‘भगवत गीता में वट वृक्ष का महत्व’

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
29-04-2019 01:20 PM
‘भगवत गीता में वट वृक्ष का महत्व’

बरगद जिसे वट-वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है, अपने जीवन की शुरुआत एक एपिफाइट(epiphyte) के रूप में करता है, अर्थात वह वृक्ष जो दूसरे वृक्ष पर उगता हो। यह भारतीय गणराज्य का राष्ट्रीय वृक्ष है जिसे आमतौर पर फिकस बेंघालेंसिस (Ficus benghalensis) के नाम से भी पुकारा जाता है। बरगद के पेड़ के पत्ते बड़े, चमकदार, हरे और दीर्घ वृत्ताकार के होते हैं। बाकि बड के पेड़ो कि भांति इसकी पत्तियों में भी समान स्केल्स (scales) की बनावट देखने मिलती है। पुराने बरगद के वृक्षों की विशेषता यह होती है कि इनकी मूल जड़े हवा में लटकी होती है। यह व्यापक क्षेत्र में विकसित होने के लिए इन मूल जड़ो का उपयोग करके बाद में अपना दायरा और फैला लेते हैं। कुछ प्रजातियों में मूल जड़ें काफी क्षेत्र में विकसित होती हैं, जो पेड़ों के एक कण्ठ से मिलती-जुलती होती हैं, जिसमें प्रत्येक तना प्रत्यक्ष रूप से प्राथमिक तने से जुड़ा होता है। बरगद के पेड़ की मूल जड़ें दस्त, मधुमेह, और तंत्रिका संबंधी बीमारियों के इलाज में सहायक होती है।

बरगद के पेड़ को भारत में पवित्र माना जाता है और इसे मंदिरों तथा धार्मिक केंद्रो के पास देखा जा सकता है। महाराष्ट्र में इसे वट के नाम से जाना जाता है, जो कि पेड़ के मूल शब्द वास से लिया गया है। विवाहित मराठी महिलाएँ अपने पति की सलामती और लंबी आयु के लिए वट सावित्री नामक व्रत रखती हैं जिसमें वट वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधना अनुष्ठान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

भारत मे सबसे बड़े पेड़ों में से एक, ग्रेट बरगद(The Great Banyan) कोलकाता में पाया जाता है। यह 250 साल से अधिक पुराना बताया जाता है। एक डोड्डा अलदा मारा(Dodda alada mara) नामक वृक्ष बैंगलोर के बाहरी इलाके में पाया जाता है। इसका प्रसार लगभग 2.5 एकड़ में है। सबसे प्रसिद्ध बरगद के वृक्षों में से एक, ‘कबीरवाड़’ गुजरात के भरूच में लगाया गया था। अभिलेख बताते हैं कि कबीरवाड़ 300 साल से अधिक पुराना है। एक और प्रसिद्ध बरगद का पेड़ राजस्थान के जयपुर जिले में लगाया गया था। अभिलेख बताते हैं कि यह 200 साल से अधिक पुराना है।

