वर्तमान युग में वैश्वीकरण और शहरीकरण बहुत तेजी से फ़ैल रहा है तथा व्यापक मीडिया (Mass media) इसे पूरा करने में एक अहम भूमिका निभा रहा है, किसी भी स्थान विशेष की खबरों को यह कुछ ही मिनटों में विश्व स्तर तक पहुंचा देता है। इसने विश्व को प्रगति के शिखर पर पहुंचाने के साथ-साथ कई भ्रांतियों को भी जन्म दिया है। ये भ्रांतियाँ मानसिक बीमारियों का रूप लेकर समाज के लिए चुनौती बन गयी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत दुनिया का सबसे तनाव ग्रसित देश है, जिसके बाद चीन और अमेरिका का स्थान है।
मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक विकारों के लिये न केवल व्यक्तिगत गुण जैसे कि विचार, भावनाएं, व्यवहार आदि उत्तरदायी हैं बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय और आनुवंशिक कारक भी इसके लिये जिम्मेदार हैं। इन कारकों में मुख्य कारक गरीबी और निम्न शिक्षा स्तर है। वर्तमान में भारत मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, लेकिन अधिकांश राजनीतिक दल इसका समाधान खोजने के लिए बिल्कुल भी चिंतित नहीं दिखायी दे रहे हैं। एक अनुमान है कि देश की लगभग 6.5% आबादी किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रही है, लेकिन किसी भी राजनेता या बड़े अभिनेता ने अभी तक इस विषय पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि वे अपने विरोधियों के लिये ‘मानसिक रूप से बीमार या पागल’ कहते हुये ज़रूर नजर आते हैं। आज सत्तासीन दल को बताना आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य संकट से निपटना उनके उद्देश्य का हिस्सा होगा। ऐसा होने पर यह आशा की जा सकती है कि मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जाने वाला 0.16% केंद्रीय स्वास्थ्य बजट बढ़ जाएगा। महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल के मौजूदा बुनियादी ढांचे अपर्याप्त हैं, जोकि मानसिक विकारों के सुधार में कमी का मुख्य कारण हैं।
मानसिक स्वास्थ्य की यह बीमारी देश की अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ रही है। 2012 में भारत में मानसिक बीमारी के उपचार के लिए करीब 10,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। सत्तासीन कुछ पार्टियां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं तो कुछ का ध्यान इसकी ओर आकर्षित होना अभी बाकी है। मानसिक स्वास्थ्य, स्वास्थ्य का एक अभिन्न अंग है। यह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मानसिक कल्याण, मानसिक विकारों की रोकथाम, और मानसिक विकारों से प्रभावित लोगों के उपचार और पुनर्वास से संबंधित गतिविधियों की एक विस्तृत सारणी को संदर्भित करता है। मानसिक स्वास्थ्य, स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं की तरह ही सामाजिक-आर्थिक कारकों की श्रृंखला से प्रभावित हो सकता है। इसके संपूर्ण प्रचार, रोकथाम, उपचार और पुनर्प्राप्ति के लिए सरकार की उचित रणनीतियों की आवश्यकता है।
मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन:
मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन और संरक्षण एक ऐसा वातावरण तैयार करता है जिसमें स्वस्थ जीवन को बढ़ावा मिलता रहे। यह लोगों को स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन अब सतत विकास लक्ष्यों में शामिल होने की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 56 मिलियन भारतीय या भारत की आबादी का लगभग 4.5% तनाव से पीड़ित है। अन्य 38 मिलियन भारतीय या यूँ कहें कि भारत की आबादी का 3% भय के दौरे, आशंका, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post-traumatic stress disorder) और ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (Obsessive-compulsive disorder) जैसे रोगों से ग्रसित हैं। इस विषय को परिप्रेक्ष्य में रखते हुये, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (NIMHANS- National Institute of Mental Health and Neuroscience) के दीक्षांत समारोह में कहा था कि भारत एक 'मानसिक स्वास्थ्य महामारी' का सामना कर रहा है और यहाँ प्रभावितों की संख्या जापान की पूरी आबादी से भी अधिक है। भारत में, डब्ल्यूएचओ (WHO) का अनुमान है कि प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 2,443 व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हैं, और प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर आयु-समायोजित आत्महत्या दर 21.1 है। यह अनुमान लगाया गया है कि, भारत में, 2012 से 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान 1.03 खरब डॉलर होगा। विश्व में 15% रोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों के कारण हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सबसे बड़ी आबादी मानसिक विकारों के कारण पीड़ित है।
