अवध की भूमि से जन्में कुछ लोक वाद्य यंत्र

लखनऊ

 17-04-2019 12:42 PM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

यह तो हम सब जानते हैं कि संगीत में गायन तथा नृत्य के साथ-साथ वादन का भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वादन का तात्पर्य विशिष्ट पद्धति से निर्मित किसी वाद्य यंत्र पर लयबद्ध तरीके से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करना है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के वाद्य यंत्रों का विकास हुआ है, जिनमें से कुछ का विकास अवध क्षेत्र में भी हुआ है। आप इनके विषय में शोधकर्ता अनुश्री सिंह द्वारा किये गये अध्ययन “अवध क्षेत्र के लोक कलाकारों एवं लोक वाद्यों का योगदान” से भी जान सकते हैं।

अवध क्षेत्र के पारंपरिक संगीत में प्रयोग होने वाले कुछ वाद्य यंत्र निम्नलिखित हैं :-

डंडियाँ: डंडियों का प्रयोग ताल का आभास करने के लिए किया जाता है, इसके लिए दो छोटी और मोटी अथवा पतली और लंबी डंडियों को आपस में बजाया जाता है। ये डंडियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के घूमर और नृत्य के साथ संगीत बजाने के लिए प्रयोग की जाती हैं।

घंटा : शारंगदेव द्वारा घंटा का उल्लेख कुछ इस प्रकार किया गया है कि यह पिण्ड में अर्धंगुलमित होता है, साथ ही ऊँचाई में आठ अंगुल, कांस से बना हुआ, मुख में विशाल, मूल में अल्प घंटा और और यह प्रासाद से संबद्ध, और शलाका के आकार का होता है। साधारणतया इसे मंदिर में किसी जंजीर या रस्सी के माध्यम से लटकाया जाता है और वहीं मध्ययुग में इसे हाथियों के गले अथवा पीठ पर लटकाया जाता था, तब यह ‘जयघंटा’ कहलाता था।

झांझ : ये दो बड़े गोलाकार समतल धातु की तश्तरी जैसा ताल वाद्य होते हैं जिनके मध्य भाग में छोटा सा गड्ढा होता है तथा एक-दूसरे से रगड़ते हुए टकराकर बजाया जाता है। इस वाद्य में झनझनाहट भरी ध्वनि उत्पन्न होती है। इसका प्रयोग साधु संत अधिक करते है।

मंजीरा : मंजीरा भजन में प्रयुक्त होने वाला एक महत्वपूर्ण वाद्य है, गायन, वादन नृत्य में लय के भिन्न भिन्न प्रकारों के संगीत के लिये इस वाद्य का उपायोग होता है। इसमें दो छोटी गहरी गोल मिश्रित धातु की बनी प्याले के आकार की पट्टियां जैसी होती है। इनका मध्य भाग गहरा होता है। इस भाग में बने गड्ढे के छेद में डोरी लगी रहती है। ये दोनों हाथों से बजाए जाते हैं।

करताल : धातु निर्मित करताल कीर्तन-गीत में अन्यतम प्रधान वाद्य है। इसमें चतुर्भज आकार के दो भाग होते हैं जिनमें झनझनाहट करने वाली लटकन लगी रहती है। इसका एक भाग अंगुलियों के चारों ओर तथा दूसरा भाग अंगूठे में पहना जाता है।

आप ऊपर दिए गए चित्रों में प्राचीन समय में अवध में प्रयुक्त होने वाले संगीत वाध्य को देख सकते है।

संदर्भ:

1. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/183706/1/10%20chapter%204f.pdf
2. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/183706


RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id