अवधों के समय में इंजीनियरिंग (engineering) विद्या की कमी के कारण लखनऊ के लोहे के पुल का निर्माण आधा-अधुरा रहा गया था, जिसे अंत में बंगाल के इंजीनियरों द्वारा 40 वर्षों के समय-अंतराल के बाद पूरा किया गया था। यह ऊपर दी गयी तस्वीर द लखनऊ एल्बम: फिफ्टी फोटोग्राफिक व्यूज ऑफ़ लखनऊ (The Lucknow Album: Fifty Photographic Views of Lucknow) से ली गयी है जिसे दारोगा अब्बास अली दवाला एकत्रित किया गया था।
20 वीं शताब्दी तक लखनऊ की गोमती नदी में कुछ ही पुल थे। सर जॉन रेनी (Sir John Rennie) द्वारा डिज़ाइन किया गया लोहे का पुल नवाब सआदत अली खान द्वारा खरीदा गया था, लेकिन इंग्लैंड से लाने के बाद भी 40 साल तक इस पुल पर कोई भी काम नहीं किया गया। इसके पीछे विभिन्न कारण हैं और 40 साल बाद इसका किसने निर्माण किया, उस बारे में भी कई मान्यताएं हैं। जब बिशप हीबर (Bishop Heber) ने 1824 में लखनऊ का दौरा किया था, तब उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि अवध के नवाबों के विचारों में पुल के संबंध में अंधविश्वासी प्रासंगिकता बसी हुई है। क्योंकि पुल के आने के बाद ही सआदत अली खान की मृत्यु हो गई थी और लोहे के पुल को अशुभ मान लिया गया था। नवाब मानते थे कि यदि उन्होंने इस पुल का निर्माण करवाया तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी।
अंत में नवाब अमजद अली शाह (1842-7) द्वारा कर्नल फ्रेजर की मदद से रेजीडेंसी (Residency) के उत्तर-पश्चिम में इस पुल को लगवाया गया था। वहीं कई मानते हैं कि अवध के कारीगरों के इंजीनियरिंग विद्या की कमी के कारण पुल के निर्माण में विलम्ब हुआ था और अमजद अली ने ईस्ट इंडिया कंपनी से मदद मांगी और पुल का कर्नल फ्रेजर, बंगाल के इंजीनियर द्वारा निर्माण करवाया गया था। 'प्रोफेशनल पेपर्स ऑन इंडियन इंजीनियरिंग (वॉल्यूम 3)' पुस्तक में बताया गया है कि पुल के चिनाई और निर्माण की लागत लगभग 1,80,000 रुपये तक रही होगी।संदर्भ :-
1. http://www.bl.uk/onlinegallery/onlineex/apac/other/019xzz000000270u00024000.html© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.