चौंका देने वाली बात यह है कि हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य विकारों से कैसे निपटा जा रहा है। जागरूकता की कमी, शिक्षा की कमी, अपर्याप्त धन और स्वास्थ्य देखभाल बजट में दी गई कम प्राथमिकता ऐसे मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से इन मुद्दों का सामना करने वाले लोग समय पर पर्याप्त मात्रा में उपचार प्राप्त करने में असफल रहते हैं। चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप में दी गयी मदद इस मुद्दे के लिये प्रभावशाली हो सकती है। भारत में 80% से अधिक लोग कोई पेशेवर मदद नहीं लेना चाहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2011 में, भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित प्रत्येक 100,000 रोगियों के लिए 0•3 मनोचिकित्सक, 0.12 नर्स (Nurse), 0•07 मनोवैज्ञानिक और 0.07 समाज सेवक थे।
भारत में अच्छे मानसिक चिकित्सक को ढूंढ़ना या मानसिक विकार का निवारण करना बहुत कठिन है। यहाँ अधिकतर मानसिक तनाव से पीड़ित व्यक्ति अच्छे डॉक्टर, उचित सलाह एवं उचित सुविधाएँ न मिलने के कारण अपनी जिंदगी खो बैठते हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा को बताया कि भारत में केवल 3,827 पंजीकृत मनोचिकित्सक हैं, जबकि कम से कम 13,500 की जरूरत है। बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के 2015-16 के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की सामान्य आबादी का 13.7% एक मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। जबकि 150 मिलियन भारतीयों को मानसिक स्वास्थ्य मदद की सख्त आवश्यकता है, केवल 30 मिलियन लोगों को ही इस तरह की देखभाल उपलब्ध है। भारत में मानसिक विकारों के कारण हो रही आत्महत्या की औसत दर प्रति लाख लोगों पर 10.9 है। आत्महत्या करने वाले अधिकांश लोग 44 वर्ष से कम उम्र के हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार चीन में मानसिक विकारों से जूझ रहे 91.8% लोग अपने लिये कोई भी मदद नहीं लेते हैं। अमेरिका में केवल 41% लोग ही अपने मानसिक विकारों के लिए उपचार लेते हैं। ब्राज़ील में कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक कारक विशेष रूप से इस देश में मौजूद हिंसा, प्रवास, तनाव और चिंता जैसे मानसिक विकारों के लिये उत्तरदायी हैं। इंडोनेशिया में, लगभग 3.7% और रूस में 5.5% आबादी तनाव से ग्रसित है।
द हेल्थ कलेक्टिव (The Health Collective), मानसिक स्वास्थ्य का एक प्लेटफार्म है, जिसका उद्देश्य भारत में मानसिक स्वास्थ्य और बीमारी के बारे में बातचीत करने के लिए एक सुरक्षित ऑनलाइन (Online) स्थान उपलब्ध करवाना है। मानसिक रोगियों को तत्काल मानसिक स्वास्थ्य देखभाल देने, समुदाय/समाज को प्रशिक्षित करने और संवेदनशील बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। समय पर किया गया हस्तक्षेप, जागरूकता, पेशेवर मदद और पर्याप्त नीतियां मानसिक विकारों की समस्या को कम करने में लाभकारी सिद्ध होंगे। नीति निर्माताओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर सामान्य मानसिक विकारों के लागत प्रभावी उपचार की उपलब्धता और पहुंच को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सन्दर्भ :
1. https://bit.ly/2UWBsbJ
2. http://www.searo.who.int/india/topics/mental_health/about_mentalhealth/en/
3. https://www.youthkiawaaz.com/2019/01/the-issue-of-mental-health-in-india/
4. https://bit.ly/2LloSDq
5. https://bit.ly/2ElKZpU
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