जैन ब्रह्मांड विज्ञान (Jain Cosmology) - जैन धर्म के अनुसार ब्रह्मांड और उसके घटकों (जैसे जीवित प्राणियों, पदार्थ, स्थान, समय आदि) के आकार और कार्यप्रणाली का एक पृथक वर्णन है। जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान ब्रह्मांड को एक अनुपचारित इकाई के रूप में मानता है, जो अनंत काल से विद्यमान है, जिसका न तो कोई आरंभ है और न ही अंत। जैन धर्म के अनुसार, ब्रह्मांड शीर्ष पर व्यापक है, मध्य में संकीर्ण है और फिर नीचे की तरफ व्यापक हो जाता है।
लोक (Lok) - जैन ग्रंथो में ब्रह्मांड के लिए "लोक" शब्द का प्रयोग किया गया है।
जैन दर्शन के अनुसार 'लोक' तीन भाग में विभाजित है :
1. ऊर्ध्व लोक- देवों का निवास स्थान
2. मध्य लोक - मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पति
3. अधो लोक- सात नर्क और निगोद
ऊर्ध्व लोक - ऊर्ध्व लोक अलग-अलग निवासों में विभाजित है और स्वर्गीय प्राणियों (देवताओं) का लोक है, जो स्वतन्त्र आत्मा हैं।
मध्य लोक - ऊर्ध्व लोक के नीचे और अधोलोक के ऊपर मध्यलोक है, जहाँ हम और आप रहते हैं। यह लोक तीनो लोकों के मध्य में है, इसलिए इसे मध्य लोक कहते हैं। मध्य-लोक में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं !
अधो लोक – अधो लोक में सात परत शामिल हैं जिन्हें नर्क कहा जाता है, जो नारकीय प्राणियों द्वारा बसाए गए हैं। नर्कवासी निम्नलिखित नर्क में निवास करते हैं -
1. रत्न प्रभा-धर्म।
2. शरकार प्रभा-वंश।
3. वलुका प्रभा-मेघा।
4. पंक प्रभा-अंजना।
5. धूम प्रभा-अरिस्ता।
6. तमाह प्रभा-मघवी।
7. महातमाह प्रभा-मधावि
द्वीप और समुद्र – जैन धर्म के अनुसार मध्यलोक में महासागरों से घिरे कई महाद्वीप-द्वीप हैं, पहले आठ जिनके नाम हैं-
इस क्रम में "आंठवा द्वीप - नंदीश्वर द्वीप" है। तेरहवां द्वीप "रुचकवर द्वीप" है, इस द्वीप तक ही अकृत्रिम चैत्यालय हैं । इसी प्रकार असंख्यात द्वीप और समुद्र मध्य-लोक में हैं । आगे के द्वीप का जो नाम है, वही उसके समुद्र का नाम है । इन द्वीपों और समुद्रों का विस्तार आगे आगे दोगुना होता चला गया है। अंतिम द्वीप, स्वयंभूरमणद्वीप है और अंतिम समुद्र, स्वयंभूरमण समुद्र है।
ऊपर दिया गया चित्र मेरठ के नज़दीक हस्तिनापुर के जैन मंदिर में स्थित जम्बुद्वीप परिसर का है।
जम्बुद्वीप और क्षेत्र – मध्य लोक के बिल्कुल बीचों-बीच थाली के आकार का 1,00,000 योजन विस्तार वाला पहला द्वीप "जम्बू-द्वीप" है। यह चूड़ी के आकार का है। इसके बाद इसे चारों तरफ से घेरे हुए पहला समुद्र लवण-समुद्र है, जो कि इस(जम्बू-द्वीप) से दोगुने विस्तार वाला है।जम्बूद्वीप महाद्वीप में 6 शक्तिशाली पर्वत हैं, जो महाद्वीप को 7 क्षेत्रों में विभाजित करते हैं। इन क्षेत्रों के नाम हैं-
1. भरत
2. हैमवत
3. हरि
4. विदेह
5. रम्यक्
6. हैरण्यवत
7. ऐरावत
भरत क्षेत्र से विदेह क्षेत्र तक इन कुलाचल पर्वतों का और क्षेत्रों का विस्तार दोगुना होता गया है फिर विदेह क्षेत्र से अंतिम ऐरावत क्षेत्र तक यह आधा-आधा होता गया है।
जम्बू-द्वीप के विदेह क्षेत्र में बिलकुल बीचो-बीच एक लाख चालीस (1,00,040) योजन ऊँचा "सुमेरु-पर्वतराज" है। इतनी ही ऊंचाई मध्य लोक की है।
मेरठ के नज़दीक हस्तिनापुर में मौजुद जम्बुद्वीप मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप प्रारंग के इस लिंक पर क्लिक करें।
ऊपर दिया गया चित्र हस्तिनापुर के जैन मंदिर में स्थित सुमेरु पर्वत का है।
मेरु पर्वत - मेरु पर्वत (जिसे सुमेरु भी कहा जाता है), जम्बूद्वीप से घिरा हुआ और दुनिया के केंद्र में स्थित है, मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य, चंद्रमा और सितारों के दो समूह घूमते हैं, जबकि एक समूह काम करता है और दूसरा समूह मेरु पर्वत के पीछे रहता है। मेरु पर्वत की ऊंचाई भूमि के अन्दर (नींव) 1,000 योजन और भूमि के ऊपर 99,000 योजन और अंत में चोटी की लम्बाई 40 योजन है। सुमेरु पर्वतराज पर चार वन हैं-
1. भाद्रसाल वन- प्रथ्वी ताल पर है।
2. नंदन वन- 500 योजन ऊंचाई पर है।
3. सोमनस वन- नंदन वन से 62,500 योजन ऊपर है।
4. पांडुक वन- सोमनस वन से 36,000 योजन ऊपर जाकर।
प्रत्येक वन के चारों दिशाओं में एक-एक चैत्यालय है।
सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Jain_cosmology© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.