आपने भगवान गौतम बुद्ध के विषय में सुनने के साथ-साथ उनसे संबंधित स्थानों जैसे कि ‘गया’ और ‘सारनाथ’ के विषय में भी सुना होगा किंतु भारत में भगवान बुद्ध से संबंधित एक स्थान ऐसा भी है जिसके विषय में लोगों को कम ही जानकारी है। यह बौद्ध-धर्म स्थान ‘संकिशा’ या ‘संकिसा’ नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के फ़र्रूख़ाबाद जिले में पखना रेलवे स्टेशन से सात मील दूर काली नदी के तट पर स्थित यह स्थान रामपुर से अधिक दूर नहीं है। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध सोने की सीढ़ियों से स्वर्ग से उतरकर इसी स्थान पर इंद्र और ब्रह्मा के साथ आये थे। इस स्थान को तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथजी का ज्ञान स्थान भी माना जाता है। महात्मा बुद्ध अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहां आये और उन्होनें भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए सदा के लिये खोल दिया।
बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफी बड़ा रहा होगा क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष लगभग चार मील (लगभग 6.4 कि.मी.) की परिधि में फैले हुए हैं। इस नगर का महत्व रामायण काल से है। रामायण काल में यह नगर ‘संकस्य नगर’ के रूप में जाना जाता था जिसके राजा महाराजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। कहा जाता है कि दुष्ट राजा सुधन्वा द्वारा सीता का हाथ मांगे जाने पर राजा जनक ने सुधन्वा को युद्ध में मार दिया और संकस्य नगर अपने छोटे भाई कुशध्वज को दे दिया।
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण (निधन) के बाद राजा अशोक ने इस स्थान को विकसित किया और अपने प्रसिद्ध स्तम्भों में से एक स्त्म्भ और स्तूप को यहां स्थापित किया। महात्मा बुद्ध की याद में उन्होंने यहां एक मंदिर भी बनवाया। यह मंदिर आज भी वहां मौजूद है जबकि स्तूप के भग्नावेशों को विशारी देवी के मंदिर का रूप दे दिया गया है। कठिन मार्ग और कोई सुविधा न होने के कारण तीर्थयात्रिओं ने कभी यहां का दौरा नहीं किया है। इस जगह की खोज 1842 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने की जिन्हें यहां स्कंदगुप्त का चांदी का सिक्का मिला था। इसके 87 साल बाद सर अनागरिका धर्मपाल आध्यात्म की खोज के लिये श्रीलंका से यहां आये। 1957 में पंडित मदबाविता विजेसोमा थेरो ने श्रीलंका से संकिसा आकर गरीब लोगों के लिए एक बौद्ध विद्यालय (विजेसोमा विदयालय) खोला। पाँचवीं शताब्दी में यहां आये चीनी यात्री फ़ाह्यान ने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहां हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हज़ार भिक्षुओं को देखा था। जापान, म्यांमार, चीन, कंबोडिया जैसे देशों के मठ इस छोटे से गांव में बने हुए हैं। जिससे इन देशों से भी लोग यहां आते हैं।
वर्तमान समय में इस स्थान का माहौल प्राचीन काल से बिल्कुल भिन्न है। जहां एक पक्ष बुद्ध के नाम पर खून बहाने की बात करता है तो वहीं दूसरा पक्ष भी सनातन धर्म की सहिष्णुता की कसमें खाकर तोड़फोड़ और गाली गलौज करता है। यहां हर साल बुद्ध पूर्णिमा और शरद पूर्णिमा जैसे मौकों पर बिसारी देवी के भक्तों और बौद्ध अनुयायियों में कहासुनी और हाथापाई हो जाती है। कुछ साल पहले तक यहां पत्थरबाजी भी थी। 2014 में दोनों पक्षों ने धर्म की खातिर जान देने की बातें भी की थी। दुनिया के 8 महत्वपूर्ण बौद्ध धार्मिक स्थानों में शामिल ये जगह इन विवादों के कारण पूरी तरह से पिछड़ी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आने का कोई भी फायदा स्थानीय लोगों को नहीं मिलता है। आज की तारीख में यहां अच्छी पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही लोगों के पास रोजगार हैं मगर हर कोई धर्म के नाम पर लड़ने और जान देने के लिए तैयार है। इस बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि चाहे किसी स्थान का कितना ही प्राचीन महत्त्व क्यों न हो, धार्मिक कट्टरता उसकी प्रगति में अवश्य ही बाधा डाल सकती है तथा इसमें घाटा दोनों ही पक्षों का होता है।
संदर्भ:
1.https://www.amarujala.com/photo-gallery/uttar-pradesh/kanpur/real-story-of-sankisa-farrukhabad
2.http://uttarpradesh.gov.in/en/destination/sankisa/32003500
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Sankassa
4.https://hindi.firstpost.com/culture/budhha-purnima-sankisa-a-place-where-devotees-of-budhhism-ready-to-do-violence-on-the-religion-28521.html
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