भारतीय संस्कृति का शुभम प्रतीक - पवित्र पुष्प कमल

लखनऊ

 05-04-2019 07:30 AM
बागवानी के पौधे (बागान)

भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल का वानस्पतिक नाम नेलुम्बो न्युसिफेरा गार्टन (Nelumbo nucifera Gaertn) है। कमल पवित्र पुष्प है तथा भारतीय प्राचीन काल और पुराणों में इसका एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीनकाल से ही इसे भारतीय संस्कृति में शुभम प्रतीक माना गया है। साथ ही यह सुंदरता, समृधि और उर्वरता का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। स्त्री का सौंदर्य (विशेषकर आँखें, स्त्री की सुन्दर आँखें कमल की पंखुड़ियों (कमलनयनी) के समान वर्णित हैं)। भगवद गीता में भी कमल का उल्लेख मिलता है।

प्राचीन काल में कमल मिस्र में नील नदी (River Nile) के किनारे में पाया जाता था और यह पवित्र नील कमल से निकट संबंध रखता था। वहीं दोनों फूलों के भागों को व्यापक रूप से वास्तुशिल्प रूपांकनों के रूप में चित्रित किया गया था। मिस्र के लोगो द्वारा ही कमल की पूजा और उसका पूजा में उपयोग करना आरंभ किया गया था। वहीं मिस्र से इसे असीरिया(Assyria) ले जाया गया और उसके बाद इसे फारस, भारत और चीन में व्यापक रूप से लगाया गया। 1787 में इसे पहली बार पश्चिमी यूरोप में बागवानी के लिए सर जोसेफ बैंक (Joseph Bank)के संरक्षण में एक स्टोव-हाउस वॉटर-लिली(Stove-house water lily) के रूप में लाया गया था। जिसे आज आधुनिक वनस्पति उद्यान संग्रह में देखा जा सकता है। वर्तमान में अफ्रिका के जंगलों से यह विलुप्त हो गया है लेकिन दक्षिणी एशिया और ऑस्ट्रेलिया में व्यापक रूप से फैला हुआ है।

कमल के फूल को तालाब या नदी के तल की मिट्टी में लगाया जाता है, और इसकी पत्तियाँ पानी की सतह के ऊपर तैरती हैं। कमल का फूल आमतौर पर पानी की सतह से ऊपर बढ़े हुए तने पर खिलते हैं। वहीं यह सामान्य रूप से लगभग 150 सेमी की ऊँचाई तक बढ़ता है और इसका 3 मीटर तक का क्षैतिज फैलाव होता है। इसकी पत्तियाँ लगभग 60 सेमी व्यास तक की हो सकती हैं।

कमल के पहले भारतीय जीवाश्म रिकॉर्ड को कश्मीर के अत्यंत नूतन युग का बताया गया है। वहीं "ईस्ट इंडियन लोटस"(East Indian Lotus) जो एक प्राचीन एशियाई प्रजाति है, कई एशियाई प्राच्य देशों में व्यापक रूप से वितरित है, नामतः भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, कोरिया, कंबोडिया, थाईलैंड, वियतनाम, जापान और चीन।

कमल के पौधों का संरक्षण :-
कमल की उत्कृष्ट महत्वता को देखते हुए राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) ने कमल के संग्रह, परिचय, समीक्षा, प्रलेखन और गुणन पर एक परियोजना को बनाया है। 35 स्थानीय प्रजातियों के जर्मप्लाज्म (germplasm) का निर्माण बोटैनिकल गार्डन (Botanical Garden) में किया गया है, इनमें से अधिकांश भारत के विभिन्न पादप भूगोलीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। गुलाबी, सफेद और पीले फूलों के विभिन्न रंगों में दो प्रजातियों और 25 जातियों के जर्मप्लाज्म को जापान, थाईलैंड, यू.के., जर्मनी, यूएएसए, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के बॉटनिक गार्डन से भी समृद्ध किया गया है। साथ ही बोटैनिकल गार्डन, एन.बी.आर.आई, लखनऊ में कमल की प्रजातियों और नस्लों के संरक्षण, प्रलेखन, गुणन और प्रसार के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। एनबीआरआई ने पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले से कमल की 160 पंखुड़ियों वाली गुलाबी रंग की प्रजाति को खोज निकाला, जो काफी अद्वितीय और आकर्षक है। इस कमल को कृष्णा नाम दिया गया है।

