संदेशों को हजारों मील दूर तक पहुंचाने के लिए ज़रूरी डाक टिकटों में इतिहास, कला और संस्कृति की झलक दिखायी देती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि भारतीय रियासतों के डाक टिकटों का भी अपना एक इतिहास रहा है, क्योंकि उस समय ब्रिटिश शासन प्राधिकरण एक समान नहीं था, और कई राज्यों ने अपनी स्वयं की डाक सेवाओं को चलाया था। यह वे भारतीय राज्य थे जो स्वतंत्र थे और जिनकी अपनी परिभाषित सीमाएँ और राजनीतिक व्यवस्थाएँ थीं। हालांकि, इन सभी रियासतों को ब्रिटिशों द्वारा युद्ध या कूटनीति के माध्यम से अपने अधीन किया हुआ था। इन रियासतों को दो भागों में बांटा गया था, पहले अधिवेशन राज्य और दूसरे जागीरदारी वाले राज्य।
अधिवेशन राज्यों ने संदेश भेजने के लिये ब्रिटिश भारत के साथ समझौता किया हुआ था, और वे ब्रिटिश भारत के सभी समकालीन टिकटों का उपयोग करते थे बस उसके ऊपर राज्य के नाम लैटिन (Latin) अक्षरों या हिंदी/उर्दू अक्षरों में या दोनों भाषाओं के अक्षरों में होता था। वहीं जागीरदारी वाले राज्य अपने स्वयं के टिकटों को चलाते थे, और उनके टिकट केवल उनकी सीमाओं के भीतर ही मान्य थे। रामपुर रियासत ने भी ब्रिटिश राज के तहत 1947 तक अपने स्वयं के टिकट जारी किए थे। रामपुर राज्य ब्रिटिश भारत की 15 तोपों की सलामी वाली रियासतों में आता था। यह रियासत 7 अक्टूबर 1774 को अवध के साथ एक संधि के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आयी। 1947 में स्वतंत्रता के बाद, इसे और बनारस तथा टिहरी-गढ़वाल की अन्य रियासतों को एक संयुक्त प्रांत में मिला दिया गया था।
स्वतंत्रता से पहले रामपुर में बड़े पैमाने पर राजस्व टिकट जारी किए गए थे और उन पर आमतौर पर केवल नवाबों के चित्रों को दर्शाया जाता था। उस अवधि के दौरान यहाँ दो प्रकार की टिकटें चलन में थीं, पहली अदालती और दूसरी रसीदी टिकट। कोर्ट शुल्क टिकट को पहली बार 1 जनवरी, 1874 को जारी किया गया था तथा इसके लिये दो मुहरों को तैयार किया गया था, जो बड़ी मुहर इस पर लगाई गई थी, उस पर शासक का नाम अंकित था, और एक छोटी मुहर मुद्रांकित कागज के मूल्य को दर्शाती थी। इसके बाद टिकटों पर शुल्क कानून के कोड के तहत लगाए गए थे जिन्हें क़ानून-ए-हामीदिया और जवाबित-ए-हामीदिया कहा गया तथा ये दोनों अधिनियम 1901 में पारित किए गए थे। इन टिकटों को दो अलग-अलग रंगों में तैयार किया जाता था, कोर्ट शुल्क टिकट के लिए लाल, और रसीदी टिकट के लिए नीला।
परंतु क्या आप जानते हैं कि रामपुर शहर में 1890 से पहले तक अपना कोई नियमित डाकघर नहीं था, सिर्फ एक ब्रिटिश डाक घर था। राज्य पैदल दूतों और घुड़सवारों द्वारा अपनी खुद के संदेश भेजता था, और इस उद्देश्य के लिए एक विशेष मुंशी भी हुआ करता था। अंततः ब्रिटिश सरकार द्वारा यहां भी डाक की व्यवस्था की गई और प्रत्येक तहसील के मुख्यालय में डाकघर खोले गये और राज्य के औपचारिक पैग़ामों पर सेवा टिकटों की अनुमति देने के लिए सहमती दी गयी। बाद में शहर के डाकघर को 1891 में एक टेलीग्राफ-कार्यालय के संलग्न किया गया था, और 1898 में अन्य डाकघरों को पटवई और केमरी में स्थापित किया गया था।
अभी तक तो आपने सिर्फ रामपुर के नवाबों को डाक टिकटों पर देखा परंतु अब आपको यहां का मशहूर रामपुर हाउंड (Rampur Hound) कुत्ता भी डाक टिकटों पर देखने को मिलेगा। 9 जनवरी 2005 को भारतीय डाक विभाग ने भारतीय मूल के कुत्तों की चार नस्लों पर विशेष डाक टिकट जारी किये थे। जिनमें से एक में रामपुर की शान कहा जाने वाला रामपुर हाउंड भी शामिल है, यह कुता अपनी चुस्ती-फुर्ती, शक्तिशाली मांसपेशीय शरीर, तेज़ गति और अपने धीरज के लिये जाना जाता है।
संदर्भ:
1. https://pahar.in/.../1911%20Gazetteer%20of%20the%20Rampur%20State%20s.pdf
2. https://stampdigest.in/tag/stamps-on-rampur-hound/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Postage_stamps_and_postal_history_of_the_Indian_states
4. http://worldofphilately.blogspot.com/2015/05/princely-state-of-rampur-fiscal-stamps.html
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.