आज के समय में लिफ्ट (Elevator) का उपयोग बहुत सामान्य हो गया है, हम इसके इतने आदि हो गये हैं कि शायद इसके बिना कई कामों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रामपुर की पहली विद्युतीय लिफ्ट (Electric Lift) को लोगों द्वारा भूला दिया गया है। जिसे 1920 में स्थापित किया गया था। अंग्रेजी लेखक (English Writer), आइरिस बटलर (Iris Butler) की एक किताब जो 1969 में भारत के वायसराय (Viceroy) (1920 के दशक के) की पत्नी एलिस रीडिंग (Alice Reading) के जीवन पर लिखी गयी थी। वायसराय रीडिंग (Viceroy Reading) , ने अपनी पत्नी को 1921 के दौरान रामपुर की कोठी की यात्रा का वर्णन करते हुए एक पत्र लिखा। इसमें इस रामपुर की पहली विद्युतीय लिफ्ट का उल्लेख किया गया है।
“मेरे पहुंचने पर बन्दूक से सलामी दी गयी साथ ही नवाब भी पहुंचे। नवाब ने मेरे लिए लिफ्ट की व्यवस्था की थी। जब हम पहुंचे तब लिफ्ट काम नहीं कर रही थी और हमें एक घंटे के लिए खड़े रहना पड़ा। जब तक वह आदमी नहीं मिला जिसने लिफ्ट का करंट बंद किया था, इस बात का मुझे बहुत बुरा लगा।”
ऊपर दिया गया चित्र कोठी ख़ास बाग में लगे विद्युत् सर्किट (Electric Circuit) का है जिसके द्वारा कोठी खास बाग़ में विद्युत् आपूर्ति दी जाती थी।
लिफ्ट का सर्वप्रथम उपयोग कब किया गया इसके प्रत्यक्ष साक्ष्य तो उपलब्ध नहीं है, किंतु इसका प्रारंभिक ज्ञान हमें रोमन वास्तुकार वित्रुवियस (Roman Architect - Vitruvius) के एक रिकॉर्ड से मिलता है। इसमें इन्होंने आर्किमिडीज (Archimedes) द्वारा 236 ईसा पूर्व में बनायी गयी पहली लिफ्ट का उल्लेख किया है। यह लिफ्ट आधुनिक लिफ्ट से काफी भिन्न थी, जो जूट की रस्सी से बनायी गयी थी तथा मनुष्यों और पशुओं द्वारा संचालित की जाती थी। 1000 ईस्वी में अल-मुरादी ने अपनी पुस्तक ‘रहस्यों की पुस्तक’ में लिफ्ट के समान दिखने वाली एक विचित्र मशीन (Machine) का उल्लेख किया है, जिसका उपयोग इस्लामी स्पेन में एक किले को नष्ट करने के लिए किया गया था।
सत्रहवीं शताब्दी में किंग लुइस XV (King Luis XV) ने मानव का वहन करने वाली लिफ्ट के निर्माण का आदेश दिया। इस लिफ्ट को राजा के महल के छज्जे या बलकनी के बाहर लगवाया गया था, जिसे मानव द्वारा संचालित किया जाता था। पहली स्क्रू ड्राइव लिफ्ट (Screw Drive Elevator) 1793 में इवान कुलिबिन (Ivan Kulibin ) द्वारा बनाई गई थी, जिसे विंटर पैलेस (Winter Palace) में लगाया गया। इस लिफ्ट ने आधुनिक यात्री लिफ्ट के लिए एक अग्रदूत के रूप में कार्य किया।ऊपर दिया गया चित्र कोठी खास बाग़ के अन्दर का दृश्य है
औद्योगिक क्रांति के साथ ही लिफ्ट के स्वरूप में भी परिवर्तन आया। 19 वीं शताब्दी में भाप के माध्यम से चलने वाली लिफ्ट का अविष्कार किया गया। इसका उपयोग खानों और कारखानों में बड़ी मात्रा में माल ढोने के लिए किया जाता था। सर विलियम आर्मस्ट्रांग (Sir William Armstrong) ने 1846 में जहाजों पर माल लदाने के उद्देश्य से द्रवचालित क्रेन का निर्माण किया। जिसे पानी के पंप के माध्यम से संचालित किया जाता था। 1852 में, न्यूयॉर्क में, एलीशा ओटिस (Elisha Otis) ने एक सुरक्षात्मक लिफ्ट का अविष्कार किया, इसमें रस्सी के टूट जाने पर भी कैब (Cab) को हानि नहीं पहुंचती थी। 1870 में इक्विटेबल लाइफ बिल्डिंग ( Equitable Life Building), न्यूयॉर्क में दुनिया की पहली यात्री लिफ्ट तैयार की गयी थी। पहली विद्युतीय लिफ्ट का आविष्कार 1880 में वर्नर वॉन सीमेंस (Werner von Siemens) द्वारा जर्मनी में किया गया था।
अमेरिका के एक आविष्कारक अलेक्जेंडर माइल्स (Alexander Miles) ने स्वचालित दरवाजों का आविष्कार किया। पुश बटन वाली पहली हाइड्रोलिक लिफ्ट (Hydrolic Elevator) (बिना ड्राइवर वाली) 1894 में संचालित की गई। 2000 में अर्जेंटीना में पहली वैक्यूम लिफ्ट (Vacuum elevator) को व्यावसायिक रूप से पेश किया गया। 2000 में लगभग 600 मीटर ऊँची इमारतों में लिफ्टों का प्रयोग बढ़ गया था तथा लिफ्टों में नई और बेहतर प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया गया। जिनमें आज भी परिवर्तन जारी है।
भारत में पहली लिफ्ट 1892 में कोलकाता के राजभवन में स्थापित की गयी थी, जो आज भी कार्यरत है। औपनिवेशिक काल में कोलकाता ब्रिटिश साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र या उनकी राजधानी थी। भारत में पहली विद्युतीय लाइट भी कलकत्ता (1879) में ही जलायी गयी अर्थात बिजली का सर्वप्रथम आगमन कलकत्ता में ही हुआ। 19 वीं शताब्दी के अंत तक भारत ने जल विद्युत उत्पादन शुरू किया। एशिया में पहली इलेक्ट्रिक स्ट्रीटलाइट (Electric Street Light) 5 अगस्त 1905 को बैंगलोर में जलायी गयी थी।
संदर्भ:
1. https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.111361/page/n99© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.