कमल के पौधों में लगने वाले कीड़े, कीट और रोग :-
एफिड्स(Aphids) कीट कमल के नरम पत्तों और फूलों की कलियों से रस चूसकर पौधे को काफी नुकसान पहुंचाता है । पौधों में मैलाथियोन (Melathion) का 0.2% के छिड़काव से ऐफिड को नियंत्रित किया जा सकता है। वर्मपंखी भी पत्तियों को खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाती है और उन्हें तेज पानी के प्रवाह या हाथ से निकालकर हटा देना चाहिए।

कमल का औषधीय, आर्थिक और पोषण संबंधी महत्व :-
कमल के कई औषधीय, आर्थिक और पोषक महत्व होते हैं। प्राचीन औषधीय साहित्य में कमल कई आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोगी बताया गया है, कई रोग जैसे कि ठंड लगना, कमजोरी, दस्त, बुखार,जलन तथा खांसी और जुकाम आदि को ठीक करने के लिये कमल उपयोगी पुष्प है। इसके अतिरिक्त कमल से कार्डियोटोनिक, यकृत, मूत्रीय और वाहिका संबंधी विकारों को ठीक किया जा सकता है। वहीं कमल के बीज गर्भाधान, रक्त विकार और शीतलन दवा के रूप में अत्यधिक मूल्यवान हैं। साथ ही खाद्य राइजोम(Rhizomes) और ताजे बीज से कई स्वादिष्ट व्यंजनों को बनाया जा सकता है।

कमल से होती है प्रदूषण की समाप्ति :-
कई जांच से यह पता चलता है कि कमल के पौधे भारी धातुओं को भी अवशोषित कर सकते हैं। इन्हें औद्योगिक अपशिष्टों के निर्वहन के लिए तालाबों में रोपण किया जाना चाहिए। इसके अलावा इनको टब में या स्विमिंग पूल के अंदर उगाया जा सकता है, जो पूल को अतिरिक्त सुंदरता प्रदान करेगा और हानिकारक क्लोराइड के उपयोग के बिना प्राकृतिक रूप से पानी को शुद्ध करने में मदद करता है।

संदर्भ :-
1. https://www.beyond.fr/flora/lotussacred.html
2. http://isebindia.com/2000/00-01-08.html
3. http://www.bgci.org/worldwide/article/0110



RECENT POST

  • जानें, प्रिंट ऑन डिमांड क्या है और क्यों हो सकता है यह आपके लिए एक बेहतरीन व्यवसाय
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:32 AM


  • मकर संक्रांति के जैसे ही, दशहरा और शरद नवरात्रि का भी है एक गहरा संबंध, कृषि से
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:28 AM


  • भारत में पशुपालन, असंख्य किसानों व लोगों को देता है, रोज़गार व विविध सुविधाएं
    स्तनधारी

     13-01-2025 09:29 AM


  • आइए, आज देखें, कैसे मनाया जाता है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:32 AM


  • आइए समझते हैं, तलाक के बढ़ते दरों के पीछे छिपे कारणों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:28 AM


  • आइए हम, इस विश्व हिंदी दिवस पर अवगत होते हैं, हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसार से
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:34 AM


  • आइए जानें, कैसे निर्धारित होती है किसी क्रिप्टोकरेंसी की कीमत
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:38 AM


  • आइए जानें, भारत में सबसे अधिक लंबित अदालती मामले, उत्तर प्रदेश के क्यों हैं
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:29 AM


  • ज़मीन के नीचे पाए जाने वाले ईंधन तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे होता है?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:46 AM


  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली कैसे बनती है ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id