सफेद रंग के कबूतर को आमतौर पर प्रेम और शांति का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन भारत में जहां इनका उपयोग संदेश वाहक के रूप में किया जाता था वहीं यहूदी और ईसाई धर्म में इन्हें शांति का प्रतीक माना गया है। प्राचीन मेसोपोटामिया में कबूतर प्रेम और युद्ध की देवी इनाना-ईश्तर (Inanna-Ishtar) का मुख्य पशु प्रतीक था। इश्तर देवी के मंदिर में 13वीं शताब्दी की कबूतर मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जो यह दर्शाती हैं कि इश्तर देवी कभी-कभी स्वयं भी कबूतर का रूप धारण करती थीं।
बाइबिल (Bible) की कहानी के अनुसार “बाढ़ आने के बाद भूमि को खोजने के लिये नूह ने एक कबूतर को भेजा जो जैतून की ताजी पत्ती को लेकर वापस लौटा”। यह पत्ती बाढ़ के बाद जीवन के होने का संकेत कर रही थी। रैबायनिक (Rabbinic) यहूदी धर्म के केंद्रीय संस्करण टैलमुड (Talmud) में भगवान की आत्मा की तुलना पानी की सतह पर मंडराने वाले कबूतर से की गयी है। यहूदी धर्म के साथ अन्य स्थानों पर भी कबूतरों को मानव आत्मा का प्रतीक माना गया है। बाइबिल के अनुसार ईसा मसीह के बपतिस्मा (Baptism) के दौरान कबूतर के रूप में एक पवित्र आत्मा ईसा मसीह पर उतर आयी थी और इसलिये इस धर्म के लोग कबूतर को पवित्र आत्मा मानते हैं। अक्सर राजनीतिक कार्टूनों (Cartoons), बैनरों (Banners) के साथ-साथ विभिन्न खेलों और युद्ध विरोधी प्रदर्शनों में भी कबूतरों को शांति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। अप्रैल 1949 में पेरिस में विश्व शांति परिषद के लिए पिकासो के लिथोग्राफ (Lithograph), ला कोलोम्बे (कबूतर-The dove) को शांति परिषद के लिए प्रतीक के रूप में चुना गया था।
कबूतरों और इस्लाम धर्म का सम्बंध भी प्राचीन काल से ही है। जमात-उल-विदा इस्लामी समुदाय के लिए एक बहुत ही खास अवसर है। यह पवित्र त्यौहार हर साल रमज़ान महीने के अंतिम शुक्रवार को मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान मस्जिदों में इकट्ठा होते हैं तथा पूरी दुनिया के कल्याण के लिए कुरान पढ़ते और प्रार्थनाएं करते हैं। दान कार्य, गरीबों को भोजन कराना और जरूरतमंद लोगों की मदद करना आदि गतिविधियां भी की जाती हैं। मुस्लिम मान्यता के अनुसार इस दिन स्वर्गदूत उन्हें ध्यान से सुनते हैं और दया और क्षमा के साथ उन पर अपना आशीर्वाद बरसाते हैं। यह दिन पवित्र कुरान में लिखी गई निषेधाज्ञाओं और धार्मिक कर्तव्यों की याद दिलाता है। हैदराबाद की मक्का मस्जिद में जमात-उल-विदा के लिये मुस्लिम लोग बहुत बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। इस दिन को महत्वपूर्ण बनाने में पैगम्बर मुहम्मद का विशेष योगदान है क्यों कि पैगम्बर मुहम्मद ने बताया कि शुक्रवार के दिन ही अल्लाह ने स्वर्ग, पृथ्वी और संपूर्ण सृष्टि की रचना की तथा आदम को इसी दिन स्वर्ग में प्रवेश की अनुमति दी गयी। इस्लाम के इतिहास में पहली मस्जिद क़ुबा भी शुक्रवार के दिन पैगंबर मुहम्मद द्वारा बनाई गई थी और पहली जुम्मे की नमाज भी वहीं अदा की गई थी। मान्यता है कि इस दिन की गयी सभी दुआएं कुबूल होती हैं। माना जाता है कि कबूतरों के झुंड ने हिज्र (Hijra) में थावर (Thaw'r) की गुफा के बाहर इस्लाम के अंतिम पैगंबर मुहम्मद के दुश्मनों का ध्यान भ्रमित कर उनकी रक्षा की थी और तभी से ही पैगंबर मुहम्मद की रक्षा करने वाले कबूतरों को इस्लाम धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मक्का मस्जिद के चारों तरफ घूमने वाले कबूतर इस बात का प्रमाण हैं। यहां इन कबूतरों पर कोई एक कंकड़ भी नहीं मार सकता है। इस्लाम धर्म में इन्हें संरक्षक, संदेशवाहक, पोषण संबंधी जीव और आत्मा के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है।
संदर्भ:
1. https://allaboutheaven.org/symbols/dove/123
2. https://www.speakingtree.in/blog/jamat-ul-vida
3. https://www.thehindubusinessline.com/blink/The-sacred-lanes/article20822083.ece/photo/1/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Doves_as_symbols
5. https://bit.ly/2WArscQ
6. https://awingandaway.wordpress.com/2015/06/27/birds-in-islamic-culture/
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