हिंदू धर्म मे बरगद के पेड़ को भगवान कृष्ण के विश्राम स्थल के रूप में बताया गया है। श्रीमद्भगवद् गीता के 15वें अध्याय में- भगवान कृष्ण ने संसार की तुलना बरगद के पेड़ से की है । भगवान् श्रीकृष्ण बताते है कि यह एक भव्य पेड़ है जिसकी जड़ें ऊपर की ओर होती हैं और इसकी शाखाएँ नीचे होती हैं और इनकी पत्तियाँ वैदिक भजन हैं। जो इस वृक्ष को जानता है, वह वेदों का ज्ञाता है। भगवद गीता के इस खंड में, भगवान कृष्ण भौतिक संसार के बारे में बात कर रहे हैं कि कैसे एक जीवित इकाई भौतिक दुनिया में उलझी हुयी हैं। बरगद के पेड़ की समानता का उपयोग यह दिखाने के लिए किया जाता है कि भौतिक दुनिया आध्यात्मिक दुनिया का एक विकृत प्रतिबिंब है। यह भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया का केवल असत्य और विकृत प्रतिबिंब नहीं है, बल्कि यह अस्थायी है। एक पेड़ की आयु अजर अमर नहीं होती । इसी तरह, भौतिक दुनिया में भटकने वाले सभी जीव स्थायी रूप से एक स्थान पर नहीं रहते , उनकी गतिविधियों के आधार पर वे हमेशा दो संभावनाओं में बटे होते है, कुछ जीवित संस्थाएँ भौतिक ऊर्जा के चंगुल से मुक्त हो सकती हैं और आध्यात्मिक दुनिया में वापस जा सकती हैं। अन्य जीवित प्राणियों को या तो बढ़ावा दिया जाता है या निचली प्रजातियों में फेंक दिया जाता है। दोनों में जीवन काल की अवधि होती है, जिसके बाद उन्हें एक अलग शरीर में जन्म लेना पड़ता है। इसीलिए, भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में इस भौतिक संसार को दुःख और अस्थाई अर्थात "दुक्खलयम, आशावस्थम" कहा है।

आध्यात्मिक दुनिया का विकृत प्रतिबिंब: जैसा कि ऊपर बताया गया है अस्थायी है। ठीक उसी तरह जैसे पानी में पेड़ का प्रतिबिंब उल्टा होता है, जिसे हम भौतिक दुनिया में देखते हैं वह आध्यात्मिक दुनिया के मूल स्वरूप का प्रतिबिंब है। इस प्रकार, जो कुछ भी हम यहां देखते हैं वह वास्तव में आध्यात्मिक दुनिया में मौजूद है। यह एक रूप और गुणवत्ता में पूरी तरह से सत, चित, अनन्तता, ज्ञान और आनंद से बना है, इसलिए हम समझ सकते हैं कि आध्यात्मिक दुनिया में सब कुछ बिना किसी गुण के निराकार नहीं है बल्कि यह एक व्यक्तित्वहीन प्रकाश के रूप में विद्यमान है।

जाने वेद और उनके उद्देश्य को- बरगद के पेड़ के पत्तों की तुलना वैदिक भजनों से की जाती है। जीवित इकाई को शाखा से एक दूसरी शाखा में रखा जाता है, जो धर्म, अर्थ, काम आदि नामक फलों का स्वाद लेने की कोशिश करता है। किसी को भी भोग के पत्तों और फलों से घबराना नहीं चाहिए। वेदों के उद्देश्य को भली भांति समझना ही एक प्राणी का उदेश्य होता है। आध्यात्मिक दुनिया मे लौटने के लिए भगवान के सामने आत्मसमर्पण करें। भगवान कृष्ण बताते हैं कि आध्यात्मिक दुनिया एक आनंदमय स्थान है, बिना किसी दुख के और आत्म-प्रदीप्त है, किसी भी बिजली, सूर्य या चंद्रमा की आवश्यकता नहीं होती। जो वहाँ आता है वह इस दयनीय भौतिक संसार में लौटने के बारे में कभी नहीं सोचेगा, जब तक कि स्वयं भगवान द्वारा आदेश न दिया जाए।

इस प्रकार बरगद के पेड़ की इस उपमा से, हम जीवन में व्यावहारिक अनुप्रयोग के लिए कई महत्वपूर्ण सबक और बिंदु सीख सकते हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है, एक व्यक्ति उस दुनिया के बारे में जान सकता है जिसे हम वर्तमान में जी रहे हैं, कैसे प्रकृति, वेदों और उनके उद्देश्य के भौतिक साधनों के कामकाज में फंस जाता है,तथा किस प्रकार एक प्राणी भौतिक दुनिया के इस पेड़ से कटकर, परमात्मा और आध्यात्मिक जगत में वापस लौट सकता है।

संदर्भ:

1. https://en.wikipedia.org/wiki/Banyan#cite_note-5
2. https://bit.ly/2GKqyCc
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2PzYpAl