लिए जल व जलस्रोतों की स्वच्छता एक आवश्यक पहलू है। परन्तु भारत के कई क्षेत्र ऐसे हैं जो स्वच्छ पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। आज दुनिया भर में अस्वच्छ जल के कारण फैलने वाली बीमारियों से प्रति वर्ष 16 लाख मौतें हो जाती हैं।
• एक ही बिस्तर पर सोने वाले कई बच्चों को खुजली आदि जैसे संक्रमण आसानी से हो जाते हैं इसलिये कोशिश करें कि सबके बिस्तर अलग-अलग हों।
• खाने और पीने के बर्तन प्रयोग के बाद स्वच्छ पानी और साबुन या राख से धोयें।
• यदि घर में रहने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है तो अपने घर को इस प्रकार बनवायें कि उसमें जल निकासी और अन्य सभी सुविधाएं सुचारू रूप से चलें।
कई बीमारियाँ सफाई के अभाव में पैदा होती हैं। परजीवी, कीड़े, फफूंद, घाव, डायरिया और पेचिश जैसी बीमारियाँ निजी स्वच्छता के अभाव में होती हैं। केवल साफ रहकर ही इन बीमारियों को रोका जा सकता है। स्वच्छता अपनाने से ही व्यक्ति रोग मुक्त रहता है और एक स्वस्थ राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। हर व्यक्ति को जीवन में स्वच्छता अपनानी चाहिए और अन्य लोगों को भी इस ओर प्रेरित करना चाहिए।
संदर्भ:
1. https://www.healthissuesindia.com/2014/02/05/sanitation-health-hygiene-india/
2. https://bit.ly/2K2xnSn
3. https://classroom.synonym.com/personal-hygiene-cultural-differences-12082978.html
4. https://www.dailyinfographic.com/world-shower-habits
5. https://www.cdc.gov/healthywater/hygiene/ldc/index.html
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