नदियों में बढ़ता घरेलू अपशिष्‍ट प्रदूषण। क्या हैं वैकल्पिक उपाय?

लखनऊ

 06-06-2019 11:00 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

भारत की जनसंख्‍या का एक बड़ा हिस्‍सा अपनी जलापूर्ति के लिए नदियों पर निर्भर है, विशेषकर उत्‍तर प्रदेश। किंतु जब इनकी स्‍वच्‍छता की बात आती है, तो शायद ही कोई शहर या राज्‍य इसमें अग्रणी भूमिका निभा रहा हो। नदियों को प्रदूषित करने में सबसे बड़ा हाथ शहरों के गंदे नालों का है, जहां से सीवेज (Sewage) की गंदगी सीधे नदियों में प्रवेश करती है। यह मानव स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से भी अत्‍यंत हानिकारक है। एक शोध से पता चला है पश्‍चिम बंगाल के 78% शहरों के नाले सीधे गंगा नदी से जुड़े हैं, 5 राज्‍यों के 97 शहरों में से 66 का कम से कम एक नाला गंगा नदी से जुड़ा है। उत्तर प्रदेश में, प्रयागराज, रामनगर, वाराणसी और कानपुर सहित 13 शहरों में, नालों का निर्वहन सीधे नदियों में किया गया है।

यहां के अधिकांश लोग आज भी अपनी सिवेज निकासी हेतु नदियों की ओर जाने वाले खुले नालों पर निर्भर हैं। उत्‍तर प्रदेश के 623 शहरों में से सिर्फ 55 शहरों के पास आंशिक सीवेज सुविधा उपलब्‍ध है तथा 2001 की जनगणना के अनुसार एक लाख से अधिक जनसंख्‍या वाले 51 शहरों में से 14 शहरों के पास अब तक कोई सु‍व्‍यवस्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट (Sewage treatment plant) उपलब्‍ध नहीं है।

आमतौर पर, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कच्चे अपशिष्ट जल की धारा से ठोस पदार्थों को प्रारंभिक भौतिक पृथक्करण द्वारा अलग करता है। इसके बाद स्‍थानीय, जल-जनित जीवाणुओं का उपयोग करके एक ठोस जैविक द्रव्यमान में विघटित जैविक पदार्थ का प्रगामी परिवर्तन करता है। एक बार जब जैविक द्रव्यमान को अलग कर दिया जाता है, तो उपचारित पानी को रासायनिक या भौतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अतिरिक्त कीटाणुशोधन से गुज़ारा जाता है। इस प्रकार पानी को शुद्ध कर नदी या अन्‍य पर्यावरणीय क्षेत्रों में छोड़ा जाता है।

1985 में पारित किए गए गंगा एक्शन प्लान (Ganga Action Plan) के तहत गंगा, यमुना और गोमती नदियों के किनारे स्थित 15 महत्वपूर्ण शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण करने की योजना बनाई गयी। इन शहरों में रामपुर शामिल नहीं था, लेकिन 2005-06 में एक अलग रामपुर सीवेज प्लांट प्रणाली परियोजना शुरू की गई। इस परियोजना को पूरा करने की ज़िम्मेदारी सीएंडडीएस (कंस्ट्रक्शन एंड डिज़ाइन सर्विसेज़ (Construction & Design Services)) को सौंपी गई। जिसने परियोजना को संचालित करने हेतु शहर को चार ज़ोन (Zones) में विभक्‍त किया।

पहला जोन - नवाब गेट, मिस्टन गंज, जेल रोड, सर्राफा बाजार, तोपखाना, राजद्वारा आदि
दूसरा जोन - शाहबाद गेट, बरेली गेट, हाथीखाना, पुराना गंज आदि
तीसरा जोन - सिविल लाइंस
चौथा जोन - ज्वालानगर

लगभग दो सौ करोड़ की इस परियोजना का जनता को कोई उल्‍लेखनीय लाभ नहीं मिला है। आज भी यहां लोग बड़ी संख्‍या में सिवेज निकासी हेतु नालों पर निर्भर हैं। यदि एक सीवेज निपटान प्रणाली सुचारू रूप से संचालित नहीं होती है, तो रोग-जनित कीटाणु आसानी से फैल सकते हैं। जिनसे निम्‍न रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है:
जीवाणु के कारण होने वाले रोग:
1. सलमोनेलोसिस (Salmonellosis)
2. शिगेलोसिस (Shigellosis)
3. दस्त
4. ट्रेकोमा (Trachoma)
5. मेलिओयडोसिस (Melioidosis)
संक्रमक रोग :
1. आंत्रशोथ
2. हेपेटाइटिस ए (Hepatitis A)
परजीवियों के कारण होने वाले रोग:
1. जियारडायसिस (Giardiasis)
2. ड्वार्फ टेपवर्म संक्रमण (Dwarf tapeworm infection)
3. थ्रेडवर्म संक्रमण (Threadworm infection)
4. हुकवर्म संक्रमण (Hookworm infection)
5. स्‍ट्रोनजिलोयडायासिस (Strongyloidiasis)
इन रोगों को फैलाने वाले कीटाणु और परजीवी दो प्रकार से फैल सकते हैं:
प्रत्‍यक्ष रूप से – जब लोग प्रत्‍यक्ष रूप से सीवेज के संपर्क में आते हैं।
अप्रत्‍यक्ष रूप से – मक्खियों, कॉकरोच तथा अन्‍य पशु जैसे कुत्‍ते-बिल्‍ली के माध्‍यम से।


ऊपर दिया गया चित्र आधुनिक मल निस्तारण प्रणाली का सुरक्षित उदाहरण है।

इस प्रकार की बिमारियां आज बड़ी संख्‍या में शहरी जनजीवन को प्रभावित कर रही हैं। इन बिमारियों के निस्‍तारण हेतु हमें आवश्‍यक सावधानी बरतने की आवश्‍यकता है। लगभग प्रत्‍येक घर में घरेलू अपशिष्‍ट जल और मल उत्‍पन्‍न होता है। जिसका निस्‍तारण लगभग हर घर की समस्‍या है, कुछ विधियों को अपनाकर सरलता से इसका निस्‍तारण किया जा सकता है। जैसे ऑन-साईट (On-site) विधि। इसमें सोखवे गड्ढे का निर्माण करके घर में ही मल का निवारण किया जाता है। इस गड्ढे के माध्‍यम से अपशिष्‍ट जल सोख लिया जाता है तथा शेष बचे शुष्‍क मल को खाद के रूप में छोटे खेतों में उपयोग किया जा सकता है, किंतु ध्‍यान रहे कि इसमें फसल को हानि पहुंचाने वाले किसी भी प्रकार के डिटर्जेन्‍ट (Detergent) का उपयोग न किया गया हो। सोखवे गड्ढे का निर्माण घर तथा जल स्‍त्रोतों से दूर किया जाना चाहिए। यह प्रणाली मल निस्‍तारण का सबसे बेहतर विकल्‍प है।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2JZXidf
2. https://bit.ly/31eXGtJ
3. http://jn.upsdc.gov.in/article/en/urban-sewerage
4. https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/rampur/benifit-of-sewer-system-in-rampur
5. https://www.who.int/water_sanitation_health/hygiene/settings/hvchap5.pdf?ua=1
6. https://www.indiamart.com/proddetail/sewage-treatment-plant-19913597448.html
7. https://bit.ly/2JZXidf



RECENT POST

  • समय की कसौटी पर खरी उतरी है लखनऊ की अवधी पाक कला
    स्वाद- खाद्य का इतिहास

     19-09-2024 09:28 AM


  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id