भारत के इतिहास में काले दिनों में गिने जाने वाले दिनों में से एक है जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड। 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के अवसर पर अमृतसर के जलियांवाला बाग में भीड़ एकत्रित हुयी जिनका उद्देश्य देश के दो राष्ट्रीय नेताओं डॉ. सत्य पाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की सजा के विरूद्ध शांतिपूर्ण विरोध करना था। तत्कालीन जेनरल डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश भारतीय सेना ने इस उद्यान में एकत्रित हुयी भीड़ को चारों ओर से घेर लिया। सेना ने सर्वप्रथम टैंकों के माध्यम से प्रवेश द्वार को बंद किया फिर लगभग 10 मिनट तक निहत्थी भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियां चलाई। परिणामस्वरूप हजारों की संख्या में लोग मारे गये तथा 1,200 के करीब लोग घायल हुए। ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार, इस घटना में 379 लोग मारे गए, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1,000 से अधिक लोगों की हत्या का अनुमान लगाया। कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए खुले फाटकों से भागने का प्रयास किया तो कुछ कुंए में कुद पड़े। इस अमानवीय घटना ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की पहली चिंगारी को प्रज्वलित किया, जिससे अंततः ब्रिटिश साम्राज्य का पतन हुआ।
एक सदी बाद आज जहाँ जलियांवाला बाग स्मारक पर मूल घटना के निशान गायब हो गएँ हैं वहीँ भारतीय इतिहास की इस घटना को आज भी हमारी स्मृति में जीवित रखने के लिए विभिन्न पुस्तकों और इस घटना पर फिल्मांकन हुई फिल्मों का विशेष योगदान रहा है।इन्ही किताबो और फिल्मो के आधार पर आज भी लोग उस घटना एवं वहा हुई निर्मम हत्याओं का स्मृति चित्रांकन करते है। लेखक किम-ऐ-वैग्नर (Kim A Wagner)र ने अपनी पुस्तक 'जलियांवाला बाग: एन एम्पायर फीयर एंड द मेंकिंग ऑफ द अमृतसर मैसकर'(Jallianwala bagh: The empire fear and the making of the AmritsarMassacre) में जलियांवाला बाग घटना के बाद बनी कई फिल्मो का विवरण दिया है इसमें उन्होंने ऐटनबर्ग (Attenborough) द्वारा निर्देषिटी ऑस्कर विजेता फिल्म गाँधी1982 का उल्लेख देते हुए हंटर कमिटी(Hunter Committee) तथा जलियांवाला बाग की घटना के बाद यहां की यथा स्थिति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन दिया है। बाद में स्वाधिनता आंदोलन पर आधारित कई फिल्म जैसे - शहीद उधम सिंह (2000), द लेजेंड ऑफ भगत सिंह (2002) और रंग दे बसंती (2006) का भी उल्लेख मिलता है।इन फिल्मों में जलियांवाला बाग में हो रही जनसभा की शुरूआत के दृश्य से लेकर नरसंहार के बाद तक का फिल्मांकन किया गया है। फिल्मों में घटना के बाद जलियांवाला बाग की दर्दनाक चुप्पी, दिवारों पर लगे गोली के निशान, जान बचाने के लिए कुएं में कूदे लोग, माता पिता के मृत शरीर के पास बैठा रोता बच्चा इत्यादि का दृश्यांकन वास्तव में दर्शक के हृदय को भाव विभोर कर देता है जिसमै इस हत्याकाण्ड की कटु आलोचना की गयी है।इन फिल्मो ने जनमानस के मध्य काफी लोकप्रियता हासिल की। जलियांवाला बाग पर बनी कुछ प्रसिद्ध फिल्में इस प्रकार हैं:
1. जलियांवाला बाग (1977)
2. गांधी (1982)
3. द लेजेंड ऑफ़ भगत सिंह (2002)
4. रंग दे बसंती (2006)
5. मिडनाइट्स चिल्ड्रन (2012)
6. फिल्लौरी (2017)
संदर्भ:
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