प्राचीन काल से ही लाखों भारतीय किसानों के लिए कृषि एक जीवन रेखा रही है और साथ ही किसानों की इस कृषि को सफल बनाने में भूजल के माध्यम से फसलों की सिंचाई ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन पिछले तीन दशकों में, भारत मानव-आधारित जलवायु परिवर्तन और अति-निष्कर्षण द्वारा संचालित भूजल भंडार के तीव्र और तेजी से होते क्षरण से जूझ रहा है। इसके परिणाम दूरगामी हो सकते हैं; शोधकर्ताओं के अनुसार पानी की कमी खाद्य आपूर्ति को प्रभावित करेगी और सामाजिक अशांति को बढ़ावा देगी।
2002 और 2016 के बीच उपग्रह डेटा (Satellite Data) द्वारा मापा गया कि मुख्य रूप से फसल सिंचाई के लिए तीव्र निष्कर्षण के कारण उत्तरी और पूर्वी भारत में भूजल में भारी कमी देखी गई है। उत्तरी भारत में भूजल प्रति वर्ष 19.2 गिगाटन (Gigatonne) की दर से कम हो रहा है। वैसे तो मानसून की वर्षा भूजल पुनर्भरण में योगदान देती है, लेकिन नदियों या झीलों के विपरीत, भूजल के पुनर्भरण में सालों लग सकते हैं। भारत की तुलना में कहीं भी भूजल इतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, यहां भूजल का एक चौथाई हिस्सा प्रतिवर्ष निकाला जाता है। भारत की 80% तक की आबादी पीने और सिंचाई दोनों के लिए भूजल पर निर्भर है।
कई शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में वर्षा ‘बिज़नेस एस यूज्वल (Business as usual)’ परिदृश्य के तहत बढ़ने का अनुमान है, लेकिन इसमें काफी देर लग जाएगी और साथ ही अत्यधिक बारिश की स्थिती में भी भूजल का पर्याप्त मात्रा में भरना मुश्किल होगा। व्यापक भूजल निकासी पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाने वाली कृषि बिजली सब्सिडी (Subsidy) और बिजली के वितरण को सीमित करना होगा। साथ ही किसानों को भूजल के महत्व और उसका नियंत्रित उपयोग समझाना होगा। उत्तर प्रदेश के अधिकांश लोग भूजल पर निर्भर हैं, ऐसी स्थिती में भूजल का समाप्त होना इनके लिए समस्या बन सकता है, अतः इस समस्या के समाधान हेतु वे गंगा नदी के जल को विकल्प के रूप में चुन सकते हैं। गंगा ने औद्योगिक पैमाने पर विशाल मानव-निर्मित सिंचाई प्रणाली का नेतृत्व किया है, यह विश्व में सबसे विस्तृत जल प्रबंधन प्रणाली है। गंगा क्षेत्र में फसलों का उत्पादन पिछले चार दशकों के दौरान राज्यों में अलग-अलग दर से बढ़ा है। फसलों के उत्पादन में वृद्धि के साथ उर्वरक और आधुनिक कृषि उपकरणों में भी काफी बढ़ावा हुआ है। वहीं सिंचाई सुविधाओं में सुधार के कारण, मानसून पर निर्भरता में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप गंगा तट क्षेत्र में गहन खेती (एक वर्ष में एक से अधिक फसल) के साथ-साथ फसल विविधीकरण भी हुआ है।
उत्तर प्रदेश भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से एक है। 2001 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लगभग 223 लाख घर थे, जिनमें लगभग 180 लाख ग्रामीण घर और 43 लाख शहरी घर थे। राज्य में देश की आबादी का 16% और क्षेत्र का 7.3% शामिल है। 2001 में उत्तराखंड के निर्माण से राज्य को वन क्षेत्र, भौगोलिक क्षेत्र और पर्यटन राजस्व में काफी नुकसान हुआ क्योंकि तीर्थयात्रियों के अधिकांश पवित्र स्थान पहाड़ी क्षेत्र के भीतर स्थित हैं। हालांकि राज्य में उपजाऊ मिट्टी और नदियाँ हैं, लेकिन यह भारत के सबसे गरीब राज्यों में से भी एक है।
संदर्भ :-
1. http://cganga.org/wp-content/uploads/sites/3/2018/11/015_SEC.pdf
2. https://bit.ly/2VhFrol
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