रोहिलखंड में कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका

लखनऊ

 17-04-2019 01:19 PM
भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

कृषि की प्रदेश तथा देश के विकास में अहम भूमिका रही है, यहां तक की रोहिलखंड क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत भी कृषि है। किन्तु वर्तमान में कृषि तथा कृषकों के सामने अनेक समस्याएं आ रही हैं। अनीसुर रहमान द्वारा 2004 में किए गए पीएचडी (PhD) अध्ययन “यूपी के रोहिलखंड में कृषि के सतत विकास के लिए प्रौद्योगिकी की भूमिका” (अंग्रेजी में - Role of technology for sustainable development of agriculture in Rohilkhand of UP ) से पता चलता है कि इन समस्याओं के समाधान और कृषकों की उत्पादकता की मात्रा बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है जो कि तकनीकी अनुप्रयोग में आगे के शोध के लिये एक आधार भी प्रदान करती है।

इस अध्ययन को करने के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

1. रोहिलखंड में कृषि के लिए एक बुनियादी ढांचा प्रदान करने वाले क्षेत्र की भौतिक विशेषताओं का जायजा लेना।
2. रोहिलखंड क्षेत्र में भूमि और फसल भूमि-उपयोगीकरण के पैटर्न के विस्तार-क्षेत्र की जांच करना।
3. रोहिलखंड क्षेत्र में कृषि उत्पादकता का विश्लेषण और उत्पादकता क्षेत्रों का सीमांकन करना।
4. तकनीकी कारकों की भूमिका की जांच करना और रोहिलखंड क्षेत्र में कृषि विकास के साथ सामंजस्य स्थापित करना।
5. क्षेत्रों में फसल उत्पादकता का विश्लेषण करना, और रोहिलखंड में कृषि विकास के स्तर को निर्धारित करना।
6. क्षेत्र में स्थायी रूप से भविष्य में कृषि विकास के लिए उपयुक्त उपाय सुझाना।

रोहिलखंड में 7 जिले शामिल हैं जिनमें बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, बदायूँ, बरेली, शाहजहांपुर और पीलीभीत शामिल हैं तथा इन क्षेत्रों में कृषि के सतत विकास का उद्देश्य पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए प्रकृति के साथ मिलकर फसलों का उत्पादन करना, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय और जीवन स्तर में सुधार आदि है। इस अध्ययन में देखा जा सकता है कि फसलों और प्रत्येक ब्लॉक (Block) के लिए उत्पादकता सूचकांकों की गणना यांग (जो कि एक चीनी कृषि विज्ञान है) की फसल उपज सूचकांक के आधार पर की गई थी तथा कुछ तकनीकी कारकों को चुना गया ताकि कृषि विकास के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सके। अंत में, समग्र सूचकांक की मदद से कृषि विकास के स्तर को निर्धारित किया गया था।

अध्ययन के संपुर्ण मुल्यांकन से यह पता चलता है कि रोहिलखंड क्षेत्र के खंड कृषि-संबंधी विकास के लिए कुशल प्रबंधन तकनीकी कारकों पर निर्भर हैं, जैसे सिंचाई, उर्वरक की खपत, यंत्रीकरण आदि। हालांकि, वर्तमान कृषि प्रणाली मुख्य रूप से आर्थिक विकास की नीति द्वारा शासित है, जो व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उच्च उत्पादकता पर जोर देती है, इससे कृषि के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है।

रोहिलखंड क्षेत्र में कृषि के विकास के लिए कुछ रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है। कृषि के विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव को शामिल किया जाना चाहिए:

1) मिट्टी का घटाव रोकना और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना।
2) उच्च उत्पादकता के लिए फसल में सुधार।
3) सिंचित क्षेत्र और सिंचाई संसाधन विकास में कुशल जल का प्रबंध।
4) कुशल फसल प्रणाली का विकास और उच्च उत्पादकता के लिए फसल को अनुक्रमित करें।
5) उच्च उत्पादन तकनीक का विकास विशेष रूप से अनाज, दाल, तिलहन और नकदी फसलों के लिए।
6) पर्याप्त मात्रा में और उचित समय पर अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता को सुनिश्चित करें।

बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर सटीक विकास के साथ-साथ खाद्य उत्पादन में भी वृद्धि आवश्यक है, लेकिन विकास ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि उससे भावी पीढ़ी प्रभावित हो। पर्यावरण और विकास पर विश्व आयोग की रिपोर्ट (Report) द्वारा परिभाषित दीर्घकालिक विकास की अवधारणा यह है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता को पूरा किया जाना चाहिए। जिसका केवल यह अर्थ है कि संसाधनों का उपयोग उचित तरीके से किया जाना चाहिए। खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि के लिए, सिंचाई और उर्वरक महत्वपूर्ण हैं। लाभदायक सिंचाई के लिए, अच्छी जल निकासी अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि पानी भूमि पर न रहे और जल का जमाव हो सके।

साथ ही साथ अध्ययन के आकलन से पता चलता है कि रोहिलखंड क्षेत्र में कृषि विकास तकनीकी कारकों के प्रबंधन पर निर्भर है, जो कि सिंचाई, उर्वरक, बीजों की उच्च उपज वाली किस्मों (HYV - High-yielding variety) और मशीनीकरण के रूप में साझा किए जाते हैं। वे खंड जो कृषि नवाचारों को अपनाते हैं, वे उन ब्लॉकों की तुलना में अधिक उन्नत हैं जिनमें खेती पारंपरिक रूप से की जाती है और प्रकृति की भूमिका प्रमुख है। आज रोहिलखंड में कृषि के सतत विकास के लिए कुछ रणनीतियों को अपनाकर कृषि विकास के वर्तमान स्तर में सुधार की आवश्यकता है।

संदर्भ:

1. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/21106/8/conclusion.pdf
2. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/21106/1/abstract.pdf
3. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/21106


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