रोमा यूरोप के विभिन्न भागों में पाया जाने वाला मानव-समुदाय है, जिनका मूल दक्षिण एशिया अर्थात भारत है। इन लोगों को सामान्यतया रोमानी या जिप्सी (Gypsy) कहा जाता है। लगभग एक हज़ार साल से ये लोग पूरे यूरोप में बसे हुए हैं तथा यूरोप के सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यकों में से एक हैं।
रोमानी परंपराओं और संस्कृति के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये रोमा लोगों द्वारा रोमा सपोर्ट ग्रुप/आर.एस.जी. (Roma Support Group/RSG) नाम का एक संगठन बनाया गया है। ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन (Open Society Foundations) के अनुसार कुछ अन्य समूह जिन्हें रोमा माना जाता है, वे इंग्लैंड के रोमनिकल्स (Romanichals), क्रोएशिया के बेयाश (Beyash), वेल्स और फ़िनलैंड के केल (Kalé), तुर्की के रोमनलार (Romanlar) और फ़िलिस्तीन और मिस्र के डोमरी (Domari) हैं। आयरलैंड के यात्री जातीय रूप से रोमा नहीं हैं, लेकिन उन्हें भी अक्सर इसी समूह का हिस्सा माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार करीब 1,500 साल पहले भारत से भी कई रोमा लोग यूरोप चले गए थे जो आज भी भारतीय संस्कृति, धर्म और विश्वास को अपने बीच जीवित रखे हुए हैं।
सदियों से ही रोमानी लोगों ने भेदभाव और उत्पीड़न का सामना किया है। यूरोपीय लोग रोमानी लोगों की गहरी त्वचा के कारण उनसे भेदभाव करते तथा उन्हें अपना गुलाम समझते थे। आर.एस.जी. के अनुसार 1554 में ब्रिटिश संसद द्वारा एक कानून पारित किया गया था जिसके अनुसार जिप्सी या रोमा होना घोर अपराध था और इसके लिये मृत्यु का प्रावधान बनाया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में यहूदियों, समलैंगिकों और अन्य समूहों के अलावा रोमा को भी निशाना बनाया गया था। रोमानी प्रोजेक्ट (Romani Project) के अनुसार रोमानी संस्कृति पर सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी प्रथाओं और पक्षपात का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा कई अलग-अलग क्षेत्रों में अन्य आबादी के साथ रहने के कारण भी रोमानी संस्कृति प्रभावित हुई है। फिर भी रोमानी संस्कृति के कुछ ऐसे अनूठे और विशेष पहलू हैं जो इन्हें सबसे भिन्न बनाते हैं।
ओपन सोसाइटी के अनुसार रोमा लोग केवल एक ही धर्म पर विश्वास नहीं करते हैं। वे अक्सर उस धर्म को ही अपनाते हैं जहां वे निवास कर रहे होते हैं। कुछ रोमा समूह कैथोलिक, मुस्लिम, पेंटेकोस्टल (Pentecostal), प्रोटेस्टेंट (Protestant), एंग्लिकन (Anglican) या बैपटिस्ट (Baptist) हैं। विविध जगहों में रहने के बाद भी यह समूह एक ही भाषा का प्रयोग करता है, जिसे रोमानीज़ (Rromanës) कहते हैं।
आरएसजी (RSG) के अनुसार रोमानीज़ की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है तथा यह भारत में बोली जाने वाली भाषाओं हिंदी, पंजाबी, उर्दू और बंगाली से संबंधित है जिस कारण वे आज भी भारतीय भाषा से जुड़े हुए हैं। रोमा फाउंडेशन के अनुसार रोमा लोगों ने घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों को बहुत महत्व दिया। अपना कोई विशेष देश, राज्य, नगर और संविधान न होने के कारण इन्होनें अपनी बुनियादी इकाई परिवार को बनाया। ‘क्रॉस’ (Cross) के लिये रोमानी शब्द ‘ट्रुशुल’ (trushul) का प्रयोग किया गया जो कि भगवान शिव के त्रिशूल को संदर्भित करता है। हिंदू धर्म के समान ये लोग अपने घरों को ताज़े फूलों, सोने और चांदी के आभूषणों और धार्मिक चिह्नों से सजाते हैं।
एक हिंदू संस्थान के अनुसार कुंतारी की अभिधारणा रोमा लोगों के अध्यात्म का केंद्र है। कुंतारी का अर्थ है, सभी चीज़ें ब्रह्मांड में उनके प्राकृतिक स्थान के अनुसार होनी चाहिए। रोमा धरातल और पानी में रहने वाले जीव जंतुओं जैसे न उड़ने वाली मुर्गी और मेंढक को स्वाभाविक रूप से अशुभ मानते हैं क्योंकि इनके अनुसार वे इस संतुलन के अंतर्गत नहीं आते। रोमा ‘प्रदूषण’ की अवधारणा में भी विश्वास करते हैं। उनके अनुसार प्रदूषण या बुरी आदतों के कारण व्यक्ति भी मेंढक और मुर्गी के समान संतुलन से बाहर हो जाता है। रोमा ने हिंदू धर्म के अतिरिक्त ईसाई धर्म और इस्लाम को भी अपनाया। भारत से अलग होने के 1,000 साल बाद भी भारत के शक्तिवाद (किसी भी देवता की पूजा के लिये महिला संघ की आवश्यकता) का प्रचलन रोमा समुदाय में आज भी जारी है। कई रोमानी हिंदू धर्म के इन रिवाजों और विश्वासों का आज भी अनुसरण कर रहे हैं।
रोमानियों का जिप्सी परिषद भारतीय पंचायत के ही समान है। भारत की तरह इस समुदाय में भी पारिवारिक प्रणाली को महत्त्व दिया जाता है तथा इनकी सम्पत्ति पर अधिकार पूरे परिवार का होता है न कि किसी व्यक्ति विशेष का। रोमानियों की परम्पराएं, निषेध, विश्वास, अंधविश्वास, सामाजिक रीति-रिवाज़ और शिष्टाचार आदि भारतियों के ही समान हैं। घोड़े के प्रति इनका प्रेम बहुत अधिक होता है और ये घोड़ों को मारने या इनका मांस खाने से परहेज करते हैं। ये लोग गर्भवती महिलाओं के सामने भगवान और देवताओं के चित्र रखते हैं तथा विश्वास करते हैं कि इससे उनकी संतान उन देवी-देवताओं के ही समान होगी। भारत में ये विश्वास आज भी प्रचलित है। हिंदू परिवार के समान ही रोमा में भी विवाह माता-पिता द्वारा आयोजित किया जाता है जिसमें विभिन्न रस्में और दावतें होती हैं। ये लोग भी विवाह को एक पवित्र बंधन मानते हैं। यहां धार्मिक कार्यों में पेड़ लगाने का रिवाज़ भी हिंदू धर्म के ही समान है।
संदर्भ:
1.https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.107535/page/n273
2.https://www.livescience.com/64171-roma-culture.html
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Romani_society_and_culture
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