 
                                            समय - सीमा 266
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                                            दुनिया का सबसे बड़ा वनस्पति उद्यान, रॉयल बोटेनिक गार्डन्स, क्यू, लन्दन में 18वीं और 19वीं शताब्दी के कलाकारों द्वारा बनाई गई भारतीय वनस्पति चित्रों का एक विशाल संग्रह है। लेकिन इन कलाकारों में से सबसे विशिष्ट कार्य ब्रिटिश वनस्पति वैज्ञानिक ‘जोसेफ डाल्टन हुकर’ का माना जाता है, जिसके 30 क्षेत्र-रेखाचित्र वर्तमान में क्यू संकलन में देखे जा सकते हैं, और साथ ही ये वनस्पतिक दृश्य की प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय मूल्य प्रदान करते हैं।
भारतीय वनस्पति विज्ञान में जोसेफ डाल्टन हुकर (1817-1911) की खोज ने 19वीं सदी के दौरान यूरोपीय और ब्रिटिश बागवानी पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था। वनस्पति विज्ञान में हुकर की आजीवन रुचि ने उन्हें विश्व भर में भ्रमण करवाया, जिसमें भारत और अंटार्कटिका के वनस्पति खोजयात्रा भी शामिल थी, इसने उन्हें क्यू के निर्देशक और रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति भी दिलाई।
1847 और 1851 के बीच सिक्किम और हिमालय की तलहटी से ब्रिटेन में बुरांस (रोडोडेंड्रॉन) की 25 प्रजातियों की शिनाख्त और परिवहन कर, वे “वाइल्ड गार्डनिंग” (wild gardening) का हिस्सा बन गए थे। हुकर की खोज की ओर बागबानों और वनस्पति-वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित न केवल बुरांस के नमूनों ने किया, बल्कि 1849 और 1851 के बीच प्रकाशित “दा रोडोडेंड्रॉन ऑफ़ सिक्किम-हिमालय” (The Rhododendron of Sikkim-Himalaya) प्रकाशन में इस फूल के तीन भागों में दिया गया स्पष्टीकरण ने भी किया था।
इस प्रकाशन को हुकर द्वारा लेखबद्ध किया गया था और आज भी ये भारत में मौजूद है, इस अंक में सिक्किम और आस-पास के क्षेत्रों में पाए जाने वाले बुरांस की 31 प्रजातियों के वानस्पतिक विवरण और वनस्पति चित्रकार वाल्टर हूड फिच द्वारा हाथ से बने लिथोग्राफ (Lithograph) भी शामिल हैं जिसका एक उदाहरण नीचे दिए गए चित्र में है।
 
इन लिथोग्राफों को बनाने के लिए, फिच ने हुकर द्वारा क्यू में भेजे गए सूखे वनस्पति नमूनों और क्षेत्र-रेखाचित्रों का उपयोग किया था। हुकर द्वारा भेजे गए फूलों के सूखे पत्तों के नमूने से फूल और पत्तियों के आकार को पहचाना जा सकता था। हुकर की कलात्मक प्रतिभा ने भारतीय और नेपाली बुरांस की लोकप्रियता और व्यापक वैज्ञानिक समझ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तत्कालीन समय में, बुरांस रामपुर और सुंगनाम के बीच सतलुज घाटी में 10,000 से 14,000 फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है। इनके पत्तियों को तिब्बत और कश्मीर से आयात किया जाता है, और कश्मीर के मूल निवासियों द्वारा एक सूंघ के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी छाल का उपयोग कागज बनाने के लिए किया जाता है।
 
वहीं हुकर की कलात्मक प्रतिभा उनके क्षेत्र-रेखाचित्रों से स्पष्ट होती है। हालांकि, हुकर का मानना था कि प्रकाशित वानस्पतिक चित्रण स्पष्ट होने चाहिए और काले और सफेद रूपरेखा में होने चाहिए जो रंगीन चित्रों से ज्यादा स्पष्ट पहचाने जा सकते हैं। साथ ही बुरांस व्यावसायिक रूप से सफल प्रकाशनों में से एक था, जिसने भारतीय और नेपाली बुरांस को पूरे ब्रिटेन में आकर्षक पौधों के रूप में प्रमाणित किया।
संदर्भ :-
1. किताब का सन्दर्भ : मार्ग ए मैगज़ीन ऑफ़ द आर्ट्स (A Magazine Of Arts) दिसम्बर 2018- मार्च 2019 VOL. 70 NO. 2 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        