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कई ऐसे मिथक हैं जिन्हें सच समझ कर हम लोगों द्वारा उन पर विश्वास कर लिया जाता है, इनमें से एक है कि सांड लाल रंग से नफरत करते हैं। यह मिथक कई देशों में आयोजित कराए जाने वाली एक पुरानी और दुखद प्रथा ‘सांड की लड़ाई’ से प्रचलित हुआ था। सांड की लड़ाई पशु दुर्व्यवहार का एक आम और जाना-पहचाना उदाहरण है, जहाँ अक्सर सांडों को इतनी बुरी तरह से घायल कर दिया जाता है कि वे आखिर में मर जाते हैं। लेकिन अभी सोचने वाली बात यह है कि क्या वास्तव में सांड लाल रंग को देखकर भड़कते हैं?
वास्तव में लाल रंग के प्रति उसके भड़कने का कारण सिर्फ बुलफाइटर (Bullfighter) द्वारा सांड के सामने लाल रंग के कपड़े को हिलाए जाने का तरीका होता है। जिस तरह से उसे सांड के सामने लगातार हिलाया जाता है उससे वह भड़क उठता है और हिलाने वाले व्यक्ति की ओर दौड़ पड़ता है। उस कपड़े को देखते समय सांड को उसके रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता है बल्कि जब वे उत्तेजित होते हैं तो वह वस्तु उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। सांड उत्तेजित तब होते हैं जब वे उलझन या अत्यधिक शोर से घिरे होने के कारण तनाव को महसूस करते हैं। वहीं सांड का आक्रमक स्वभाव अनुवांशिकी से भी प्रभावित होता है। खेल में लड़ाने वाले सांड को अनुवंशिक रूप से उनके प्रजनन में ही चुन लिया जाता है।
हाल ही में लखनऊ की वृंदावन कॉलोनी में एक 45 वर्षीय व्यक्ति पर एक सांड ने हमला कर दिया था, जिसकी सोमवार को अस्पताल में मौत हो गई थी। शहर के निवासियों के लिए मवेशियों सहित खतरनाक आवारा पशु एक गंभीर समस्या का कारण बनते जा रहे हैं। वहाँ के निवासियों का कहना है कि वे जितनी बार भी लखनऊ नगर निगम के समक्ष जानवरों से बढ़ती समस्या के बारे में शिकायत दर्ज कराते हैं, तो वहां के अधिकारी कहते हैं कि यह क्षेत्र नागरिक अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
इससे यह साफ स्पष्ट होता है कि सांड को लाल रंग नहीं भड़काता है, बल्कि उनका अनुवंशिक आक्रमक स्वभाव किसी गतिविधि को देखकर भड़क उठता है। वहीं यदि लाल रंग की बात की जाए तो यह न केवल 3 प्राथमिक रंगों में से एक है, बल्कि कलाकारों द्वारा उपयोग किए जाने वाला पहला रंग भी है। लाल रंग विश्व भर की संस्कृतियों के लिए विशेष महत्व रखता है। कई संस्कृतियों में, लाल रंग खुशी और सौभाग्य का प्रतीक है। एशिया के कई देशों में दुल्हन शादी के दिन लाल रंग को फलप्रदता और अच्छे भाग्य के प्रतीक के रूप में पहनती हैं। वहीं यूरोप में लाल रंग अभिजात वर्ग और पादरी में समीकृत हैं।
साथ ही भारतीय संस्कृति में केवल पहनावे में लाल रंग का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि धार्मिक अनुष्ठान में भी लाल रंग का एक महत्वपूर्ण स्थान है। पूजा के बाद माथे पर लगाए जाने वाला तिलक भी लाल रंग का ही होता है। लाल तिलक को आध्यात्मिकता और सुहाग का प्रतीक मानते हुए विवाहित महिलाओं के माथे पर सिंदूर के रूप में लगाया जाता है।
लाल रंग के सबसे पुराने रूपों में से एक मिट्टी से आता है जिसमें खनिज हेमाटाइट (Hematite) द्वारा लाल रंग दिया गया था। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि पाषाण काल के अंत में लोग अपने शरीर को रंगने के लिए लाल गेरू को पीस कर उपयोग करते थे। प्रकृति में आसानी से प्राप्त होने की वजह से सफेद और काले रंग के साथ लाल रंग पैलियोलिथिक युग (Paleolithic Age) में कलाकारों द्वारा उपयोग किए जाने वाले एकमात्र रंगों में से था। धीरे-धीरे लाल रंग ने चमकदार लाल रंग से गहरे ईंट के रंग का भी रूप ले लिया। ऐसा भी माना जाता है कि शायद चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में चीनी लोगों द्वारा कृत्रिम लाल रंग की उत्पत्ति की गई थी। इस रंग को अरब केमिस्टों (Arab Chemists) द्वारा यूरोप में लाया गया और इसका व्यापक रूप से पुनर्जागरण चित्रकारों द्वारा उपयोग किये जाने से हुआ।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2Le8kNE
2. https://www.animalwised.com/why-do-bulls-attack-the-color-red-2802.html
3. https://mymodernmet.com/shades-of-red-color-history/
4. https://bit.ly/2GR4p3Y
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_red_(color)